Sarika Interview: सारिका बोलीं- मैंने कभी बेटियों के पर नहीं काटे, नहीं चाहती श्रुति और अक्षरा मेरी जैसी बने

सारिका जल्‍द ही अमिताभ बच्‍चन, नीना गुप्‍ता, डैनी डेन्जोंगपा, अनुपम खेर और बोमन ईरानी के साथ फिल्‍म ‘ऊंचाई’ में नजर आने वाली हैं। नवभारत टाइम्‍स से इस खास बातचीत में सारिका ने फिल्‍म से जुड़ी कुछ मजेदार बातें बताईंं,साथ ही बेटियों से जुड़ी पर्सनल लाइफ के मुद्दों पर भी चर्चा की।

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सारिका का इंटरव्‍यू
‘परजानिया’ जैसी फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार की हकदार रहीं सारिका ने मनोरंजन जगत में एक लंबा अरसा गुजारा है। बाल कलाकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाली सारिका इन दिनों अपनी नई फिल्म ‘ऊंचाई’ को लेकर चर्चा में हैं। नवभारत टाइम्‍स से खास बातचीत में सारिका ने फिल्‍म के साथ ही अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में भी बात की। जब बेटियों श्रुति हासन और अक्षरा हासन का जिक्र आया तो एक्ट्रेस ने साफ शब्‍दों में कहा कि उन्‍होंने कभी अपनी बेटियों के पर नहीं काटे। उन्‍हें कभी कोई काम करने से नहीं रोका। आगे पढ़‍िए उनसे इस खास बातचीत के अंश-

आपकी फिल्म ‘ऊंचाई’ दोस्ती पर आधारित है। आपकी जिंदगी में दोस्ती का क्या महत्व है?
– परिवार वाली जो उम्मीदें होती हैं, वो दोस्ती में नहीं होती, इसलिए दोस्ती को अलग कहा गया है। दोस्त आप खुद हैं। दोस्ती बहुत जरूरी है और दोस्तों की जगह ही जीवन में अलग होती है। परिवार का अलग ही एक पहलू होता है जो दोस्ती में नहीं होता और यही खूबसूरती होती है दोस्ती की। ऐसा नहीं है कि परिवार के रिश्ते खुबसूरत नहीं होते, मगर दोस्ती की जगह अलग है। मेरे अलग-अलग क्षेत्रों में कई दोस्त हैं और सभी ने मुझे किसी न किसी कदम पर इंस्पायर किया है।

इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, बोमन ईरानी, डैनी, नीना गुप्ता जैसे समर्थ अदाकरों के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा? आपकी बॉन्डिंग सबसे ज्यादा किसके संग जमी?
– ऐसा कहना मुश्किल है क्योंकि ये टीम वर्क होता है और किसी भी फिल्म में टीम वर्क होना बहुत जरूरी होता है। इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबसूरती यही थी कि सभी का सुर एक है, एनर्जी एक थी, जो कि बहुत मुश्किल से होता है। ये एक जैसा सुर और एनर्जी कोशिश करने से नहीं होती, ये तो स्वाभाविक होती है। इस फिल्म में एनर्जी की शुरुआत ही सूरज जी (निर्देशक सूरज बड़जात्या) से होती है। सूरज जी की पूरी टीम एक ही सुर में है फिर चाहे वो काम करने का तरीका हो या सबका स्वभाव हो। ऐसे में सभी के साथ काम करके बहुत मजा आया, मगर बच्चन साहब के साथ काम का कुछ अलग ही तरह का अनुभव है। वो एक अलग लेवल पर इवॉल्व हुए हैं। लेकिन क्या कमाल का मुकाबला था? बोमन इरानी, अनुपम खेर और बच्चन साहब के बीच। इन तीनों के साथ काम करना एक तरह से ब्लेसिंग है। ऐसे में काम करना बहुत ही मजेदार होता है। घर लौटो, तो चेहरे पर एक हंसी रहती है कि आज अच्छा सीन किया, मजा आया।

