सफ़ेद बर्फ़ से ढके अंटार्कटिका में बहता है लाल रंग का ‘खूनी झरना’, आयरन या कुछ और है वजह?

अंटार्कटिका के बारे में तो हर कोई जानता है, मोटी बर्फ़ से ढका दुनिया का ऐसा महाद्वीप जहां महीनों सूरज की रौशनी नहीं पहुंचती. बर्फ़ से ढके इस महाद्वीप में एक ऐसी जगह है जहां रक्त झरना बहता है

अंटार्कटिका का रहस्यमयी ब्लड फ़ॉल

blood falls Antarctica

पृथ्वी के सबसे दक्षिण में मौजूद अंटार्कटिका महाद्वीप दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा महाद्वीप है. 1959 की अंटार्कटिक ट्रीटी सिस्टम के अनुसार, यहां 30 देशों की सरकार है. ट्रीटी के मुताबिक, इस महाद्वीप में सैन्य गतिविधियां, खनन, परमाणु विस्फोट, परमाणु वेस्ट फेंकने पर पाबंदी है. अंटार्कटिका की अधिकतर ज़मीन बर्फ़ से ढकी है. सोचने वाली बात ये है सफ़ेद बर्फ़ से ढके महाद्वीप में खूनी लाल रंग का झरना कैसे हो सकता है?

1911 में ब्लड फ़ॉल्स की खोज

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सफ़ेद बर्फ़ की चादर से ढके अंटार्कटिका में 1911 में ऑस्ट्रेलिया के एक्स्प्लोरर और जियोलॉजिस्ट, ग्रिफ़िथ टेलर ने ब्लड फ़ॉल्स की खोज की. वैज्ञानिकों को एक खड़ी चट्टान (Cliff) का एक हिस्सा दिखा जिसका रंग गहरा लाल था. उन्हें लगा कि शेवाल (Algae) की वजह से पानी का रंग बदला होगा जिससे चट्टान का रंग भी बदल गया. गौरतलब है कि इसका कोई सबूत नहीं था. आस-पास सफ़ेद बर्फ़ और बीच में बहता ‘रक्त झरना’, मानो ग्लेशियर को काटने पर खून निकल रहा हो.

किस ग्लेशियर से निकलता है ये झरना?

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अंटार्कटिका के McMurdo Dry Valley में Taylor Glacier से निकलता है रक्त झरना. ये झरना अंटार्कटिका के Bonney झील में गिरता है. कुछ लेखों के मुताबिक, ये दुनिया का सबसे ठंडा ग्लेशियर है और यहां का एवरेज तापमान -17 डिग्री सेल्सियस है. ब्लड फ़ॉल्स ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों का ध्यान खींचा. इसकी वजह ढूंढने के लिए कई शोधार्थियों ने शोध किया. कई रिज़ल्ट्स पाए गए लेकिन कुछ ठोस वजह पता नहीं चल रही थी. गौरतलब है कि कुछ साल पहले रक्त झरने के रहस्य की वजह पता चली.

ये है ब्ल्ड फ़ॉल्स के रंग की वजह

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National Geographic में छपे एक लेख के अनुसार, कई वैज्ञानिकों और एक्सप्लोरर्स की टीम ने पूरे इलाके की स्टडी की. ग्लेशियर के सतह के नीचे की इमेजिंग से रहस्य के उलझे तार सुलझने लगे. ग्लेशियर के नीचे सब ग्लेशियल नदियों और सब ग्लेशियल झीलों का एक कॉम्प्लेक्स नेटवर्क मिला. सारी सब ग्लेशियल नदियां और सब ग्लेशियल झीलें खारे पानी से भरे थे. इस खारे पानी में लोहे की मात्रा बेहद ज़्यादा थी. इसी वजह से झरने का रंग गहरा लाल हो गया.

ग्लेशियर के अंदर है खारा पानी

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इस स्टडी के अनुसार, सब ग्लेशियल नदियों और सब ग्लेशियल झीलों का खारा पानी लैटेंट हीट ऑफ़ फ़्रीज़िंग, और नमक की वजह से लिक्विड फ़ॉर्म में है. बता दें कि खारे पानी का फ़्रीज़िंग पॉइंट शुद्ध पानी से कम होता है. और जैसे-जैसे खारा पानी जमता है उससे उष्मा निकलती है जिस वजह से बर्फ़ पिघलती है और झरने का पानी बहता है.

शोधार्थियों की टीम ने रेडियो इको साउंडिंग (RES) की सहायता से ग्लेशियर के सतह के नीच के हिस्से की मैपिंग की. शोधार्थियों के मुताबिक खारे पानी को ब्ल्ड फ़ॉल्स तक पहुंचने में लगभग 1.5 मिलियन साल लगते हैं. Taylor ग्लेशियर के नीचे की झील के खारे पानी में बेडरॉक से आयरन मिलता गया. और गुज़रते वक्त के साथ खारे पानी में आयरन की मात्रा भी बढ़ती गई.

ग्लेशियर के अंदर हैं कई माइक्रोऑर्गैनिज़्म्स

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ब्ल्ड फ़ॉल्स की ऊंचाई किसी पांच मंज़िला इमारत जितनी है. Earth Sky में छपे लेख के मुताबिक 2015 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेनेसी के साइंटिस्ट्स ने भी ब्ल्ड फ़ॉल्स पर एक स्टडी रिलीज़ की. Jill Mikucki की टीम ने शोध करने के बाद बताया कि ब्ल्ड फ़ॉल्स के पानी में ऑक्सिजन नहीं है और उसमें कम से कम 17 तरह के माइक्रोऑर्गैनिज़्म्स हैं. ये माइक्रोऑर्गैनिज़्म्स सल्फ़ेट के सहारे जीवित रहते हैं और सल्फ़ेट रिडक्शन के ज़रिए एनर्जी बनाते हैं.

ये माइक्रोऑर्गैनिज़्म्स अति विषम जलवायु में रहते हैं. ये जलवायु कुछ वैसी ही है जब पृथ्वी पर ऑक्सिजन नहीं था. इन माइक्रोऑर्गैनिज़्म्स से हमें उस समय की पृथ्वी पर जीवन कैसा था, इस तरह के कई सवालों के जवाब मिल सकते हैं. यही नहीं इनसे अन्य ग्रहों पर जीवन हैं या नहीं ऐसे रहस्यों की भी गुत्थी सुलझ सकती है.

ब्ल्ड फ़ॉल्स तक सिर्फ़ हेलिकॉप्टर से ही पहुंचा जा सकता है. अंटार्कटिक रिसर्च स्टेशन्स या रॉस समुद्र तक आने वाले क्रुज़ शिप से हेलिकॉप्टर लेकर ये रक्त झरना देख सकते हैं.