अमेरिका में लगातार दूसरी तिमाही में इकॉनमी (US Economy) में गिरावट आई है। चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में पिछले साल के मुकाबले जीडीपी में 0.9 फीसदी गिरावट आई है। लगातार दो तिमाहियों में गिरावट को मंदी (recession) कहा जाता है। हालांकि आधिकारिक तौर पर इसे मंदी नहीं कहा गया है।
इकॉनमी में लगातार दो तिमाहियों में गिरावट को मंदी कहा जाता है। इससे पहले अमेरिकी इकॉनमी में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सालाना आधार पर 1.6 प्रतिशत की गिरावट आई थी। सप्लाई चेन की समस्याओं, कमोडिटीज की कीमत और लेबर कॉस्ट में तेजी और लेबर तथा तेल की बढ़ती कीमत के कारण अमेरिका में महंगाई चार दशक के चरम पर है। इससे देश में मंदी की आशंका जोर पकड़ रही है। अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी है और अगर वह मंदी की चपेट में आती है तो इसका असर पूरी दुनिया पर देखने को मिल सकता है।
पॉलिसी रेट में बढ़ोतरी
उल्लेखनीय है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व (केंद्रीय बैंक) ने बुधवार को लगातार दूसरी बार नीतिगत दर में 0.75 प्रतिशत की वृद्धि की। हालांकि, फेडरल रिजर्व के प्रमुख जेरोम पॉवेल और कई अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि अर्थव्यवस्था में कुछ नरमी जरूर है, लेकिन उन्हें मंदी को लेकर संदेह है। इसका कारण श्रम बाजार में मजबूती है। 1.1 करोड़ नई नौकरियों के अवसर उपलब्ध हुए हैं और बेरोजगारी दर 3.6 प्रतिशत है जो अपेक्षाकृत काफी कम है। पिछले साल अमेरिकी की आर्थिक वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत रही थी।