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फिल्‍म ऊंचाई की शूट के दौरान अनुपम खेर, अमिताभ बच्‍चन, सारिका, नीना गुप्‍ता और बोमन ईरानी

आपके लिए ‘ऊंचाई’ के क्या मायने हैं?
-इसका जवाब मैं फनी अंदाज में दूं, तो मेरे लिए ऊंचाई अमिताभ बच्चन है।

आपने अपने करियर की शुरुआत बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट की थी। आज चाइल्ड आर्टिस्ट के लिए अपनी प्रतिभा को दिखाने के कई मौके होते हैं, आपके जमाने में वो नहीं थे?
– शायद मैं बहुत गलत इंसान हूं इस पर बात करने के लिए, क्योंकि मेरी राय इस पर बहुत ही अलग है। पहले और अब में इतना फर्क हो गया है कि आज कल जो गार्डियन हैं बच्चों के, वो सब स्मार्ट हो गए हैं। उनको पता है कि पॉलिटिकली सही क्या है? ये बोलना कि बच्चा स्कूल जाता है, जबकि बच्चा स्कूल नहीं जाता है। मैं भी तो ऐसे चाइल्ड स्टार्स के साथ काम कर रही हूं, तो वो एक अलग मसला है। मैं एक डॉक्यूमेंट्री का हिस्सा हूं। दीपा ने बनाई है। 3-4 साल से इस पर काम कर रही हैं और वह यह सब फॉलो कर रही हैं काफी वक्त से। मैं भी इस डॉक्यूमेंट्री का हिस्सा हूं। इसमें चाइल्ड आर्टिस्ट के कई मुद्दों को दर्शाया गया है। मेरे दिमाग में तो हमेशा से इस मुद्दे को लेकर कई बातें रही हैं। हमारे देश में विदेशों की तुलना में बाल कलाकारों के साथ बहुत ही अलग ढंग से काम होता है। विदेशों में बच्चे की टीचर होती हैं। अगर इमोशनल सीन होता है, तो थेरेपिस्ट होते हैं। कोई इमोशनल ट्रॉमा का सीन करे तो इस पर खास ध्यान दिया जाता है। बाल कलाकार के वर्किंग आवर्स को लेकर वहां पर कड़े कानून होते हैं कि बच्चा 5 घंटे से ज्यादा काम नहीं करेगा। मगर हमारे यहां तो लेट नाईट शूटिंग पर बच्चा बीच में सो जाता है और मां-बाप बोलते हैं कि आज तो इसने कुछ खास काम किया ही नहीं, जबकि पूरा दिन उसके पेरेंट्स उसे ऑडिशन के लिए यहां-वहां घुमाते रहते हैं। मां-बाप बच्चे को पूरा दिन इधर से उधर ऑडिशन दिलाते हैं तो बच्चा तो सोएगा ही ना। टैलेंट अच्छी बात है, मगर बच्चे एक उम्र से पहले बड़े होते जा रहे हैं।

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फिल्‍म ऊंचाई में सारिका

समर्थ अभिनेत्री होने के बावजूद आप चुनिंदा काम क्यों कर रही हैं?
– मेरे लिए रोल, डायरेक्शन और स्क्रिप्ट ये तीनों बहुत ही जरूरी हैं। मुझे अपने काम से इतना प्यार है कि मैं आपको बता नहीं सकती। मैंने पूरी जिंदगी किया ही क्या है? एक्टिंग मेरे डीएनए में है। ये कहना कि मुझे अच्छे रोल की तलाश होती है, ठीक है लेकिन अच्छा रोल हमेशा लीड रोल ही हो ये जरूरी नहीं है। अब जैसे मेरा कैरेक्टर है फिल्म में माला का, ये बहुत अलग है। काम बोलती है। बहुत ही गहराई है, इस किरदार में। मुझे खुशी है कि मैं एक दिलचस्प किरदार कर रही हूं। वह बात ज्यादा नहीं करती है तो वो अलग है और ऐसे किरदार मुझे बहुत पसंद आता है, क्योंकि मैं ये कुछ इंट्रेस्टिंग कर रही हूं। ऐसा नहीं है कि मेरे पास कम भूमिकाएं आती हैं। रोल्स तो कई आते हैं, मगर कई बार उनमें जान नहीं होती। मेरे लिए बहुत जरूरी है कि जब मैं काम करूं, तो मुझे खुशी मिले। मैं सिर्फ काम करने के लिए काम नहीं कर सकती। और सबसे जरूरी ये है कि कोशिश रहती है कि ऑडिएंस को कुछ ऐसा दे दो कि उनको मजा आ जाए।

