आज प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ हमारे जीवन को काफी प्रभावित कर रहे हैं. आधुनिक युग में हमारी तरक्की तो हो रही है, लेकिन उस तरक्की में हम कुदरत के निजाम के साथ छेड़छाड़ करते रहते हैं. आए दिन जंगल को वीरान किया जा रहा है. पेड़ों की कटाई जारी है. नतीजा ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या से हम जूझ रहे हैं. वहीं पौधारोपण से हम अपने पर्यावरण को शुद्ध रख सकते हैं.
ग्लोबल वार्मिग जैसी गंभीर समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है. मगर ईमानदारी से हम पौधारोपण के लिए कितना जागरूक है, यह एक बड़ा सवाल है. हालांकि, देश में ऐसे कई लोग हैं जो चुपचाप अपने पर्यावरण को बचाने के काम में जुटे हुए हैं. उड़ीसा के रिटायर्ड मास्टर राम चन्द्र साहू एक ऐसा ही नाम हैं. प्रकृति के लिए उनका प्यार काबिल-ए-तारीफ है. अब वो न सिर्फ हजारों पौधे लगा चुके हैं, बल्कि पिता बनकर उनकी देखभाल भी करते हैं.
असली प्रकृति प्रेमी हैं मास्टर राम चन्द्र साहू
ओडिशा के बारगढ़ जिले के कनगाँव में रहने वाले रामचन्द्र साहू पौधारोपण के लिए जाने जाते हैं. गांव के करीब 15 किलोमीटर के दायरे में अब तक हजारों पेड़ लगा चुके हैं. जो उन्हें एक सच्चा प्रकृति प्रेमी साबित करता है. आज उनकी उम्र 77 के करीब है. राम चन्द्र साहू का जन्म बारगढ़ में 1944 में हुआ. वे किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं. साल 1964 में सरकारी शिक्षक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की. जो बाद में ‘राम मास्टर’ नाम से लोकप्रिय हुए. वे अपने गांव के स्कूल में पढ़ाया करते थे. उन्हें हमेशा से ही प्रकृति से बड़ा लगाव रहा. उन्होंने अपना जीवन पेड़ पौधों की सेवा में समर्पित कर दिया.
बढ़ती उम्र की वजह से उनकी तबियत भी ठीक नहीं रहती. इसके बावजूद उन्होंने पौधारोपण का कार्य नहीं रोका. आज भी वे लोगों को जागरूक करने के साथ पौधारोपण के काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं. राम मास्टर पिछले 40 सालों से पौधारोपण का कार्य कर रहे हैं. उनको यह नेक काम करने की कहीं से प्रेरणा भी नहीं मिली. उन्होंने खुद महसूस किया कि उनके गांव में पेड़ों की तादाद कम है. सड़क के किनारे पेड़ नहीं लगे हुए हैं. जिससे राहगीरों को भी परेशानी होती है. पेड़ की छाँव में बैठकर कोई आराम भी नहीं कर सकता. ऐसे में उन्होंने अपने घर के पास से रास्तों के किनारे पेड़ लगाने का काम शुरू कर दिया.
रामचंद्र साहू सिर्फ पौधारोपण कर पौधों को छोड़ नहीं देते, बल्कि वो पूरी ईमानदारी से उसके पेड़ बनने तक उसकी सेवा करते हैं. उसको पानी देते. खाद डालते हैं. मास्टर साहब ने इस दौरान पीपल, बरगद, आम जैसे हजारों पेड़ लगा चुके हैं. उन्होंने न केवल अपने गांव बल्कि अपने गांव से जोड़ने वाले दूसरे गांव के रास्तों के किनारे पौधारोपण किया. उनका कहना है कि अब मुझे पेड़ों की गिनती नहीं पता, लेकिन इतना पता है कि करीब 15 किमी रास्ते के किनारे हरे भरे हो गए हैं. इससे सभी गांव वाले भी खुश हैं. मुझे भी चारो तरफ हरियाली देख अच्छा महसूस होता है.
औलाद की तरह से पेड़ों को बड़ा कर रहे हैं!
राम मास्टर की पत्नी पार्वती भी उनके इस नेक काम में उनकी मदद करती हैं. वे उनके साथ पौधों की देखरेख करती हैं. वहीं प्रकृति प्रेमी दंपति की किस्मत में संतान का सुख नहीं लिखा था. उनकी कोई औलाद नहीं है. उसकी कमी उनके इस काम से पूरी होती है. वे दोनों एक दूसरे की ताकत हैं. पति-पत्नी पौधे की सेवा दिल से करती हैं. वे उन्हें अपने औलाद की तरह मोहब्बतों से बड़ा करती हैं. मास्टर एक पौधे की देखरेख तब तक करते हैं. जब तक वह पेड़ नहीं बन जाता. वे एक पिता की तरह उसकी सेवा करते रहते हैं. गांव के लोग मास्टर साहब के इस काम की काफी सराहना करते हैं.
राम मास्टर के काम के कारण जिस जगह पर कुछ नहीं हुआ करता था. आज वहां हरियाली ही हरियाली है. राहगीर वहां रूककर पेड़ की छांव में आराम कर सकता है. पैदल कहीं जाने में भी गांव वालों को तकलीफ नहीं होती. वे गर्मियों में पेड़ की छाँव में आराम से चलते हैं. वहीं गांव वाले उनके द्वारा लगाए गए पेड़ों से तोड़कर फल भी खाते हैं. रामचन्द्र साहू अपनी कमाई का कुछ हिस्सा पौधों पर खर्च करते रहे हैं. एक समय में रामचन्द्र साइकिल से पानी की केन भरकर पौधों को पानी देने जाते थे. इस तरह उन्हें कई चक्कर लगाने पड़ते थे. लेकिन वे पीछे नहीं हटे. कभी इस काम को छोड़ने का नहीं सोचा.
आज भी वो पेड़ों की सेवा करते उसी तरह करते हैं. कुछ कामों के लिए दिहाड़ी मजदूर की मदद लेते हैं. रामचंद्र बताते हैं कि मैंने इस काम के लिए कभी किसी से आर्थिक मदद नहीं ली. जब नौकरी करता था तो वेतन के पैसों से पौधारोपण करता था. आज पेंशन में मिलने वाली रकम से पेड़ों की देखभाल करता हूं. मास्टर रामचंद्र साहू के इस काम को देखते हुए उड़ीसा सरकार ने उन्हें ‘प्रकृति बंधू’ सम्मान दिया था. उन्हें कुछ धनराशि भी सम्मान के तौर पर मिली थी. जिसे उन्होंने दान कर दी. आज इस उम्र में भी मास्टर साहब बड़ी ईमानदारी से इस काम को कर रहे हैं, जो लाखों-करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं.