साहिर-अमृता: प्यार पर कई कहानियां लिखने वाले दो कहानीकार जिनकी ख़ुद की कहानी पूरी न हो पाई

श्क अमर है. जोड़ियां चली जाती हैं. दौर गुज़र जाते हैं, पर इश्क और उससे जुड़ी कहानी बनी रहती हैं. हीर-रांझा, लैला-मजनू और शीरीं-फ़रहाद जैसी ही एक अमर प्रेम कहानी है साहित्य के दो बड़ी शख़्सियत अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी की. ये वो सुलझी हुई प्रेम कहानी है, जो चंद खतों और बहुत सी ख़ामोशी के बीच गुज़री. कई दौर बदल गए पर इनकी प्रेम कहानी आज भी ज़िंदा है. तो चलिए जानते हैं इस महशूर प्रेम कहानी के बारे में.

वो मुशायरा, जहां दो शायर अपना दिल हार बैठे

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ये बात है भारत की आजादी से पहले की. अमृता प्रीतम ने एक लेखिका के रूप में काफी नाम कमा लिया था. वहीं दूसरी ओर साहिर एक उभरते हुए शायर थे. एक दिन दिल्ली और लाहौर के बीच स्थित प्रीत नगर में एक मुशायरे का आगाज़ हुआ. देश भर से शाहर वहां शिरकत करने पहुंचे थे. दिल्ली से अमृता प्रीतम और लाहौर से युवा शायर साहिर लुधियानवी भी मुशयारे में आए थे. यही वो पहला मौका था जब अमृता और साहिर की मुलाकात हुई थी.

अमृता एक सुंदर और लाजवाब लेखिका थीं और साहिर एक बेबाक शायद. कहते हैं कि दोनों ने जब पहली बार एक दूसरे को देखा तो उस एक पल में ही दोनों को प्यार हो गया था. फिर क्या था, कुछ बातें हुई. कुछ किस्से सुनाए गए. सिर्फ सूरत और सीरत ही नहीं दोनों को एक दूसरे की नीयत भी भा गयी. वो शाम उन्होंने शायरी और अपनी बातों के बीच ही गुजारी. शाम ढली तो दोनों को अपने-अपने रास्तों पर वापस जाना पड़ा. अमृता दिल्ली तो साहिर लाहौर की ओर निकल पड़े.

पहली मुलाकात के बाद शुरू हुआ खतों का कारवां

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उस पहली मुलाक़ात में ही साहिर और अमृता ने अपने पते एक दूसरे से सांझा कर लिए थे. दोनों के दिलों में प्यार की लौ जल चुकी थी. हालांकि, एक बात ऐसी थी जो इस प्यार के आड़े आ रही थी. साहिर से मिलने से पहले ही अमृता की शादी हो चुकी थी. अमृता का बाल विवाह हुआ था लेकिन वो अपनी इस शादी से खुश नहीं थीं. यही वजह है कि साहिर से मिलने के बाद उन्हें पहली बार एहसास हुआ कि प्यार क्या है. साहिर और अमृता के प्यार के बीच एक बहुत लंबी दूरी थी.

वो दोनों तो एक दूसरे तक नहीं पहुँच सकते थे इसलिए उन्होंने खतों का सहारा लिया. एक ओर से अमृता कागज़ पर इश्क उकेरतीं तो दूसरी ओर से साहिर प्यार भरे शब्द लिखकर भेजते. दिल्ली से लाहौर तक का ये सफ़र यूँ ही चलता रहा. गुज़रते वक़्त के साथ अमृता का प्यार साहिर के लिए बढ़ता ही जा रहा था. कहते हैं कि अमृता अपने खतों में साहिर को मेरे शायर, मेरे महबूब और मेरे खुदा जैसे शब्दों से मुखातिब करती थीं. 

वो साहिर के प्यार में पूरी तरह दीवानी हो चुकी थीं. वहीं दूसरी ओर साहिर भी उनके प्यार में पागल हो रहे थे पर दोनों के बीच दूरियां अब भी मौजूद थीं.

सिगरेट, चाय और ख़ामोशी में हुआ दोनों मिलना

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एक लंबे वक़्त तक साहिर और अमृता के खतों का कारवां चलता गया. आगे चलकर एक वक़्त आया जब अमृता दिल्ली से निकलकर लाहौर में रहने लगीं. यही वो वक़्त था जब वो साहिर से मिल सकती थीं. वो मुलाक़ात जिसकी उन्हें दरकार थी उसका मौका अब उनके पास था और उन्होंने वो मुलाक़ात हुई भी. लाहौर में रहते हुए साहिर और अमृता कई मर्तबा मिलें. हालंकि, ये मुलाकातें थोड़ी अलग होती थीं. इनमें बातें कम और ख़ामोशी ज्यादा होती थी. 

साहिर और अमृता बस चुप-चाप एक दूसरे की आँखों में देखते रहते थे. साहिर चाय और सिगरेट के शौक़ीन थे. पूरी मुलाक़ात में साहिर बस चाय और सिगरेट ही पीते रहते थे. कहते हैं कि अमृता साहिर में इतना घुल चुकी थीं कि साहिर की छोड़ी सिगरेट को अपने होंठों पर लगाकर, साहिर के लबों का एहसास करती थीं. वहीं दूसरी ओर साहिर जो एक बेफिक्र इंसान के रूप में मशहूर थे वो अब अमृता में बंधते जा रहे थे. साहिर की दीवानगी को लेकर उनका एक किस्सा मशहूर है. 

संगीतकार जयदेव एक दिन साहिर के घर जाते हैं. वहां वो टेबल पर पड़ा एक धूलभर कप देखते हैं. जयदेव ने साहिर को कप दिखाते हुए उसे साफ़ करने की कोशिश की मगर साहिर ने उन्हें रोक दिया. उन्होंने कहा कि उस कप को हाथ न लगाएं क्योंकि जब आखिरी बार अमृता उनसे मिलने आई थीं वो उन्होंने उसी कप में चाय पी थी. यह दर्शाता है कि दोनों के बीच किस किसम की आशिकी थी. हालांकि, जल्द ही इस प्रेम कहानी का अंत होने वाला था.

आखिर सपना ही रह गया अमृता प्रीतम का प्यार

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देश के बंटवारे के बाद अमृता एक बार फिर दिल्ली चली गयी. एक लेखिका के रूप में उन्होंने वहां खूब नाम कमाया पर वो साहिर से दूर हो गयी थीं. उन्होंने उस समय सब छोड़कर साहिर से शादी करने का फैसला तक कर लिया था पर उनका प्यार अब ख़त्म होने की कगार पर था. 1960 में साहिर गायिका सुधा मल्होत्रा के करीब हो गए थे. साहिर कभी एक रिश्ते में बंधकर नहीं रह पाते थे. कहते हैं इसलिए ही चाहते हुए भी उन्होंने अमृता से शादी नहीं की. 

वो काफी अकेले और सबसे जुदा रहना पसंद करते थे. कोई नहीं जानता था कि उनके दिल में क्या चल रहा है. इस एक हादसे के बाद अमृता और साहिर यूँ तो अलग हो गये पर उनके दिल आखिरी वक़्त तक एक दूसरे से जुड़े रहे. आज कई सालों बाद भी अमृता और साहिर की प्रेम कहानी लोगों की जुबान पर जिंदा है. माना जा रहा है कि कि जल्द ही इस प्रेम कहानी पर एक फिल्म भी बनने जा रही है. अब देखना है कि इस इश्क को फ़िल्मी परदे पर कौन दर्शा सकता है.