बेजुबान पक्षियों के बारे में सोचने वाले बेहद कम इंसान हैं. ऐसे इंसानों को ये महसूस हो जाता है कि गर्मी बरसात या ठंड के मौसम में हम जैसा महसूस करते हैं वैसा ही ये पक्षी भी करते होंगे. इन्हें भी भूख-प्यास लगती होगी. पक्षियों की पीड़ा और जरूरतों को महसूस कर पाने वाले ऐसे ही इंसानों में एक नाम है रामजीभाई मकवाना का.
पक्षियों के लिए बनाया पक्षी तीर्थ
गुजरात, भावनगर के रामजीभाई मकवाना ने सीहोर-टाना रोड पर पक्षियों के लिए पक्षी तीर्थ नाम से एक ऐसी जगह बनाई है जो इन बेजुबानों के लिए उनके घर के समान है. रामजी भाई के बेटे मुकेश मकवाना ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि भावनगर से मात्र 22 किमी दूर सीहोर में आपको एक भी कौआ देखने को नहीं मिलेगा लेकिन पक्षी तीर्थ के कारण आप भावनगर में 50 कौए एक बार में देख सकते हैं.
लगा दी अपनी सारी जमा पूंजी
पक्षी तीर्थ में कौए, मोर के साथ साथ 15 तरह के पक्षी देखे जा सकते हैं. मुकेश के अनुसार उनके पिता रामजीभाई का ये सपना था कि वह पक्षियों के लिए एक खास जगह बनाएं. उन्होंने अपने इस सपने को पूरा करने के लिए अपने रिटायरमेंट में मिले सारे पैसे लगा दिए. लगभग 90 वर्षीय रामजीभाई एक सेवानिवृत शिक्षक हैं. उन्होंने 35 सालों तक एक शिक्षक के रूप में बच्चों को पढ़ाया और अब खुद से पक्षियों की देखभाल कर रहे हैं.
इस उम्र में भी रामजीभाई पक्षी तीर्थ आश्रम के परिसर में हर रोज लगभग 300-400 पक्षियों का पेट भरने के लिए 5 किलोग्राम दाना डालते हैं. ये हरा-भरा परिसर न केवल पक्षियों के लिए आराम और भोजन का स्थान है, बल्कि ये स्थानीय लोगों के लिए एक व्याख्या केंद्र के रूप में भी जाना जाता है.
40 साल से कर रहे ये नेक काम
रामजीभाई का कहना है कि हमारे शास्त्रों ने जीवदया को सर्वोच्च गुणों में से एक माना गया है. आश्रम की शुरुआत इस विचार से हुई कि मनुष्यों के लिए अन्नक्षेत्र यानी मुफ्त भोजन देने वाले बहुत से स्थान हैं. वहीं जानवरों के लिए पंजरापोल हैं लेकिन पक्षियों का क्या है? हमने शहरीकरण की अपनी दौड़ में उनमें से बहुत से उनके आशियाने छीन लिए. यही सब सोचकर रामजीभाई के मन में पक्षी तीर्थ का विचार आया. रामजीभाई कहते हैं “मैंने सिर्फ शुरुआत की, आगे का काम अब कई स्वयंसेवकों द्वारा किया जा रहा है.”
रामजीभाई ने कई तंबाकू के डिब्बे इकट्ठे किये हुए हैं, जो सौराष्ट्र में आम हैं. वह इनमें तंबाकू भरने की जगह पक्षियों के लिए बाजरा और अन्य अनाज भरते हैं और उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर रख देते हैं. वह पिछले 40 साल से अपनी पत्नी के साथ मिलकर पक्षियों को दाना-पानी देने का काम भी कर रहे हैं.
इस उम्र में भी वह एक दिन की छुट्टी नहीं लेते. उनका कहना है कि “मैं आराम करूंगा तो मेरे पक्षी क्या खाएंगे.” रामजीभाई ने पक्षी तीर्थ को जिस सुंदरता से सजाया है उसे देखने हर रोज यहां कई पर्यटक पहुचंते हैं.