सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के संगे-संगे बांग्लादेश के मुक्ति आंदोलन आ पड़ोसी देश नेपाल में लोकतंत्र के बहाली के आंदोलन में भी जे पी के बड़हन भूमिका रहल. जब देश में सन् 1975 में इंदिरा गांधी के शासन में आपातकाल लागू भईल. ओह समय देश में दूसरी आजादी के लड़ाई भी बहतर साल के उमीर में जे पी के अगुवाई में ही शुरू भईल.एकरा अलावा कांग्रेस के नेतृत्व जब देश में आजादी के संघर्ष चलत रहें, ओह समय कांग्रेस के मजदूर यूनियन के काम जे पी के जिमे रहल. जे पी के नेतृत्व में कामगारन के न्यूनतम मजदूरी, पेंशन, चिकित्सा जइसन सुविधा लागू करावें में जे पी के महत्वपूर्ण भूमिका रहल. एह तरह से देखल जाय त देश के आजादी के संघर्ष, मजदूर आंदोलन के नेतृत्व आ देश की आजादी के बाद जब लोकतंत्र के सेहत पर जब खतरा मंडराए लागल-ओह समय भी जे पी बीमारी के अवस्था में युवा शक्ति के संगठित कर देश के अगुवाई कइनीं. जे पी अपना जीते-जी बुद्धिजीवियों, कवि-लेखक-पत्रकारों के लिए एक मिथक बन गईल रहनीं. भारत में देश की आजादी के पहिले अउर आजु भी अइसन मिथक महात्मा गांधी के अलावा अउर केहू ना भईल. रामधारी सिंह दिनकर के एगो कविता में जे पी के अइसने योगदान के चर्चा बा-
जे पी के सम्पूर्ण क्रांति के जोश ओह समय अतना गजब के रहल कि ओकरा आगे कवनों सोच विचार आ ओइसने आचरण- व्यवहार के अपना जीवन में उतारे के जरूरत तब नौजवानन के ना समझ में आईल.नतीजा ई भईल कि जहाँ एक ओर जे पी के सपना के साकार करें खातिर हर झुगी-झोपड़ी से क्रांति के गुहार लगावत नौजवान लोग कहत रहल कि-
दुनिया के हर क्रांति के अब तक के सबक ई बा कि- क्रांति के कोख से जनमल राजनीतिक दल सबसे पहिले सत्ता हासिल भईला के बाद क्रांति के घोषित आदर्श-उद्देश्य के भुलावें के कोशिश करें ला. जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जनता पार्टी के सरकार भी लगभग ओही स्थिति के प्राप्त भईल. महात्मा गांधी जइसे देश के आजादी के बाद अलग-थलग पड़ी गईल रहनीं, लगभग ऊहे स्थिति जनता सरकार के दो-ढाई साल के अन्दर जे पी के भी नसीब भईल. जे पी एह बात के महसूस जरूर करत रहलन, बाकि केहु के सामने मुखर होके ना बतवनीं. जे पी आंदोलन के अंततः का हश्र होई- एह बात के लक्षित करें में भले कवनों राजनेता चूक गईल होखें, बाकि जन कवि नागार्जुन के आँख ऊँ ओझल ना हो पावल. सन् 1978 के आसपास के एगो कविता में नागार्जुन के एह कहनाम पर गौर कइल जाय-
2022-10-11