शिमला में अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव ‘उम्मेष’ के दूसरे दिन शुक्रवार को गेयटी थियेटर के मुख्य सभागार में चर्चा में शामिल होते हुए सच्चिदानंद जोशी ने साहित्य और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन विषय पर बेबाकी से शब्द बाण छोड़े।
जोशी ने राजनेताओं पर अपने स्वार्थ के लिए संविधान में इस संशोधन को करने का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा कि मई 1951 तक नेहरू राजद्रोह कानून के खिलाफ थे। जून में उन्होंने राष्ट्रपति पर दबाव बनाते हुए संविधान में संशोधन करवा दिया। 18 जून को यह संशोधन हुआ था। बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट की ओर से राजद्रोह कानून पर रोक लगाने का फैसला होने के बाद देश भर चर्चित इस मामले का उल्लेख करते हुए जोशी ने कहा कि वर्ष 1870 में स्वाधीनता आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने राजद्रोह कानून लागू किया था।
कई लेखक भी इस कानून के तहत जेल गए थे। उन्होंने कहा कि वर्ष 1950 में जब भारत का संविधान बना था, तब राजद्रोह उसका हिस्सा नहीं था। एक वर्ष के भीतर ही संविधान में संशोधन कर इसे जोड़ा गया। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति के दायरे को जानना बहुत जरूरी हो गया है। अभिव्यक्ति में अनाचार नहीं होना चाहिए। सोशल मीडिया पर राष्ट्र विरोधी प्रचार ना हो, इस पर मंथन करने की आवश्यकता है।
लेखक अनंत विजय ने चर्चा में शामिल होते हुए कहा कि इतिहास को वामपंथियों ने लिखा है। साम्यवाद को राष्ट्रवाद से जोड़ा गया। अब आजादी के 75वें वर्ष में इस पर विचार करना चाहिए। तमिल और अंग्रेजी भाषा के लेखक मालन, विक्रम संपत और विश्वास पाटिल ने भी स्वतंत्रता आंदोलन के समय के साहित्य पर अपने विचार रखे। कन्नड लेखक एसएल भैरप्पा की अध्यक्षता में यह सत्र चला।