Rolex की घड़ियां किसी पहचान की मोहताज नहीं. इस ब्रांड की घड़ियां अपने शाही लुक और महंगे दाम के लिए जानी जाती हैं. हर कोई इस ब्रांड की वैल्यू जानता है लेकिन बहुत कम लोग हैं जिन्हें इस बात की जानकारी होगी कि ये ब्रांड शुरू किसने, कब और कैसे किया.
आपको जानकर हैरानी होगी कि एक अनाथ युवक की सोच और उसकी मेहनत ने इस घड़ी को दुनिया भर में मशहूर कर दिया. एक शताब्दी से भी पहले एक शख्स ने ऐसी घड़ियां बनाने के बारे में सोचा जो दुनिया में सबसे अलग हों, उसने अपने साले के साथ मिल कर घड़ियां बनानी शुरू कीं और देखते ही देखते Rolex को अजर-अमर कर गया.
तो चलिए आज की ब्रांड स्टोरी में जानते हैं उस ब्रांड की कहानी जिसे खड़ा किया घड़ियां बनाने वाली एक फर्म में काम करने वाले एक अनाथ लड़के ने.
रोलेक्स को खड़ा करने वाले दो लोग थे, एक हैंस विल्सडॉर्फ और दूसरे अल्फ्रेड डेविस. कंपनी की सोच से लेकर इसे बड़ा बनाने तक में मुख्य भूमिका रही हैंस विल्सडॉर्फ की. 22 मार्च 1881 को जर्मनी के कुलम्बाच में जन्मे विल्सडॉर्फ का बचपन आम बच्चो जितना सरल नहीं था. दो भाइयों और एक बहन के बीच विल्सडॉर्फ अपने माता पिता की दूसरी संतान थे. उनके पिता का अच्छा कारोबार था लेकिन परेशानियां उस समय बढ़ गईं जब पहले विल्सडॉर्फ की मां और फिर उनके पिता इस दुनिया को अलविदा कह गए. 12 साल के विल्सडॉर्फ और उनके भाई बहन अनाथ हो गए.
माता पिता के जाने के बाद उनकी देखभाल का जिम्मा उनके अंकल्स पर था. उन्होंने विल्सडॉर्फ की वो संपत्ति बेच दी जो पहले उनके दादा और फिर उनके पिता की थी. हालांकि विल्सडॉर्फ और उनके भाई को अच्छे बोर्डिंग स्कूल में रखा गया जहां उनकी पढ़ाई अच्छी तरह से हुई. अपनी आत्मकथा में विल्सडॉर्फ ने अपने अंकल्स का जिक्र करते हुए कहा था कि उन्होंने उन्हें कम उम्र में ही आत्म निर्भर बना दिया.
19 साल की उम्र में शुरू हुआ सफर
विल्सडॉर्फ गणित और अन्य भाषाओं में अच्छे थे. इससे उन्हें विदेश जा कर काम करने में मदद मिली. 19 साल की उम्र में विल्सडॉर्फ ने घड़ियों की दुनिया में कदम रखा. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत कुनो कोर्टेन नामक घड़ी बनाने वाली एक कंपनी से की. यहां उनका काम ये देखना था कि घड़ियां सही समय बता रही हैं या नहीं. विल्सडॉर्फ ने यहीं से घड़ियों के बारे में विस्तृत जानकारी और इनके उत्पादन के बारे सीखा.
ऐसे शुरू हुई Rolex
फिर 1903 में वो समय आया जब विल्सडॉर्फ लंदन चले गए और वहां घड़ियां बनाने वाली एक बड़ी कंपनी में नौकरी करने लगे. ये वही दशक था जिसमें विल्सडॉर्फ अपनी तकदीर लिखने वाले थे. 1905 में वह समय आया जब विल्सडॉर्फ ने दूसरों की नौकरी करने की बजाए खुद का कारोबार खड़ा करने के बारे में सोचा. उनके पास घड़ियों की दुनिया के लिए सुनहरे भविष्य का सपना था. उन्होंने अपने इस सफर के लिए साथी चुना अपने साले अल्फ्रेड डेविस को. इसी साल उन्होंने अल्फ्रेड के साथ मिल कर लंदन में एक कंपनी खोली, जिसका नाम रखा गया विल्सडॉर्फ एंड डेविस कंपनी. यही कंपनी आगे चल कर रोलेक्स के नाम से प्रसिद्ध हुई.
हालांकि शुरुआत में विल्सडॉर्फ सिर्फ घड़ियां बनाते थे, उनकी बनाई घड़ियां उनके या उनकी कंपनी के नाम से नहीं बिकती थीं. वह शुरुआत में घड़ियों के पुर्जे बाहर से मंगवाते और फिर उन्हें जोड़ कर घड़ियां बनाते. इसके बाद वह इन घड़ियों को जौहरियों के हाथों बेच देते. ऐसे में ये जौहरी विल्सडॉर्फ की बनाई घड़ियों को अपने नाम से ब्रांड करके बाजार में बेचते थे. ये सिलसिला 3 साल तक चला.
