सकट चौथ और तिल चौथ इस पर 10 जनवरी मंगलवार के दिन मनाया जा रहा है। मंलवार के दिन सकट चौथ लग जाने से इसका महत्व और भी कई गुणा बढ़ गया है। और इसे अंगारकी चौथ भी कहा जा रहा है। इस पर सोने पर सुहागा यह है कि सकट तिल चौथ पर सर्वार्थ सिद्धि नामक महयोग भी लग गया है। जिससे इस व्रत से व्रतियों को महापुण्य की प्राप्ति होगी। आइए जानते हैं सकट चौथ का मुहूर्त, महत्व और चंद्रोदय का समय।
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सकट चौथ का महत्व
चंद्र मास के अनुसार, हर महीने दो चतुर्थी होती है। इस तरह साल में कुल 24 चतुर्थी होती हैं, लेकिन माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को शास्त्रों में विशेष महत्व दिया गया है। इस दिन माता अपनी संतानों के लिए आरोग्यता, यश, बल, बुद्धि आदि की कामना से व्रत रखती हैं। इस व्रत को संकट चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी, तिल कूट, तिल चौथ, माघी चौथ जैसे नामों से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के करने से सभी तरह के विघ्न दूर हो जाते हैं और जीवन में मंगल ही मंगल होता है। भगवान गणेश की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और पूरे परिवार पर गणेशजी का आशीर्वाद बना रहता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन ही भगवान गणेश ने अपने माता-पिता भगवान शंकर और माता पार्वती की परिक्रमा की थी, जिससे इस दिन का महत्व बढ़ जाता है।
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सकट चौथ पूजा मुहूर्त
माघ माह की सकट चौथ का व्रत 10 जनवरी 2023 दिन मंगलवार को रखा जाएगा। चतुर्थी तिथि का आरंभ 10 जनवरी को दोपहर में 12 बजकर 10 मिनट से हो रहा है और इसका समापन 11 जनवरी दोपहर 02 बजकर 32 मिनट पर होगा। वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 07 बजकर 15 मिनट से 09 बजकर 01 मिनट तक रहेगा। प्रदोष काल में संध्या के समय भगवान गणेश की पूजा करें। शाम 6 बजे से 7 बजकर 30 मिनट तक का समय पूजा के लिए उत्तम रहेगा। वहीं चंद्रोदय 08 बजकर 41 मिनट पर होगा, इस समय चंद्रमा को अर्घ्य प्रदान करें।
सकट चौथ तिथि – 10 जनवरी 2022 दिन मंगलवार
चतुर्थी तिथि का प्रारंभ – 10 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट से
चतुर्थी तिथि का समापन – 10 जनवरी दोपहर 02 बजकर 32 मिनट तक
पूजा का शुभ मुहूर्त – प्रदोष काल
चंद्रोदय का समय – 08 बजकर 41 मिनट पर
सकट चौथ पूजा विधि
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, सकट चौथ पर दिन भर निर्जला व्रत रखने की परंपरा है। गणेश चतुर्थी पर षोडशोपचार विधि से गणेश महाराज की पूजा करने का विधान है। मुख्य रूप से ‘गजाननं भूत गणादि सेवितं’ गणपति वंदना की जाती है। पूजन में सुबह व्रती माताएं प्रथम देव गणपति का पूजन और ध्यान जप करना चाहिए। पीला वस्त्र पहनें और पीला ही आसन बिछाएं। गणपति के साथ देवी गौरी का भी पूजन करें। धूप, घी के दीपक जलाएं और काले तिल के लड्डू, गुड़ के लड्डू, ईख, शकरकंद, अमरूद, गुड़, घी के साथ 11 या 21 दूर्वा भी अर्पित करें। संध्याकाल में प्रथम देव गणपति की पूजा करें और चंद्रोदय के बाद उन्हें अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण किया जाता है। साथ ही इस दिन तिलकुट का बकरा बना उसकी बलि भी देने की भी परंपरा है।
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सकट चतुर्थी व्रत के फायदे
ज्योतिषाचार्य ने बताया है कि लोगों का यह भ्रम है कि यह व्रत केवल संतान के लिए है। स्कंद पुराण के अनुसार, यह व्रत संतान के कल्याण के लिए रखा जाता है। इस दिन मुख्य रूप से गणपति वंदना ‘गजाननं भूत गणादि सेवितं’ की जाती है। कुछ महिलाएं चावल और गुड़ का बकरा बनाकर भी उसकी बलि देती हैं। पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं।