हमारे आस-पास खाने-पीने की अंसख्य चीज़ें हैं. हम इंसान हैं और हमारे लिए ये कहना गलत नहीं होगा कि हम ‘कुछ भी खा सकते हैं’. पेड़ों की जड़ से लेकर समंदर में पाए जाने वाले जीव त सबकुछ इंसान की थाली का हिस्सा बन चुके हैं. मशरूम भी हमारे खाने का अहम हिस्सा है. दुनियाभर में 2000 से भी ज़्यादा प्रजातियों के मशरूम पाए जाते हैं इनमेंं से 283 प्रकार के मशरूम्स को खाया जा सकता है यानि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है. कुछ ऐसे मशरूम भी हैं जिन्हें अगर लोगों ने खा लिया तो ये खतरनाक साबित हो सकते हैं. पहले मशरूम सिर्फ़ जंगलों में ही पाए जाते हैं, आज बहुत सारे इंसान खुद इसकी खेती कर लाखों कमा रहे हैं.
गौरतलब है कि इंसान कितना भी चतुर हो लेकिन असली कलाकार तो प्रकृति है. कुछ ऐसी चीज़ें होती हैं जो सिर्फ़ प्रकृति की ही गोद में मिलती है. इंसान कई प्रयास करने के बावजूद इसकी खेती करने में असफ़ल रहा. झारखंड की धरती पर एक ऐसा मशरूम होता है जो सिर्फ़ साल में एक बार, एक खास पड़े के नीचे ही उगता है (Rare Rugda Mushroom of Jharkhand). गुच्छी मशरूम की तरह ही अब तक इंसान इस मशरूम की खेती नहीं कर पाया है.
झारखंड का दुर्लभ रगड़ा मशरूम
भारत की जलवायु ऐसी है कि यहां कई तरह की फसलें होती हैं. भारत के कई फल-सब्ज़ियों को GI Tag भी मिल चुका है- जैसे नागपुर का संतरा, इलाहाबाद का सुर्ख अमरूद, बिहार की शाही लीची, नासिक के अंगूर. भारत के छोटा नागपुर पठार स्थित राज्य झारखंड को लोग आदिवासी समाज, पिछड़ा राज्य के नाम से ही जानते हैं. हकीकत में झारखंड की मिट्टी को प्रकृति ने ऐसे कई फल-सब्ज़ियों से सजाया है जो और कहीं नहीं मिलते. इस राज्य के लगभग एक-चौथाई हिस्से में जंगल हैं. इन जंगलों में साल, महुआ, बांस आदि के पेड़ मिलते हैं.
धरती के नीचे उगने वाला मशरूम
झारखंड की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति. बहुत से लोगों का जीवन ही जंगल पर ही आश्रित है, लोग जंगल में जाकर लकड़ियां, औषधीय पौधे, पत्ते आदि इकट्ठा करते हैं, उनसे चीज़ें (सूप, झाड़ू, दतमन, दोना-पत्तल) बनाते हैं और अपना गुज़ारा करते हैं. झारखंड की धरती पर ही साल के पेड़ के नीचे उगता है दुर्लभ मशरूम, रुगड़ा मशरूम. ज़्यादातर मशरूम मिट्टी के ऊपर होते हैं लेकिन ये शायद दुनिया का इकलौता ऐसा मशरूम है जो धरती के नीचे होता है.
मटन जैसा स्वाद, धरती के अंदर उगता है
शाकाहारी मटन की बात करें तो कटहल को शाकाहारी मटन कहा जाता है. लेकिन झारखंड की धरती पर उगने वाला रगड़ा मशरूम असल शाकाहारी मटन है. ये मशरूम साल में सिर्फ़ एक बार यानि बरसात के मौसम में ही मिलता है. इसी वजह से इनकी कीमत काफ़ी ज़्यादा होती है. आदिवासी समूह बनाकर जंगल में जाते हैं और इन्हें इकट्ठा करते हैं. वे इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाई के रूप में भी करते हैं.
औषधीय गुणों से भरपूर
ETV Bharat के लेख के अनुसार, रुगड़ा मशरूम न सिर्फ़ स्वाद के मामले में बल्कि पोषण के मामले में भी आगे है. रुगड़ा मशरूम में भारी मात्रा में प्रोटीन और फ़ाइबर मौजूद होता है. कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसे खाने से इम्युनिटी भी बढ़ती है. बीपी, शुगर और दिल के मरीज़ों के लिए बहुत फ़ायदेमंद है. झारखंड के लोगों को बरसात के मौसम में इस मशरूम का बेसब्री से इंतज़ार रहता है. इसकी कीमत हज़ारों रुपये प्रति किलोग्राम तक जा सकती है. हालांकि ये शाकाहारी है लेकिन कुछ लोग इसे मटन और चिकन में मिलाकर भी बनाते हैं.
बरसात के मौसम में ये कुछ लोगों की आजीविका का एकमात्र साधन भी बन जाता है.