‘रुस्तम-ए-हिन्द’: वो भारतीय पहलवान जो एक भी कुश्ती नहीं हारा, आखिरी समय में एक-एक पैसे को तरसा

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भारत में अगर पहलवानी की बात की जाए तो गुलाम मोहम्मद बख्श भट्ट उर्फ गामा पहलवान का जिक्र जरूर होता है. गामा वो भारतीय पहलवान थे जो एक भी कुश्ती नहीं हारे. उन्होंने पूरी दुनिया में भारत का डंका बजाया और ‘रुस्तम-ए-हिन्द’ बनकर इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए. उनकी कहानियां आज भी हमें रोमांचित करती हैं.

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बचपन से ही पहलवानी का था शौक

गामा का जन्म 22 मई 1878 को अमृतसर के जब्बोवाल गांव में हुआ. हालांकि इनके जन्मस्थान को लेकर इतिहासकारों में मतभेद भी रहे हैं. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इनकी पैदाइश मध्य प्रदेश के दतिया जिले में हुई. इनके पिता मोहम्मद अजीज बख्श खुद एक पहलवान थे. बचपन से पिता को पहलवानी करता देख इनकी भी पहलवानी में रूचि बढ़ गई. पिता से कुश्ती के दांव पेंच सीखे.

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दो बार हुआ रुस्तम-ए-हिन्द से सामना

गामा ने कम उम्र में ही पहलवानी करना शुरू कर दिया. बड़े-बड़े पहलवानों को पटककर धूल चटा दी. साल 1895 में गामा का सामना देश के सबसे बड़े पहलवान रुस्तम-हिन्द रहीम बक्श सुल्तानीवाला से हुआ. जिनकी लम्बाई 6 फिट 9 इंच थी. जबकि गामा की लम्बाई 5 फिट 7 इंच थी. सुल्तानीवाला से छोटे होने के बावजूद गामा ने डट कर मुकाबला किया. यह मैच भले ही ड्रा रहा लेकिन गामा मशहूर हो चुके थे.

आगे गामा ने देश के बड़े-बड़े पहलवानों गुलाम मोहिउद्दीन, इंदौर के अली बाबा सेन, मुल्तान के हसन बख्श और भोपाल के प्रताप सिंह जैसों को लगातार हराया. अब गामा देश के अजेय पहलवान बन गए थे. इन्हें कोई भी पहलवान हरा नहीं पाया था. साल 1910 में एक बार फिर गामा का सामना रुस्तम-ए-हिन्द रहीम बक्श सुल्तानीवाला से हुआ. एक बार फिर इस मैच का नतीजा नहीं निकला. यह मैच भी ड्रा हुआ था.

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जब लंदन में नाराज होकर पहलवानों को दिया चैलेंज

देश के कई प्रतियोगिताओं में विजयी पताका फहराकर गामा ने देश के साथ-साथ विदेशों में भी अपनी पहचान बनाना चाहते थे. वो 1910 लंदन में होने वाली कुश्ती चैम्पियनशिप में हिस्सा लेना चाहा. लेकिन गामा को निराशा हाथ लगी. उन्हें उस अंतरराष्ट्रीय चैम्पियनशिप में प्रवेश नहीं मिला. उनकी हाइट उनके लिए रूकावट बनी. कम हाइट होने की वजह से उन्हें शामिल नहीं किया गया.

कहते हैं इस बात से नाराज होकर गामा ने वहां के पहलवानों को 30 मिनट के अंदर हराने का चैलेंज कर दिया था. हालांकि किसी भी पहलवान में उनके इस चैलेंज को स्वीकार करने की हिम्मत नहीं हुई थी.

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6 देसी मुर्गे और 10 लीटर दूध डाइट में शामिल थे

गामा एक मजबूत काठी के पहलवान थे. वे अपनी खुराक पर काफी ध्यान देते थे. उनकी डाइट काफी ज्यादा हैवी हुआ करती थी. कई मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो गामा प्रतिदिन 6 देसी मुर्गे चट कर जाते थे. इसके साथ ही 10 लीटर दूध रोजाना पीते थे. इसके आलावा गामा किसी पेय पदार्थ का इस्तेमाल किया करते थे, जिसमें 200 ग्राम बादाम पीसकर डालते थे.  बताया जाता है कि गामा प्रतिदिन अपने 40 साथियों के संग कुश्ती अभ्यास करते थे. उनके व्यायाम में रोजाना 5 हजार बैठक और 3 हजार पुशअप्स शामिल थे.

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मुफलिसी में हुई मौत, बेचने पड़े थे मेडल

गामा 50 से अधिक मुकाबले देश-विदेश में लड़े. किसी भी मैच में उन्हें हार का सामना नहीं करना पड़ा. जिसमें साल 1910 में वर्ल्ड हैवीवेट चैम्पियनशिप और साल 1927 में वर्ल्ड कुश्ती चैम्पियनशिप शामिल है. जिसके बाद इन्हें ‘टाइगर’ की उपाधि से नवाजा गया था. बावजूद इसके उनका अंतम समय कष्टपूर्ण रहा.

साल 1927 में गामा ने अपनी आखिरी कुश्ती स्वीडन में पहलवान जेस पीटरसन से लड़ी थी. कुश्ती छोड़ने के बाद द ग्रेट गामा पहलवान अस्थमा और हार्टअटैक के मरीज बन गए. उन्हें जीवन के अंतिम समय में आर्थिक संकटों के दौर से गुजरना पड़ा था. खुद को जिंदा रखने के लिए उन्हें अपने मेडल तक बेचने पड़े थे. अंतत: 1960 में 82 वर्ष की उम्र में गामा की मुफलिसी में मौत हो गई.