हरिद्वार से हरियाणा के कैथल जिले के केयोडक गांव की पदयात्रा के लिए निकले शिवभक्त कावड़िया ने बताया कि यह प्रेरणा उन्हें अपने उस्ताद यानी गुरु देशराज से मिली है, जो ताईक्वांडो कोच हैं और वह उन्हें स्टंट सिखाते हैं। उन्होंने बताया कि जैसे बजरंग बली हनुमान ने अपना सीना चीरकर श्रीराम का वास अपने सीने में दिखाया था, उसी तरह भगवान शिव के प्रेम में वह अपनी पीठ पर लोहे के कुंडे बीनकर कांवड़ खींच रहे हैं, ये सब वह भगवान शिव के प्रेम में कर रहे हैं।
हरिद्वार से हरियाणा के कैथल जिले के केयोडक गांव की पदयात्रा के लिए निकले शिवभक्त कावड़िया ने बताया कि यह प्रेरणा उन्हें अपने उस्ताद यानी गुरु देशराज से मिली है, जो ताईक्वांडो कोच हैं और वह उन्हें स्टंट सिखाते हैं। उन्होंने बताया कि जैसे बजरंग बली हनुमान ने अपना सीना चीरकर श्रीराम का वास अपने सीने में दिखाया था, उसी तरह भगवान शिव के प्रेम में वह अपनी पीठ पर लोहे के कुंडे बीनकर कांवड़ खींच रहे हैं, ये सब वह भगवान शिव के प्रेम में कर रहे हैं।
कावड़िया जोगिंदर शिवभक्त ने बताया कि जैसे ये कावड़ उठाते समय भोले का नाम लेते हैं तो उन्हें कोई दर्द नहीं होता है और न ही किसी की याद आती है। जोगिंदर पेशे से एक प्लम्बर हैं और अपने उस्ताद देशराज के पास रहकर ताईक्वांडो सीख रहे हैं। वहीं, जोगिंदर के उस्ताद ताईक्वांडो कोच देशराज ने बताया कि हरिद्वार से हरियाणा बॉर्डर तक इस कांवड़ को जोगिंदर लेकर जाएंगे, उससे आगे वह स्वयं इसी तरह कांवड़ को शिवमन्दिर तक पहुंचाएंगे। देशराज ने बताया कि उन्होंने कावड़ यात्रा से पहले वाल्मीकि जयंती पर कमर में कुंडी डालकर एक बड़ा ट्रक भी खींचा था, जिसके बाद मन में विचार आया कि जब हम इतना बड़ा ट्रक खींच सकते हैं तो ये कांवड़ तो सिर्फ डेढ़ से दो क्विंटल वजन है इसे क्यों नहीं ले जा सकते।