नई दिल्ली. पिछले साढ़े तीन दशक में सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) ने सौरव गांगुली को विभिन्न अवतारों में देखा है. एक परिपक्व किशोर, बेहतरीन भारतीय क्रिकेटर, सफल कप्तान और व्यस्त प्रशासक. लेकिन इस चैम्पियन बल्लेबाज के लिए वह इन सबसे ऊपर एक बेहद करीबी दोस्त है और इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद भी दोनों की दोस्ती उतनी ही गहरी है. बीसीसीआई अध्यक्ष गांगुली (Sourav Ganguly) के 50वें जन्मदिन से पहले अपने ‘सलामी जोड़ीदार’ के साथ पुरानी यादों को ताजा करते हुए तेंदुलकर ने उनके कई पहलुओं के बारे में बताया. यह पूछने पर कि बतौर कप्तान करीब 5 साल के कार्यकाल में गांगुली ने उन्हें कितनी आजादी दी. तेंदुलकर ने कहाकि सौरव महान कप्तान था. उसे पता था कि संतुलन कैसे बनाना है. खिलाड़ियों को कितनी आजादी देनी है और कितनी जिम्मेदारी.
सचिन तेंदुलकर ने पीटीआई से कहा, ‘जब उसने कमान संभाली, तब भारतीय क्रिकेट बदलाव के दौर से गुजर रहा था. हमें ऐसे खिलाड़ियों की जरूरत थी, जो भारतीय क्रिकेट को आगे ले जा सके.’ उन्होंने कहा कि उस समय हमें वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, जहीर खान, हरभजन सिंह और आशीष नेहरा जैसे वर्ल्ड क्लास खिलाड़ी मिले. ये सभी बेहद प्रतिभाशाली थे, लेकिन इन्हें करियर की शुरुआत में सहयोग की जरूरत थी, जो सौरव ने दिया. उन्हें अपने हिसाब से खेलने की आजादी भी मिली. तेंदुलकर ने बताया कि 1999 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर उन्होंने तय कर लिया था कि उनके कप्तानी छोड़ने पर अगला कप्तान कौन होगा.
सौरव ने पीछे मुड़कर नहीं देखा
उन्होंने कहा कि कप्तानी छोड़ने से पहले भारतीय टीम के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर मैंने सौरव को टीम का उपकप्तान बनाने का सुझाव दिया था. मैंने उसे करीब से देखा था और उसके साथ क्रिकेट खेली थी. मुझे पता था कि वह भारतीय क्रिकेट को आगे ले जा सकता है. वह अच्छा कप्तान था. उन्होंने कहा कि इसके बाद सौरव ने मुड़कर नहीं देखा और उसकी उपलब्धियां हमारे सामने हैं. दोनों के बीच बेहतरीन तालमेल का ही नतीजा था कि 26 बार शतकीय साझेदारियां की और उनमें से 21 बार पारी की शुरुआत करते हुए.
लगातार रहते थे संपर्क में
तेंदुलकर ने कहा कि सौरव और मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश की, ताकि टीम मैच जीत सके. इसके आगे हमने कुछ नहीं सोचा. गांगुली ने पहली बार भारत के लिए 1992 में खेला और फिर 1996 में वापसी की. उस समय मोबाइल फोन नहीं होते थे, लेकिन दोनों एक दूसरे के संपर्क में रहे. तेंदुलकर ने कहा कि 1991 के दौरे पर हम एक कमरे में रहते थे और एक दूसरे के साथ खूब मस्ती करते. हम अंडर-15 के दिनों से एक दूसरे को जानते थे, तो आपसी तालमेल अच्छा था. उस दौरे के बाद भी हम मिले, लेकिन तब मोबाइल फोन नहीं होते थे. हम लगातार संपर्क में नहीं रहे, लेकिन दोस्ती कायम थी.