Sarabjit wife: हादसों भरी जिंदगी, हादसे में ही मौत…बड़ी भावुक है सरबजीत की पत्नी सुखप्रीत के संघर्ष की कहानी

पाकिस्तान की जेल में मारे गए सरबजीत की पत्नी सुखप्रीत कौर की सड़क हादसे में मौत हो गई। 28 अगस्त 1990 को जब सरबजीत परिवार से जुदा हुए तो उनकीबड़ी बेटी स्वप्नदीप 3 साल की थी और छोटी बेटी पूनमदीप महज 23 दिन की थी। बेटियों को पिता का चेहरा तक याद नहीं था। सुखप्रीत कौर ने ही बेटियों को पालापोसा।

sarabjit singh wife Sukhpreet Kaur
सरबजीत सिंह की पत्नी सुखप्रीत कौर (फाइल फोटो)

चंडीगढ़: सरबजीत सिंह, वह नाम जिसे पूरे देश ने सुना। सरबजीत सिंह पर ऐश्वर्या राय और रणदीप हुड्डा अभिनीत फिल्म भी बनी। सरबजीत सिंह को पाकिस्तान ने फांसी की सजा दी, उनकी फांसी की सजा तो माफ हो गई लेकिन 2013 को सरबजीत की पाकिस्तानी जेल में हत्या कर दी गई। सरबजीत का 23 साल का सफर सलाखों के पीछे गुजरा लेकिन उनकी पत्नी सुखप्रीत कौर ने भी कम सजा नहीं भुगती। शादी के बाद पति के साथ महज 5 साल गुजारे और फिर एक रात को उनका सुखी संसार बिखर गया। नशे की हालत में पति पाकिस्तान पहुंच गए और जासूसी के आरोप में उन्हें जेल में डाल दिया गया। सुखप्रीत कौर ने अपनी बेटियों स्वप्नदीप और पूनमदीप को पालापोसा और उसके सहारे आगे की जिंदगी काटी। लेकिन सुखप्रीत की जिंदगी जहां हादसों भरी रही, वहीं उनकी मौत भी हादसे में ही हो गई। रविवार को सुखप्रीत दोपहिया वाहन पर सवार होकर जा रही थीं। जब सुखप्रीत कौर अमृतसर के खजाना चौक फतेहपुर के पास पहुंचीं तो अचानक बाइक से गिर गईं। उनकी मौके पर ही मौत हो गई। हालांकि उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

1984 में सुखप्रीत कौर की शादी सरबजीत से हुई थी। शादी करने के बाद उनका जीवन खुशहाल था। सरबजीत और सुखप्रीत कौर को दो बेटियां पूनमदीप और स्वपनदीप हुईं। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि आगे उनकी किस्मत में क्या लिखा है। 28 अगस्त 1990 को सुखप्रीत कौर की जिंदगी का सबसे मनहूस दिन था। सरबजीत शराब के नशे में पाकिस्तान की सीमा में चले गए। एक पाकिस्तानी कर्नल ने उन्हें पकड़कर मंजीत सिंह बताया और उनके ऊपर भारत के लिए जासूसी करने के आरोप भी लगे।

2013 को हुई सरबजीत की जेल में हत्या
सरबजीत सिंह को रॉ एजेंट बताते हुए लाहौर, मुल्तान और फैसलाबाद बम धमाकों का आरोपी बनाया गया। अक्टूबर 1999 में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। मामला तूल पकड़ा और सरबजीत के पक्ष में कई सबूत पेश किए गए। यह साबित हुआ कि पाकिस्तानी सेना ने सरबजीत को फंसाने के लिए फर्जीवाड़ा किया है लेकिन पाकिस्तान ने 1 अप्रैल 2008 को सरबजीत को फांसी देने की तारीख तय कर दी। मामला फिर तूल पकड़ा। बात अंतरराष्ट्रीय स्तर तक गई। भारत के प्रयास से सरबजीत की फांसी टाल दी गई। परिवार उनकी रिहाई के लिए लगा था, उम्मीद थी कि वह एक दिन जेल से बाहर आएंगे। सुखप्रीत कौर और उनका परिवार इसी आस में उनके आने की राह देखता। 26 अप्रैल 2013 को सरबजीत की लाहौर के कोट लखपत जेल में हत्या कर दी गई।

सुखप्रीत ने अकेले ही बेटियों को संभाला
28 अगस्त 1990 को जब सरबजीत परिवार से जुदा हुए तो उनकीबड़ी बेटी स्वप्नदीप 3 साल की थी और छोटी बेटी पूनमदीप महज 23 दिन की थी। बेटियों को पिता का चेहरा तक याद नहीं था। सुखप्रीत कौर ने ही बेटियों को पालापोसा। हालांकि सुखप्रीत का साथ उनकी ननद दलबीर ने खूब दिया, जिन्होंने सरबजीत की रिहाई को लेकर लंबी लड़ाई भी लड़ी। सुखप्रीत और सरबजीत की छोटी बेटी को संभाला और उसकी मां बनकर उसकी देखभाल की।

18 साल बाद पति को देखा लेकिन 18 मिनट भी नहीं हुई बात
पति के बिछड़ने के बाद सुखप्रीत कौर 2008 में पति से पहली बार मिलीं। 18 साल बाद पति से मिलने और उन्हें देखने की उनमें बहुत उत्सुकता थी। वह अपने पति के लिए घर से खाना बनाकर ले गईं, उन्हें लगा वह अपने हाथों से सरबजीत को खाना खिलाएंगी, दोनों साथ बैठकर खाना खाएंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।दोनों के बीच ठीक से बात भी नहीं हो पाई। सुखप्रीत बहुत सी बातें करना चाहती थीं लेकिन सारी बातें भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से लौटकर उनके दिल में वापस आ गईं।

बेटी थीं, इसलिए नहीं पढ़ाया गया
सुखप्रीत के लिए जीवन का संघर्ष मरने दम तक रहा। गांव में पैदा हुईं सुखप्रीत को उनके माता-पिता ने नहीं पढ़ाया। लड़की थीं इसलिए न तो शिक्षा मिली न ही परिवार में प्यार। जल्दी शादी कर दी गई। शादी के बाद महज 5 साल का सुख मिला और पति पाकिस्तान पहुंच गए। लिखी-पढ़ी न होने के कारण उन्हें बहुत संघर्ष करने पड़े। सरबजीत की रिहाई की लड़ाई लड़ते समय भी वह किसी से बात नहीं कर पाती थीं क्योंकि वह हमेशा डरी-सहमी सी रहती थीं।

जिंदगी भर पति के लौटने की राह देखती रहीं, उन्हें वापस लाने की लड़ाई लड़ती रहीं लेकिन 1990 के बाद से उनकी जिंदगी में खुशियां कभी नहीं आईं। हादसों से भरी जिंदगी जी और हादसे में ही सुखप्रीत की जान चली गई।