पुस्तकों की खरीद को लेकर बीते वर्ष भी प्रदेश में खूब हल्ला हुआ था। निजी प्रकाशकों ने विधानसभा का घेराव तक किया था। बीते वर्ष भी करीब 11 करोड़ रुपये की राशि से पुस्तकों की खरीद शुरू हुई थी।
प्रदेश के पहली से बारहवीं कक्षा वाले करीब 15 हजार सरकारी स्कूलों के पुस्तकालयों के लिए 11 करोड़ के बजट से होने वाली पुस्तकों की खरीद शुरू होने से पहले ही विवादित हो गई है। निजी प्रकाशकों ने पुस्तकों की क्रय प्रक्रिया में व्यवधान उत्पन्न करने वालों की एक लाख रुपये धरोहर राशि जब्त करने की शर्त का विरोध किया है। समग्र शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना कार्यालय ने 17 सितंबर तक प्रकाशकों से खरीद प्रक्रिया में शामिल होने के लिए पुस्तकों के नमूनों के आवेदन आमंत्रित किए हैं।
बुधवार को समग्र शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना कार्यालय ने पुस्तकों की खरीद के लिए प्रकाशित टेंडर प्रक्रिया को लेकर देश भर के प्रमुख प्रकाशकों के साथ ऑनलाइन प्री बिड बैठक की। बैठक में निजी प्रकाशकों ने परियोजना कार्यालय के नियमों का विरोध किया। प्रकाशक संघ के संरक्षक सत्य प्रकाश सिंह ने इस बात का आपत्ति जताया कि यदि प्रकाशक चयन प्रक्रिया का विरोध करेगा तो उसकी ओर से जमा की गई एक लाख रुपये की धरोहर राशि जब्त कर ली जाएगी।
उन्होंने कहा कि ऐसा मानसिक दबाव बनाने के लिए किया जा रहा है। अनुचित प्रक्रिया का विरोध करने पर मौलिक अधिकारों का प्रयोग करने से रोका जा रहा है। इस तरह की शर्त देश के किसी भी राज्य में नहीं लगाई गई है। प्रकाशक संगठन के पदाधिकारी संजय शर्मा, लवकुश सिंह, दीपक कुमार, विक्रम द्विवेदी, राजीव शर्मा, प्रतिमा तिवारी, सतीश शर्मा, अरुण शर्मा व आशीष मलिक तथा इलाहाबाद के प्रकाशक दीपक अग्रवाल व सिद्धेश मिश्रा ने निविदा में ली जाने वाली 10 हजार रुपये की फीस का विरोध किया।
इस राशि को कम करने का आग्रह किया। प्रकाशकों ने आरोप लगाया कि कुछ चुनिंदा लोगों को ही लाभ पहुंचाने के लिए इस तरह के नियम बनाए जा रहे हैं। प्रकाशक संघ के संरक्षक सत्य प्रकाश सिंह ने कहा कि इस मामले को लेकर जल्द ही शिमला में राष्ट्रीय स्तर की बैठक की जाएगी। राज्यपाल और मुख्यमंत्री को भी मामले से अवगत कराया जाएगा।
बीते वर्ष नहीं खर्च हुई थी आठ करोड़ की राशि
पुस्तकों की खरीद को लेकर बीते वर्ष भी प्रदेश में खूब हल्ला हुआ था। निजी प्रकाशकों ने विधानसभा का घेराव तक किया था। बीते वर्ष भी करीब 11 करोड़ रुपये की राशि से पुस्तकों की खरीद शुरू हुई थी। मामला विवादित होने पर शिक्षा विभाग ने करीब तीन करोड़ रुपये से सिर्फ सरकारी एजेंसियों से ही किताबें खरीदी थी। निजी प्रकाशकों से पुस्तकों की खरीद नहीं की थी। करीब आठ करोड़ रुपये की राशि इस कारण खर्च भी नहीं हो पाई थी।