आरटीआई कानून: एफआईआर की कॉपी के लिए एक महीने का इंतजार खत्म, सिर्फ 48 घंटे में मिलेगी कॉपी

बुधवार को आरटीआई एक्ट को लागू हुए 17 साल पूरे हुए.

बुधवार को आरटीआई एक्ट को लागू हुए 17 साल पूरे हुए.

भोपाल. पुलिस पर अक्सर यह आरोप लगता है कि वह एफआईआर की कॉपी देने में आना-कानी करती है. इसे देखते हुए सूचना आयोग ने आरटीआई एक्ट के तहत 48 घंटे के भीतर एफआईआर की कॉपी उपलब्ध कराने का अहम फैसला दिया है. अभी तक आवेदक को इसके लिए 30 दिन का इंतजार करना पड़ता था.

राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने आम आदमी से जुड़ी इस शिकायत को दूर करने के लिए एफआईआर की कॉपी को सूचना के अधिकार (आरटीआई एक्ट) के दायरे में लाने का आदेश दिया. साथ ही, सभी थानों में इसकी कॉपी 48 घंटे के भीतर उपलब्ध कराने के लिए निर्देश जारी किए हैं.  सिंह ने ये भी चेताया कि जानबूझकर एफआईआर  की जानकारी को रोकने वाले दोषी अधिकारी के विरुद्ध 25000 रुपए जुर्माने या अनुशासनिक कार्रवाई आयोग द्वारा की जाएगी. इस आदेश में संवेदनशील अपराधिक मामलों और वो एफआईआर जिसमे जाँच प्रभावित हो सकती है को आरटीआई के दायरे से बाहर रखा गया है.

48 घंटे में जानकारी का नियम
बहुत कम लोगो को जानकारी  है कि आरटीआई एक्ट में 30 दिन मे जानकारी लेने के प्रावधान के अलावा 48 घंटे में भी जानकारी प्राप्त करने के कानून है. ये केवल उन मामलो मे लागू होता है जब व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता का सवाल आता है. सिंह ने स्पष्ट किया ऐसी स्थिति जहां नागरिकों के जीवन या स्वतंत्रता खतरे में हो और जहां 48 घंटे में जानकारी देने से व्यक्ति के अधिकारों के हनन होने पर रोक लगती हो वहां यह अधिकारियों का कर्तव्य है कि 48 घंटे के अंदर जानकारी संबंधित व्यक्ति को उपलब्ध कराई जाए.

प्रथम और द्वितीय अपील का समय भी 48 घंटे
सूचना का अधिकार अधिनियम में 48 घंटे में जानकारी देने के नियम में प्रथम अपील और द्वितीय अपील कितन समय बाद की जा सकती इसका उल्लेख नहीं है. राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने इसको स्पष्ट करते हुए कहा कि 48 घंटे मैं अगर जानकारी नहीं मिलती है तो 48 घंटे के बाद प्रथम अपील और उसके 48 घंटे के बाद द्वितीय अपील की जा सकेगी और ये न्यायिक मापदंड और सूचना के अधिकार अधिनियम की मूल भावना के अनुरूप होगा.
एफआईआर की जानकारी जानने के कानूनी हक
सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने एफआईआर के उपर आदेश  जारी करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 एवं अनुच्छेद 19 का भी सहारा लिया. सिंह ने आदेश मे स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 21 में प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के तहत व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बचाव का अधिकार मिला है. वही अनुच्छेद 19 (1) में किसी भी नागरिक के लिए जानकारी को प्राप्त करने का अधिकार मिला हुआ है. सिंह ने उन इन अनुच्छेदों की व्याख्या करते हुए कहा कि आरोपी जिसके विरूद्ध एफआईआर दर्ज की गई है उसे भी यह जानने का अधिकार है कि उसके विरुद्ध किन धाराओं के तहत किस व्यक्ति ने क्या आरोप लगाए गए हैं. वहीं राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने FIR के बारे में कहा कि FIR, CrPC की धारा 154 के तहत तैयार एक  सार्वजनिक दस्तावेज है और यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 74  के तहत भी सार्वजनिक दस्तावेज है.
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केरल हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बनाया आधार
एफआईआर की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने उच्च न्यायालय केरल एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को भी आधार बनाया है. सिंह ने कहा कि कई पुलिस थानों में एफआईआर की प्रति आरटीआई के तहत आवेदक को उपलब्ध कराई जा रही है और कई थानों में एफआईआर की प्रति नहीं दी जा रही है. वही कई थानों में दहेज संबंधित मामलों में जानकारी महिलाओं से संबंधित होने के कारण संवेदनशील बताते हुए पुलिस विभाग के पोर्टल पर अपलोड की जा रही है और कई थानों से यह जानकारी अपलोड नहीं की जा रही है. 2015 में केरल उच्च न्यायालय ने एफआईआर की कॉपी आरटीआई के तहत 48 घंटे में उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे. वही सर्वोच्च न्यायालय ने 2016 में एफआईआर की कॉपी 24 घंटे कर भीतर ऑनलाइन उपलब्ध कराने के अलावा आरोपी पक्ष एवं पीड़ित पक्ष को 48 घंटे के अंदर उपलब्ध कराने के आदेश दिए थे.
इस केस की वजह से आया यह फैसला
राज्य सूचना आयोग ने एफआईआर को लेकर यह आदेश बालाघाट जिले से संबंधित प्रकरण में दिए है. इस प्रकरण में अपीलकर्ता लीला बघेल ने कुल छह एफआईआर की जानकारी लेने के लिए वहा के थाने में आरटीआई दायर की थी. लीला बघेल ने एक अन्य थाने में भी आरटीआई लगाकर वहां से FIR की जानकारी प्राप्त कर ली थी पर बालाघाट के लालबर्रा थाने ने उन्हें जानकारी देने से इस आधार पर मना कर दिया था कि FIR की कॉपी देने से जांच प्रभावित हो जाएगी. इनमें से एक FIR प्रकरण दहेज प्रताड़ना का लीला बघेल के परिवार के विरुद्ध दर्ज था. पुलिस विभाग और आरटीआई आवेदक के बीच आरोप-प्रत्यारोप के चलते FIR की जानकारी पर आयोग द्वारा  सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत जांच शुरू की गई. जांच के बाद आयोग के सामने यह खुलासा हुआ कि सिर्फ एक FIR जो पॉक्सो से संबंधित थी उसकी जानकारी नहीं दी जा सकती थी पर बाकी सब FIR में चार्जशीट भी दायर हो चुकी थी उसके बाद भी पुलिस ने जांच प्रभावित होने का बहाना करते हुए FIR  की कॉपी देने से मना कर दिया। इस प्रकरण संबंधित थाना प्रभारी को आयोग ने 25000 रुपए जुर्माने का कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है.