हिमाचल प्रदेश का वन क्षेत्र दो साल में 915 वर्ग किलोमीटर बढ़ गया है। यह वृद्धि खुले वन क्षेत्रों में हुई है। खुले वन क्षेत्रों में वे वन आते हैं, जहां 10 से 40 फीसदी तक सूर्य की रोशनी पहुंचती है।
हिमाचल प्रदेश का वन क्षेत्र दो साल में 915 वर्ग किलोमीटर बढ़ गया है। वर्ष 2019 में यह क्षेत्र 37,033 वर्ग किलोमीटर था, जबकि अब बढ़कर 37,948 पहुंच गया है। यह वृद्धि खुले वन क्षेत्रों में हुई है। खुले वन क्षेत्रों में वे वन आते हैं, जहां 10 से 40 फीसदी तक सूर्य की रोशनी पहुंचती है। यह खुलासा राज्य सरकार की पर्यावरण रिपोर्ट में हुआ है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि खेतों और बगीचों में कीटनाशक दवाओं के छिड़काव से पर्यावरण को नुकसान भी पहुंचा है। इसमें प्रदेश में वनों में आग की घटनाएं बढ़ने का जिक्र भी किया गया है। वन क्षेत्र बढ़ने से वन संपदा का विस्तार तो हुआ ही है, साथ ही पौधों की प्रजातियों में भी सात फीसदी वृद्धि हुई है।
देश में कुल 89,500 वन्य जीवों की प्रजातियां हैं। वन्य जीवों के लिए संरक्षित क्षेत्र देश के मुकाबले प्रदेश में काफी कम 1.7 फीसदी है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि राज्य में सरकारी भवनों में सौर ऊर्जा तकनीक का बेहतर दोहन हो रहा है। प्रदेश फल उत्पादन क्षेत्र में हर साल नौ लाख श्रम दिवस सृजित हो रहे हैं।
स्वास्थ्य को लेकर रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड काल में हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य ढांचा मजबूत हुआ है। इस दौरान ऑक्सीजन प्लांट और वेंटिलेटर सुविधा का विस्तार हुआ। उद्योग क्षेत्र में भी तेजी से विकास हुआ। खनन से पर्यावरण पर असर पड़ा है।
पर्यटन स्थलों में ठोस कचरे का पर्यावरण को हो रहा नुकसान
पर्यटन स्थलों में ठोस कचरे से प्रदेश के पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। हालांकि इस दिशा में सरकार के अभी तक के प्रयासों को सराहा गया है। परिवहन सड़क सुरक्षा की चुनौती, ईंधन नीति और इलेक्ट्रिक वाहन नीति पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभाएगी।
रिपोर्ट में जल संसाधन खासकर हिमखंडों के संरक्षण को प्रदेश के पर्यावरण से जोड़ा है। प्राकृतिक आपदा के दृष्टि से राज्य काफी संवेदनशील है। बाढ़ और भूकंप से यहां ज्यादा नुकसान पहुंचता रहा है।