रिपोर्ट में खुलासा: अवैध डंपिंग से हिमाचल की गोबिंद सागर झील में घट गया मछली उत्पादन

साल 2016-17 से लेकर 2022 तक झील में होने वाले मछली उत्पादन में करीब 400 मीट्रिक टन की गिरावट दर्ज की गई है। पांच से छह साल पहले झील में 700-800 मीट्रिक टन मछली उत्पादन हर साल होता था।

गोबिंद सागर झील।

हिमाचल प्रदेश की गोबिंद सागर झील में मत्स्य उत्पादन में कमी आने का सबसे बड़ा कारण अवैध डंपिंग है। अवैध डंपिंग होने के कारण मछलियों को प्रजनन के लिए उपयुक्त जगह नहीं मिल पा रही है। मछलियां फेफड़ों से सांस लेती हैं और अवैध डंपिंग की सिल्ट सांस से उसके अंदर जाती है। इससे यहां इनको सांस लेने में तो परेशानी होती है। कई मछलियों की मौत भी हो जाती है।  साल 2016-17 से लेकर 2022 तक झील में होने वाले मछली उत्पादन में करीब 400 मीट्रिक टन की गिरावट दर्ज की गई है। पांच से छह साल पहले झील में 700-800 मीट्रिक टन मछली उत्पादन हर साल होता था। लेकिन अब इसकी दर करीब 350 मीट्रिक टन ही रह गई है। झील में मछली उत्पादन में कमी के कारणों को जानने के लिए मत्स्य रिसर्च सेंटर कोलकाता की टीम ने झील की मिट्टी और पानी के सैंपल लेकर शोध किया है।

रिपोर्ट में हुआ खुलासा हुआ कि झील में अवैध डंपिंग, कम बारिश की वजह से प्रजनन के समय में झील में पानी का स्तर कम होना, कोलडैम लगने के बाद झील में सिल्वर कार्प मछली के उत्पादन में लगातार कमी दर्ज हुई है। जबकि झील में सिल्वर कार्प मछली का उत्पादन सबसे ज्यादा होता है। अब उत्पादन बढ़ाने के लिए भी सुझाव दिए गए हैं, जिन पर मत्स्य विभाग कार्य शुरू करेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि झील में अवैध डंपिंग से नदी, नालों के किनारे बंद हो गए हैं। मछलियों को प्रजनन के लिए इधर-उधर जाने की जगह नहीं बची है। जबकि मछली प्रजनन के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाती है। छोटे साइज के बीज झील में टिक नहीं पाते हैं। रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने विभाग को सुझाव दिया है कि झील में मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए 70 से 100 मिलीमीटर तक का ही बीज डालें। बड़ी मछली डालने से वह आसानी से झील में बढ़ती है। इससे झील में मछली का उत्पादन बढ़ेगा।

झील में सबसे ज्यादा होती है सिल्वर कॉर्प 

इस झील में सबसे ज्यादा सिल्वर कॉर्प मछली का उत्पादन होता है। 1974-75 में दयोली फिश फॉर्म में इस मछली का करीब 10 से 15 मछली का बीज कहीं से बहकर पहुंचा था। जिसके बाद इस बीज को झील में डाला गया और 2013-14 तक यह उत्पादन पीक पर पहुंचा। लेकिन उसके बाद कोलबांध शुरू हुआ और सतलुज का पानी उसमें रुक गया। इससे लगातार उत्पादन में गिरावट आई।

इन मछलियों का होता है उत्पादन

झील में भारतीय मेजर कॉर्प, कामन कॉर्प, रोहू, कतला, मृगल और सिल्वर कॉर्प का उत्पादन होता है। मत्स्य विभाग के अनुसार सिल्वर कॉर्प की मार्केट वैल्यू ज्यादा नहीं है, लेकिन उत्पादन ज्यादा होने से इसका मछुआरों को लाभ ज्यादा होता है।

झील में बढ़ाई जाएगी स्टॉकिंग, 1000-1200 मीट्रिक टन पहुंचेगा उत्पादन 

मत्स्य रिसर्च सेंटर कोलकाता की रिपोर्ट में मिले सुझाव पर विभाग मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए कार्य करेगा। सिल्वर कॉर्प की स्टॉकिंग बढ़ाई जाएगी। इस उत्पादन को सालाना 1000 से 1200 मीट्रिक टन पहुंचाया जाएगा। रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार अवैध डंपिंग मत्स्य उत्पादन में गिरावट का बड़ा कारण है। अगर यह बंद होती है तो उत्पादन बढ़ाने में सहयोग होगा। अब झील में 100 एमएम मछली का बीज डाला जाएगा। – सतपाल मेहता, निदेशक मत्स्य विभाग बिलासपुर