बिहार के रोहतास जिले में बेटी ने दी पिता को मुखाग्नि। यहां रूढ़ीवादी परंपरा तब टूटती नजर आई, जब एक बेटी ने बेटे का फर्ज निभाते हुए पिता का अंतिम संस्कार किया। बेटी पिता की अंतिम यात्रा में श्मशान तक साथ गई और वहां उन सभी रीति रिवाजों को निभाया, जो बेटा करता है।
रोहतास: कहते हैं ना बेटियां बेटे से कम नहीं होती, जो काम बेटा कर सकता है वही काम बेटी भी कर सकती है। काम चाहे घर का हो या फिर चारदिवारी के बाहर का। दरसअल, जिले के डेहरी में मंगलवार को कुछ ऐसा ही अनोखा नजारा शमशान घाट में दिखने को मिला। जब एक बेटी ने अपने पिता की मौत के बाद खुद शव लेकर श्मशान घाट पहुंची और पिता को मुखाग्नि दी। बेटी की ओर से पिता को मुखाग्नि देने की घटना पूरे इलाके में चर्चा का विषय बना हुआ है।
बेटा ही पिता की चिता को मुखाग्नि देता है, यह बात अब गुजरे जमाने की हो चुकी है। रोहतास जिले में मंगलवार को यह रूढ़ीवादी परंपरा तब टूटती नजर आई, जब एक बेटी ने बेटे का फर्ज निभाते हुए पिता का अंतिम संस्कार किया। बेटी पिता की अंतिम यात्रा में श्मशान तक साथ गई और वहां उन सभी रीति रिवाजों को निभाया, जो बेटा करता है।
डेहरी इलाके के न्यू एरिया जोड़ा मंदिर मुहल्ले में किराये के मकान में रहने वाले 60 साल के राजेंद्र कुमार श्रीवास्तव कबाड़ी का काम कर परिवार का जीवन यापन करते थे उनका कोई बेटा नहीं था। सिर्फ दो बेटियां थी। बेटियों को भी बेटे से कम नहीं समझते थे। सोमवार रात से ही घर से निकले थे जब मंगलवार को घर नहीं पहुंचे तो अचानक उनकी छोटी बेटी चांदनी के मोबाइल पर रेल पुलिस का फोन आया कि उनके पिता की दुर्घटना में मौत हो चुकी है। रोते भागते किसी तरह उसने शव का पोस्टमार्टम कराकर डेड बॉडी को लेकर श्मशान घाट पहुंची और खुद अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी।
मृतक की पुत्री चांदनी ने बताया कि मूल रूप से उसका परिवार सुपौल का रहने वाला है। वह दो बहने हैं। बड़ी बहन बिंदु की शादी हो गई है। बताया कि भाई नहीं होने के कारण पिता उसे बेटे की तरह समझते थे। उनकी मौत के बाद किसी ने मदद नहीं की, किसी तरह मकान मालिक ने कुछ पैसों से मदद की।