ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ का निधन हो गया. उनके जाने पर ब्रिटेन समेत पूरी दुनिया में शोक मनाया गया. सोशल मीडिया पर लोगों ने महारानी को श्रृदांजलि दी. ऐसा करने वालों में भारतीयों की भी कमी नहीं थी. वे भारतीय जो 75 साल पहले ब्रिटेन के गुलाम थे. खैर मसला ये नहीं है कि भारतीय महारानी के लिए इतने भावुक क्यों हुए?
सवाल ये है कि महारानी के चले जाने के बाद अब भारत के अनसुलझे सवालों के जवाब कौन देगा? वे सवाल जो महारानी के जीवनकाल में भी कई बार पूछे गए पर जवाब का इंतजार इंतजार ही बना रहा. अब जबकि, भारतीय मूल के ऋषि सुनक ने ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री की ज़िम्मेदारी संभाल ली है तो भारत में एक बार फिर से इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि क्या ‘कोहिनूर’ भारत लौटेगा?
पहेली जैसा है रिश्ता
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महारानी एलिजाबेथ के साथ भारत का रिश्ता पहेलीनुमा रहा है. कभी तो हमने ब्रिटेन से अपने सवालों के जवाब मांगे और कभी उनके फैसलों को स्वीकार किया. जब महारानी का निधन हुआ तक 11 सितंबर को भारत में भी राजकीय शोक मनाने की घोषणा की गई है. कुछ लोगों के लिए यह अजीब हो सकता है कि महारानी का राजकीय शोक भारत में क्यों? जबकि अब भारत ब्रिटेन का गुलाम नहीं है!
असल में ब्रिटेन के साथ आजाद भारत के रिश्ते हमेशा सवालों के घेरे में रहे हैं. जैसे 1952 में जब महारानी एलिजाबेथ की ताजपोशी हुई तक आजाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू वहां सम्मानित अतिथि के रूप में मौजूद थे. इतना ही नहीं भारत अभी भी राष्ट्रमंडल समूह का सदस्य है. और इस मंडल की अध्यक्ष महारानी एलिजाबेथ थीं.
शायद यही कारण है कि उनके जाने का दुख भारत में भी उतना ही महसूस किया गया. भारत, जो दशकों तक ब्रिटेन का गुलाम रहा, उसने आजाद होने के बाद कभी भी ब्रिटेन की राजशाही के प्रति कटुता नहीं दिखाई पर ऐसे बहुत से अनसुलझे सवाल हैं जिनके जवाब सदियों से मांगे जा रहे हैं.
ब्रिटेन कब चुकाएगा कीमत
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कई इतिहासकार और राजनीतिक समीक्षक ये मांग करते रहे हैं कि ब्रिटेन को अपने राजपाट के दौरान लूटपाट मचाने की कीमत चुका देनी चाहिए. जुलाई 2015 में कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी एक भाषणमें यही बात कही थी. इस बात की तारीफ तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी की थी.
समीक्षक कई बार इस बात की मांग कर चुके हैं कि जब भारत ब्रिटेन के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है तो वह ब्रिटेन से अपनी हरकतों के लिए माफी मांगने के लिए भी कहे! लेकिन भारत सरकार ने इस मांग से अपने आप को आधिकारिक रूप से कभी नहीं जोड़ा. इसलिए ब्रिटेन ने भी माफी वाली बात पर कभी चर्चा नहीं की.
एलिजाबेथ अपने राज के दौरान तीन बार भारत आईं थीं. 1997 में वे भारत के 50वें स्वतंत्रता दिवस पर भारत आईं थीं. उनके आने से पहले ही भारत में काफी विरोध प्रदर्शन हुआ था. प्रदर्शन करने वालों की मांग थी कि महारानी ब्रिटेन हुकूमत की नाइसाफियों के लिए भारतवासियों से माफी मांगे.
जलियावाला बाग की यादें
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गुलाम भारत में ब्रिटेन शासकों की सबसे क्रूर यादों और यातनों में से एक है जलियावाला बाग. 13 अप्रैल को आज भी लोग उस मनहूस दिन को याद कर अफसोस करते हैं. 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग में अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारी जनरल आर डायर के आदेश पर अंग्रेजी सेना के सिपाहियों ने निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी थीं. हमले में कम से कम 379 लोग मारे गए थे.
