क्रांतिकारी जिन्होंने मौत को गले लगाया पर राष्ट्रीय ध्वज को धरती पर गिरने नहीं दिया

देश को अंग्रेज़ों की गिरफ़्त से आज़ाद करने के लिए हज़ारों क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी. देश के कोने-कोने से आज़ादी की हुंकार उठी थी, न जाने कितनी शहादतों के बाद हमें ये आज़ादी मिली थी. कुछ आज़ादी के मतवालों की कहानियां तो हम मुंह ज़बानी जानते हैं वहीं कुछ इतिहास की किताबों में कहीं ग़ुम हो गए हैं. ये कड़वी सच्चाई है कि ऐसे बहुत से क्रांतिकारी हैं जिनका हम नाम तक नहीं जानते और वो सरकार की रिकॉर्ड बुक में स्याही के कुछ बूंदें ही बन कर रह गए हैं.

तिरुपुर कुमारन भी उन क्रांतिकारियों में से एक हैं जिनकी कहानी कही और पढ़ी जानी चाहिए.

tirupur kumaran

पराधीन भारत के तमिलनाडु स्थित चेन्नीमलाई, ईरोड (Chennimalai, Erode) में कुमारन 4 अक्टूबर 1904 को पैदा हुए. जन्म के बाद उनका नाम ओकेएसआर कुमारास्वामी मुदालियर (OKSR Kumaraswamy Mudaliar) रखा गया. आगे चलकर लोग उन्हें प्रेम से तिरुपुर कुमारन बुलाने लगे.

भारतीयों की हालत उनसे देखी नहीं गई और अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ विचारों ने बचपन से मन में घर बनाना शुरू कर दिया. कुमारन अपने देशवासियों के साथ हो रहे रंगभेद, अत्याचार से बेहद विचलित हो गए और आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े. कुमारन का परिवार हथकरघा बुनाई (Handloom Weaving) करता था और सिर्फ़ 5 साल की उम्र में ही उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा.

19 साल की उम्र में परिवार की इच्छाओं के आगे कुमारन को घुटने टेकने पड़े और उन्होंने विवाह कर लिया. कुमरन इस दौरान एक कताई के कारखाने में असिस्टेंट बन चुके थे.

गांधी के विचारों से प्रभावित

आज़ादी की लौ को कई दिशाओं से हवा मिल रही थी. कुमारन पर भी इसका असर पड़ा. वे महात्मा गांधी के विचारों और आदर्शों से बेहद प्रभावित हुए. कुमारन ने भी बापू के आह्वान पर विरोध प्रदर्शन, सत्याग्रह आदि में हिस्सा लेना शुरू किया.

छोटी सी उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और लोग उन्हें प्रेम से तिरुपुर कुमारन कहने लगे.

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Bazarपरिवार ने चिंतित होकर क्रांतिकारी से घर लौटने की अपील की

कुमारन की आज़ादी की लड़ाई की बढ़ती गतिविधियों ने उनके परिवार की भी चिंताएं बढ़ा दीं. परिवार के सदस्य उनसे अक़सर मिलने पहुंच जाते और उनसे क्रांति में हिस्सा न लेने की अपील करते. परिवार के लोग उनके दफ़्तर तक पहुंचने लगे और सहकर्मियों से कुमारन को समझाने-बुझाने की विनती की.

परिवार की एक न सुनी देशबंधु यूथ एसोसिएशन शुरू किया

कुमारन पर परिवार के सदस्यों की चिंताओं का कोई असर नहीं हुआ. उन्होंने शायद देश को आज़ाद कराकर ही दम लेने की ठान ली थी. कुमारन ने देशबंधु यूथ एसोसिएशन (Desh Bandhu Youth Association) की नींव रखी. इस संगठन में पूरे तमिलनाडु के युवा शामिल हुए, और सभी का एक ही लक्ष्य था, ‘अंग्रेज़ों से देश की आज़ादी’. इस संगठन से कई युवा प्रेरित हुए.

Kodi Kaththa Kumaran

11 जनवरी 1932 को अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विरोध मार्च निकाला गया. बॉम्बे में महात्मा गांधी ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया और अंग्रेज़ों ने उन्हें कारावास में डाल दिया. Sri Sathya Sai Bal Vikas में छपे एक लेख के अनुसार, गांधी जी की गिरफ़्तारी के विरोध में देशभर में प्रदर्शन हुए और दंगे भड़क गए. तिरुपर में थ्यागी पी.एस.सुंदरम (Thyagi P.S Sundaram) ने भी देशभक्ति मार्च निकाला. इस प्रदर्शन में लोगों ने राष्ट्रीय ध्वज लिया हुआ था जिस पर अंग्रेज़ों ने प्रतिबंध लगाया था.

राष्ट्रीय ध्वज पकड़े हुए एक क्रांतिकारी थे तिरुपुर कुमारन. अंग्रेज़ों ने लाठीचार्ज शुरू किया लेकिन कुमारन अपनी जगह से नहीं हिले. अंग्रेज़ों ने क्रूरता दिखाते हुए प्रदर्शनकारियों पर डंडे बरसाना शुरू किया. कुमारन धरती पर गिर पड़े लेकिन उन्होंने ध्वज को ज़मीन छून नहीं दिया और सीने से लगाए रखा.

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कुमारन बेहोश हो गए. जिस बात का उनके परिवार को डर था वही हुआ, कुमारन शहीद हो गए. मौत को गले लगाने के बावजूद कुमारन ने राष्ट्रीय ध्वज को नहीं छोड़ा था.