शीत राग की मधु बेला में जब सब पत्ते झड़ जाएंगे,
बीच सड़क पे बे-बस अम्मा तारों से लिपटके रोयेगी,
सावन को कसम दिला देना, इस बार न बरसे सूरत पे,
रात की परवाह मत करना हम तन्हा एक मुसाफिर हैं,
एक चादर अपने आंगन में बेवजह ही तान के देखो,
मेरे मन के सुंदर पंछी जब पिंजरे में बंदी होंगे,
क्षमा करें मैं बड़े घरों में इसलिए नहीं जाता,
टूटी लाठी लेकर चलती दादी क्या सोचती,
सौ रुपए में आता है एक महका हुआ गुलाब,
उनकी जुल्फें भी रेशमी हैं रूह भी रेशमी,
ख्वाबों की दुनिया में जीभर देख लेता हूं ,
वक्त की कोई ऐसी भी ना पहर आए,
महज इतनी सी दूरी हो चांद-छत की,
आईना जहां भी हो, आईना रहे,
ख्वाबों में रोशनी हो, ना हो मगर
यकायक उसके लबों पर हंसी बिखर जाए,
हवाओं का राग देखना घटाओं का आलाप देखना,
मावस की श्यामल रात ढले आ जाए रतौंधी तारों को,
ना धरती पर बरखा होगी और ना ही सागर चीखेगा,
कब गुजरेंगे राम यहां से कब आएगी जां में जां,
अब तो खूब तरब से देखो मुकम्मल खेल मदारी का,
आकाश पर बादल का पिंजरा है
पत्ते, डाली पकड़कर चढ़ गए
खुदा ताला लगाना भूल गया
फिर कोई गौरय्या तबाह होगी
उसकी आखिरी बस भी छूट गई
2022-10-12