छोड़ना पड़ा लंदन
इसके बाद जब विल्सडॉर्फ का बिजनेस चल पड़ा तब वह बाजार में अपनी कंपनी के ब्रांड नाम से घड़ियां बेचने लगे. 1908 में विल्सडॉर्फ की कंपनी रजिस्टर्ड हो गई. इसी साल उन्होंने स्विट्जरलैंड के ला चाक्स-डी-फोंड्स में अपना नया ऑफिस खोला. 1919 में विल्सडॉर्फ को अपना लंदन वाला ऑफिस बंद करना पड़ा. ऐसा इसलिए क्योंकि पहले विश्वयुद्ध के कारण इंग्लैंड सरकार ने टेक्स में भारी बढ़ौतरी कर दी थी. ऐसे में विल्सडॉर्फ ने अपनी कंपनी के अंतरराष्ट्रीय हेडक्वाटर के लिए स्विट्जरलैंड के जिनेवा को चुना. आज भी रोलेक्स का हेडक्वाटर यहीं स्थित है.
रोलेक्स को स्विट्जरलैंड में अपनी कंपनी स्थापित करने से ये फायदा हुआ कि यहां उन्हें कुशल श्रमिक मिले और स्विट्जरलैंड भी एक तटस्थ स्थिति बनाए रखने वाला देश था.
ऐसे मिला Rolex नाम
अभी तक विल्सडॉर्फ की कंपनी विल्सडॉर्फ एंड डेविस कंपनी के नाम से ही चल रही थी लेकिन अब विल्सडॉर्फ कंपनी का नाम बदलना चाहते थे. वह इसके लिए मात्र 5 अक्षरों का दमदार नाम सोच रहे थे. उनके सामने 100 से ज्यादा नाम रखे गए लेकिन उन्हें एक भी नाम पसंद नहीं आया. ऐसे में एक सुबह विल्सडॉर्फ लंदन में एक घोड़े द्वारा खींचे जाने वाली ऑम्निबस के ऊपरी डेक पर सवार थे. ठीक इसी समय उन्हें महसूस हुआ कि जैसे एक जिन ने उनके काम में कुछ फुसफुसाया हो. इसी के साथ उनके दिमाग में एक नाम आया और ये नाम था Rolex.
हैरान करने वाली बात ये थी कि Rolex का न तो किसी भाषा में कोई मतलब निकलता और न ही ये किसी व्यक्ति का नाम था. ये बस एक नया शबद्द था जो सुनने में अच्छा लग रहा था. ऐसे में विल्सडॉर्फ ने फैसला किया अपने घड़ियों के ब्रांड का नाम Rolex ही रखेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि ये नाम किसी भी भाषा में बोलने के लिए आसान और आसानी से याद हो जाने वाला था. इसके अलावा ये छोटा नाम था जो घड़ियों पर आसानी से छप सकता था.
Logo में ताज क्यों?
रोलेक्स के लोगों में एक ताज है. इस ताज का भी अपना अलग ही महत्व है. दरअसल, विल्सडॉर्फ ने रोलेक्स के लोगो के लिए इस ताज को चुन कर ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति अपना प्रेम दर्शाया था. वैसे भी उन दिनों ताज काफी प्रचलित था और ऐसे में लोगों को ये पसंद आता कि उन्होंने अपनी रोलेक्स घड़ियों के माध्यम से अपनी कलाई पर ताज सजा रहे हैं. बता दें कि Rolex का एक सहायक ब्रांड भी है जिसका नाम Tudor है. ये नाम Tudor परिवार के नाम पर रखा गया था, ये वो शाही परिवार था जिन्होंने 1485 से 1603 तक इंग्लैंड पर शासन किया.
इस वजह से खास है Rolex
समय के साथ Rolex ने घड़ियों की दुनिया में क्रांति लाने का काम किया. अब घड़ियां केवल पॉकेट वाच नहीं रह गई थीं. रोलेक्स ने अपनी घड़ियों को इस तरह से तैयार किया कि ये पानी, धरती, पहाड़ हर जगह बिना रुके काम करने लगीं. इसे गोताखोरों के लिए डिजाइन किया गया, पर्वतारोहियों ने भी इस इस्तेमाल किया. ऐसी कई वजहें थीं जिससे Rolex की घड़ियों के ज्यादा दाम होने बाद भी ये लोकप्रिय होने लगीं.
इसलिए महंगी हैं Rolex की घड़ियां
Rolex की लैब में घड़ियों पर इतनी बारीकी से काम होता है जो दुनिया में शायद ही कहीं और होता हो. एक से बढ़कर एक उपकरणों और पेशेवर कारीगर की मदद से रोलेक्स ने मैकेनिकल घड़ियां बनानी शुरू कीं. एक तरफ जहां बाजार में मिलने वाली आम घड़ियों में 316 एल स्टील का प्रयोग होता है, वहीं रॉलक्स अपनी घड़ियों के लिए 940 एल स्टील का इस्तेमाल करता है. वहीं घड़ी के डायल में व्हाइट गोल्ड का इस्तेमाल होता है. इसके अलावा घड़ी में जिन नंबरों का इस्तेमाल किया जाता है वो स्पेशल कांच के प्लेटिनम से तैयार किए जाते हैं. इसमें बेजेल सेरेमिक यानी चीनी मिट्टी का भी इस्तेमाल किया जाता है.
रोलेक्स ने ही सबसे पहले तैराकों और गोताखोरों के लिए Submariner Watches खास तौर पर बनाई.
एक घड़ी बनाने वाली कंपनी में काम करने वाले शख्स द्वारा खड़ी किया गया रोलेक्स ब्रांड आज हर वर्ष 8 से 10 लाख तक कलाई घड़ियां बनाती है.