गुरही जलेबी के ओरी बढ़य से पहिले तनी जलेबी क इतिहास-भूगोल थोड़य में जानि लिहल जाय. जलेबी असल में अपने देश क मूल मिठाई नाहीं हौ. जलेबी शब्द अरबी के ’जलाबिया’ या फारसी के ’जलिबिया’ से निकलल हौ. अपने देश में जलेबी फारसी जबान वाले तुर्की आक्रमणकारिन के साथे आइल. एह हिसाब से भारत में जलेबी क इतिहास कुल मिलाइ के 500 साल पुराना कहल जाइ सकयला. एह दौरान इ मिठाई अपने रस, अउर गुण के नाते हर भारतीय क पसंदीदा बनि गइल. हलांकि जलेबी के भारतीय मिठाई मानय वाला भी कम नाहीं हउअन. लोगन क कहना हौ कि एकर असली नाव ’जल-वल्लिका’ रहल. रसभरी रहले के नाते एकर इ नाव पड़ल. इहय ’जल-वल्लिका’ बिगड़ि-बिगड़ि के जलेबी बनि गइल. जलेबी गांव देहात से लेइ के नगर महानगर तक जल्दी ही आपन धाक जमाइ लेहलस. जलेबी क एक खासियत इ भी हौ कि अमीर से लेइ के गरीब तक, इ मिठाई सबके पहुंच में रहयला.
जलेबी खाली मिठास क ही माध्यम नाहीं हौ, इ सेहत क साधन भी हौ. दूध, दही के साथे जहां जलेबी क सवाद दुगुना होइ जाला, ओही इ नुस्खा सेहत बदे भी बहुत कारगर होला. लोग रबड़ी अउर मलाई के साथे भी जलेबी खालन. बनारस में दही के साथे जलेबी खाए क परंपरा हौ. सबेरे के नाश्ता में लोग गरमा गरम जलेबी अउर दही पसंद करयलन. गरम जलेबी माइग्रेन में रामबाण जइसन काम करयला. सबेरे दूधे के साथे जलेबी खइले से हर तरह क सिर दर्द में अराम मिलयला, वजन भी बढ़यला. जादा कैलोरी के नाते जलेबी तनाव मिटावय में भी मददगार हौ. जलेबी क लगातार सेवन करय वालन क चमड़ी कोमल रहयला, चेहरा खिलल रहयला, सांस क बीमारी नाहीं होत. लेकिन ध्यान रहय, चीनी वाली जलेबी जादा खइले से नुकसान भी करयला.
सवाद के साथे सेहत क भी लाभ लेवय के होय त गुरही जलेबी खाए के चाही. गुरही जलेबी में फायदा ही फायदा हौ. खास कइ के औरतन बदे गुरही जलेबी मिठाई के साथे सौ मरज क एक दवाई हौ. गुरही जलेबी क मतलब इ हौ कि जलेबी छनले के बाद गुड़े से बनावल गइल सीरा में डूबावल जाला. यानी गुरही जलेबी क रस चीनी के बदले गुड़े क होला. बस एही रस से एकर गुणधर्म बदलि जाला. जवन गुण गुड़े में होला, उ कुल जलेबी में आइ जाला. बाकी जलेबी वाला गुण त रहबय करयला. गुड़े में आयरन अउर कैल्शियम क भरपूर मात्रा रहयला. इ दूनों तत्व औरतन क सबसे बड़ी जरूरत हयन. हर महीना मासिक धरम के नाते औरतन के देही में आयरन, कैल्शियम क कमी होइ जाला. जवने के नाते औरतन के तरह-तरह क बीमारी पकड़य लगयला. औरत लोग इ कमी पूरी करय बदे आयरन, कैल्शियम क गोली खालिन. लेकिन गुरही जलेबी खाए वाली औरतन के आयरन, कैल्शियम क गोली खाए क जरूरत नाहीं पड़त. गुरही जलेबी से खून भी साफ होला. चमड़ी क रोग नाहीं होत. गांव-देहात क केतना औरत आयरन क कमी पूरा करय बदे गुड़-चना भी खालिन. लेकिन गुरही जलेबी क कवनो जोड़ नाहीं हौ.
गुरही जलेबी अपने गुण के नाते ही औरतन क पसंदीदा मिठाई हौ, खास कइ के गांव, देहात में. गांव, देहात में हाट, मेला में जहां भी गुरही जलेबी क दुकान रही, उहां औरत लोग टूटि पड़यलिन. या जहां औरतन क भीड़ देखाइ जाय त समझि ल मेला में उहां गुरही जलेबी छनत हौ. गुरही जलेबी औरतन के साथे मरदन बदे भी फायदेमंद हौ. डाइबिटीज एह समय हर घरे क बीमारी होइ गइल हौ. गुरही जलेबी डाइबिटीज से बचावय में मददगार हौ. गुरही जलेबी बरसात अउर जाड़ा के मौसम में ही खाए के चाही. जाड़ा में एकर मांग जादा होला. पूर्वांचल में कजरी, तीज के साथे गुरही जलेबी छनय शुरू होइ जाला, अउर जाड़ा भर छनयला. जाड़ा में नाश्ता के साथे गुरही जलेबी खइले से नसे में खून नाहीं जमत, देही में गरमी, फुर्ती बनल रहयला. गुरही जलेबी क खासियत इ भी हौ कि इ तीन दिना तक खराब नाहीं होत. जबकि चीनी वाली जलेबी, इमिरिती एक दिना में ही खराब होइ जाला.
जब गुड़ सस्ता अउर चीनी महंगा बिचात रहल, त गुरही जलेबी गांव, देहात में गरीब-गुरबन क मिठाई रहल. देखय में ओकर रंग भी करिया रहय. पइसा वाला लोग गुरही जलेबी के हाथे न लगावयं. लेकिन डाइबिटीज क बीमारी पूरा खेलय पलटि देहलस. आज अमीरन क जोर चीनी के बदले गुड़े पर रहयला. गुडे़ क बनल मिठाइ क सेवन अब अमीरी क निशानी हौ. गुड़े क मांग बढ़ले से ओकर दाम भी बढ़ि गयल हौ. एह से गुरही जलेबी अब गरीब-गुरबन के पहुंच से बहरे भयल जात हौ. गुरही जलेबी बनावय में समय, मेहनत भी जादा लगयला. हलुवाई लोग मेहनत अउर महंगाई क हिसाब लगाइ के गुरही जलेबी बनावय से बचयलन. लेकिन कई परंपरागत हलुवाई आज भी गुरही जलेबी बनावयलन. ओनकरे इहां गाहकन क लाइन भी लगल रहयला.