
आज के दौर में युवा पीढ़ी शहर की ओर भाग रही है. वजह फसल की लागत ज्यादा और आमदनी कम होना है. वहीं महंगाई और प्राकृतिक आपदा के चलते किसान परेशान हैं. दो वक्त की रोटी का प्रबंध करने के लिए रोजगार की तलाश में लोग शहर में बस जा रहे हैं. लेकिन, उनमें कुछ ऐसे भी हैं जो लाखों की नौकरी छोड़ गांव में किसानी कर दूसरों के लिए मिसाल बने हुए हैं.
उन्हीं में एक नाम सचिन काले का है, जो एक इंजीनियर होते हुए अपनी 24 लाख सलाना की नौकरी छोड़कर गांव में किसानी कर रहे हैं. आज वे करोड़ों रुपए खेती करके कमा रहे हैं. इसके लिए उन्होंने काफी संघर्ष और मेहनत किया. तो चलिए सचिन कालरा की जिंदगी से रूबरू होते हैं.
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कौन हैं सचिन काले?
सचिन काले छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के मेधपुर के रहने वाले हैं. वह बचपन से अपने दादा वसंत राव काले से बहुत ही ज्यादा प्रेरित थे. उनके दादा ने उन्हें बचपन से ही खेती किसानी के बारे में बताया और थोड़ा बहुत सिखाया था. वहीं सचिन एक होनहार छात्र थे. परिवार भी चाहता था कि बेटा बढ़ा होकर नाम रोशन करे. उन्होंने साल 2000 में नागपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद फाइनेंस में एमबीए किया. इसके साथ ही लॉ ग्रेजुएट भी हैं. साल 2007 में अर्थशास्त्र में पीएचडी भी की हुई है.
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24 लाख रुपए सालाना की छोड़ दी नौकरी
इतनी डिग्री लेने के बाद उन्हें आसानी से एक अच्छी नौकरी मिल गई. उसके बाद सचिन ने 12 लाख पैकेज पर एक दूसरी कंपनी ज्ॉइन कर ली. वे इंजीनियर तो बन गए थे. लेकिन उनका मन नहीं लग रहा था. फ़िलहाल वे तरक्की करते रहे. गुड़गांव की एक बड़ी कंपनी में 24 लाख रुपए के सालाना पैकेज पर नौकरी कर रहे थे. अच्छी खासी जॉब थी. लेकिन दिमाग में हमेशा कुछ नया करने की चाह रहती. वे खुद का बिजनेस करना चाहते थे. जिसके लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी.
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याद आई दादा की वो बात, फिर लौटे गांव की ओर
सचिन के अंदर अपना कुछ करने का इरादा था. लेकिन वह क्या करें यह समझ नहीं पा रहे थे. आखिर कौन सा बिजनेस शुरू करें. फिर एक दिन उन्हें अपने दादा की एक बात याद आई कि इंसान किसी भी चीज के बिना रह सकता है लेकिन खाने के बिना नहीं रह सकता. बस फिर क्या था. सचिन ने खेती करने का फैसला किया. वे अपने गांव मेधपुर लौट आए.
आसान नहीं थी खेती
सचिन ने खेती करने का मन तो बना लिया था. लेकिन यह उनके लिए इतना आसान नहीं था. उन्होंने अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी थी. खेती के जमीन चाहिए थी. साथ में उसमें काम करने वाले मजदूर की भी जरूरत थी.
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सचिन कहते हैं “यह सब मेरे लिए एक चुनौती थी, क्योंकि मुझे खेती के बारे में बिलकुल भी जानकारी नहीं थी. मुझे जमीन जोतने से लेकर बीज बोने तक सब कुछ सीखना था. उन्होंने खेती से जुड़ी जानकारी विभिन्न माध्यमों से इकट्ठा की. काम शुरू करने में एक समस्या यह भी थी कि गांव में मजदूर की बहुत कमी थी. लोग रोजगार की तलाश में शहर की ओर रुख करते थे. इसके लिए उन्होंने कांट्रेक्ट खेती करने का फैसला लिया.
फिर शुरू की कॉन्ट्रैक्ट खेती
सचिन बताते हैं कि “मेरे दादाजी मुझे खेती करने के लिए प्रोत्साहित करते थे, लेकिन साथ ही वे मुझे चेतावनी देते थे कि यह एक जोखिम भरा व्यवसाय है और सबसे बड़ी समस्या श्रम की है. सचिन के दादा अब इस दुनिया में नहीं है. वे उन्हें याद करते हुए बताते हैं कि ‘आपको तब तक मजदूर नहीं मिलेगा, जब तक आप उन्हें पहले से जितना कमा रहे हैं उससे ज्यादा कमाने में उनकी मदद नहीं करेंगे.
फ़िलहाल, सचिन कॉन्ट्रैक्ट खेती करने लगे. इसके लिए उन्हें गांव के किसानों की जमीन किराए पर लेनी पड़ी. उनसे अपने तरीके से खेती करवाने लगे. उन्होंने शुरुआत में अपने पीएफ के पैसों को भी किसानी में लगा दिया. डटे रहे. फिर उनकी मेहनत रंग लाने लगी.
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आज कमाते हैं सालाना 2 करोड़ रुपए
सचिन का बिजनेस धीरे-धीरे बढ़ने लगा. उनको फायदा होते देख बाकी के किसान भी उनसे जुड़ने लगे. उन्होंने साल 2014 में इनोवेटिव एग्रीलाइफ सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड नाम से अपनी खुद की कंपनी शुरू की. शुरुआत में जो किसान अपनी जमीन देने से दूर भागते थे. वे सचिन के सफल बिजनेस को देखते हुए उन पर भरोसा करने लगे. आज सचिन की कंपनी का सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए से अधिक है.
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सचिन के पास तक़रीबन 137 किसानों की 200 एकड़ से ज्यादा जमीनें हैं. जिन पर सचिन की कंपनी कांट्रेक्ट किसानी मॉडल के द्वारा खेती कर तगड़ा मुनाफा कमा रही है. साथ में किसानों को भी खूब फायदा हो रहा है.
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सचिन की पत्नी कल्याणी भी उनकी बिजनेस पार्टनर हैं. कल्याणी मास कम्युनिकेशन में मास्टर हैं. वे भी सचिन के कामों में उनका हाथ बंटाती हैं. सचिन ने किसानों की जमीन खरीदने के बजाए उनसे ही उन पर खेती करवाते हैं. जो एक सफल किसानी के साथ सफल बिजनेस है. आज किसानों और दूसरों के लिए सचिन एक मिसाल हैं.