आपने सबसे ज्यादा प्राउड कब महसूस किया?
-प्राउड का मुझे पता नहीं। शायद जब मेरे बच्चे पैदा हुए या फिर वो इमोशनल मोमेंट था। मेरे लिए प्राउड से ज्यादा इमोशनल मोमेंट महत्व रखते हैं। मुझे याद है जब मेरी दोनों बेटियों का जन्म हुआ था, उस वक्त मैं सबसे ज्यादा जज्बाती थी।

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बेटी अक्षरा हासन (सबसे आगे) और श्रुति हासन के साथ सारिका

आप खुद को कैसी मां मानती हैं? आपकी बेटियां श्रुति और अक्षरा भी आपकी तरह अभिनय के क्षेत्र में हैं।
-मुझसे पूछेंगी, तो मैं तो बोलूंगी कि मैं बहुत अच्छी मां हूं। मगर हां, मां के तौर पर भी अपनी बेटियों को मैं सबसे पहले एक इंडिविजुअल की तरह देखती हूं। मैंने कभी उनके पर काटने की कोशिश नहीं की और ना ही ये कशिश की कि वो मेरी छवि बन जाएं। मैं चाहती हूं कि वे अपनी खुद की एक पहचान बनाएं। ऐसा नहीं है कि मैं उनसे कुछ कहती नहीं, मगर बॉटम लाइन ये है कि वे अपनी जिंदगी के फैसलों के लिए आजाद रहें। वे खुद चुनें कि वे क्या बनना चाहती हैं। वो अगर गलतियां करेंगी, तो वो गलतियां उनकी अपनी गलतियां होंगी। कई बार मां-बाप बच्चा पैदा करते हैं, लेकिन उनकी इज्जत नहीं करते। वो कहते हैं, तू मेरा बच्चा है, तू मुझे क्या बता पाएगा? तो ऐसा नहीं है, जब वो एक उम्र में पहुंच जाता है, तो वो एक इंडिविजुअल है और तब आप उसकी इज्जत कीजिए। जहां तक एक ही फील्ड में काम करने की बात है, तो उनके साथ मुझे कलीग जैसे फील होता है। हम सभी को एक-दूसरे के शेड्यूल के बारे में पता होता है। श्रुति चेन्नई में शूटिंग कर रही है। मैं यहां प्रोमोशन कर रही हूं, दूसरि बेटी विदेश में है और यही सबसे खूबसूरत बात है।

ऐसी कोई चीज है, जो अतीत में जाकर आप बदलना चाहें?
– नहीं, मुझे अच्छा लगता है। अच्छा बुरा सब अच्छा लगता है। जो कुछ भी है, वो मेरा है और उसी से मैं बनी हूं। उस वक्त जो किया वो उस वक्त सही था, तो वो रिग्रेट कभी नहीं होना चाहिए। शायद ये इंटरव्यू दो महीने बाद हमको गलत लगे, लेकिन इस वक्त पर सब सही है। इसी तरह लाइफ में हम जो भी डिसिजन लेते हैं, वो उस वक्त पर सही होता है। दरअसल ये उस इंसान पर है कि वो चीजों को कैसे देख रहा है। वो दर्द और दुख को पहले रखता है या खुशियों को। खुशियों को चुनती हूं, दुख का तो कुछ नहीं कर सकते हैं। तो कोई रिग्रेट नहीं है लाइफ से।