ये हत्याकांड आज भी दोनों देशों के रिश्तों में कांटे की तरह चुभता है. जब महारानी का भारत आना हुआ था तक उनकी अमृतसर यात्रा का कार्यक्रम भी बना था. एलिजाबेथ अपने पति प्रिंस फिलिप के साथ जलियांवाला बाग गईं, वहां सिर झुकाया, 30 सेकंड का मौन रखा और शहीदों को श्रद्धांजलि दी लेकिन जो सबसे जरूरत था वो नहीं किया!
उन्होंने ब्रिटेन सैनिकों के हमले की ना तो निंदा की ना ही माफी मांगी. हालांकि उन्होंने अपने भाषण में दिलचस्प बात कहीं. महारानी ने कहा, “यह कोई रहस्य नहीं है कि हमारे अतीत में कुछ कठिन प्रकरण हुए हैं और जलियांवाला बाग ऐसा ही एक परेशान कर देने वाला उदाहरण है. लेकिन हम कितना भी चाहें, इतिहास को दोबारा लिखा नहीं जा सकता.”
कोहिनूर लौटेगा या नहीं?
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कोहिनूर दुनिया के सबसे बड़े तराशे हुए हीरों में से है. माना जाता है कि इसे भारत की हीरा खदान में तलाशा गया था. अब यह टावर ऑफ लंदन के ज्वेल हाउस में रखे एलिजाबेथ के शाही मुकुट में जड़ा हुआ है.
अलाउद्दीन खिलजी से लेकर नादिर शाह तक बहुतों ने कोहिनूर को हथिया पर यह अंत में महारानी के हिस्से आया. 1849 में अंग्रेजों ने पंजाब पर कब्जा किया और शासन शुरू किया. तब इस हीरे को एलिजाबेथ की पूर्वज महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया. उसके बाद से कोहिनूर कभी भारत नहीं लौटा.
भारत के अलावा पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान भी कोहिनूर पर अपना दावा करते हैं. हर देश के पास कोहिनूर से संबंधित अपनी कहानियां हैं पर ब्रिटेन ने कभी इन दावों को सच नहीं माना. ना ही कोहिनूर को वापिस करने के संबंध में कोई पहल की. अब यह ताज एलिजाबेथ के बेटे चार्ल्स की बतौर महाराज ताजपोशी के बाद उनकी पत्नी कैमिला पहनेंगी. और विवादों का भार उनके सिर आएगा.
भारत के लोगों की नज़र ऋषि सुनक पर भी होंगी. दरअसल, ब्रिटेन के इतिहास में पहली बार कोई भारतीय मूल का व्यक्ति प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर बैठा है. लिहाज़ा उनसे भारत के लोगों को बहुत उम्मीदें हैं.
वो बदलाव जो मिटा रहे है यादें
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महारानी एलिजाबेथ का जिस दिन स्वर्गवास हुआ, ठीक उसी दिन देश में एक नया फैसला लिया गया. जिसे औपनिवेशिक अतीत को मिटाने वाला कदम कहा जा सकता है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ब्रिटिश राज के “उत्पीड़न और गुलामी का प्रतीक” माने जाने वाली राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक जाने वाली सड़क ‘राजपथ’ को ‘कर्त्तव्य पथ’ का नया नाम दिया. उन्होंने अपने भाषण में कहा कि “गुलामी का प्रतीक राजपथ आज इतिहास बन गया.”
भारत में युवा भले ही एलिजाबेथ के जाने का शोक मना रहे हैं पर उन लोगों की संख्या भी कम नहीं जो एलिजाबेथ को “औपनिवेशिक सोच” की जीती जागती कड़ी मानते थे. इसके पहले भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा था कि वे गुलामी की हर याद को मिटा देना चाहते हैं ताकि दुनिया एक नए भारत से परिचय करे. 5 सितंबर को भारतीय नौसेना के नए विमान वाहक जहाज आईएनएस विक्रांत को कमीशन करने के दौरान भी उन्होंने इसी बात पर बल दिया था. उसी दिन भारतीय नौसेना के नए झंडे का उद्घाटन हुआ.
आपको बता दें कि भारतीय नौसेना का पुराना झंडा “औपनिवेशिक अतीत” का ही हिस्सा था पर अब यह पूरी तरह से नए भारत का प्रतीक है.