हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच से फिर नाराजगी जताई है। 265 करोड़ रुपये के छात्रवृत्ति घोटाले में तीन सप्ताह में दोबारा रिपोर्ट दायर करने के दिए आदेश दिए हैं।
सीबीआई ने बहुचर्चित छात्रवृत्ति घोटाले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में ताजा स्टेटस रिपोर्ट दायर की। यह रिपोर्ट जांच में लेटलतीफी पर फटकार के बाद पेश की। हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच से फिर नाराजगी जताई है। 265 करोड़ रुपये के घोटाले में तीन सप्ताह में दोबारा रिपोर्ट दायर करने के दिए आदेश दिए हैं। सीबीआई ने कोर्ट को बताया कि शिक्षा विभाग के छह कर्मचारियों समेत 31 को अभियुक्त बनाया गया है। इनमें चार बैंक कर्मचारी भी हैं। इनके खिलाफ 7 मामलों में अदालत के समक्ष चार्जशीट दायर की गई है। हालांकि, अदालत ने इस रिपोर्ट पर असहमति जताई है। मुख्य न्यायाधीश एए सैयद और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने सीबीआई को तीन हफ्ते में दोबारा स्टेटस रिपोर्ट दायर करने के आदेश दिए हैं।
रिपोर्ट के माध्यम से अदालत को बताया गया है कि 295 शैक्षणिक संस्थानों ने 90 फीसदी छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किया था। 25 संस्थानों ने 38.23 करोड़ से 82.84 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति प्राप्त की है। 12 संस्थानों की जांच चल रही है। इसे पूरा करने के लिए कम से कम छह महीने का समय लगेगा। इस पर हाईकोर्ट ने असंतोष जताया। अदालत ने सीबीआई को आदेश दिए थे कि वह जांच पूरा करने के बारे में निर्धारित तिथि बताएं। प्रार्थी ने जनहित में दायर याचिका में छात्रवृत्ति घोटाले के संबंध में दैनिक समाचार पत्रों में छपी खबरों को संलग्न किया है। इस बारे में हुई प्रारंभिक जांच में सीबीआई ने बड़ा खुलासा किया है।
केंद्रीय जांच एजेंसी को छानबीन में पता चला है कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों और निजी शिक्षण संस्थानों में छात्रवृत्ति हड़पने के लिए बाकायदा एक रैकेट चल रहा था। इसके लिए अधिकारी निजी शिक्षण संस्थानों को छात्रवृत्ति जारी करने के लिए 10 फीसदी तक कमीशन लेते थे। यह कमीशन का खेल होटलों में चलता था। यहां पर स्कॉलरशिप जारी कराने की एवज में निजी संस्थान विभाग के अधिकारियों को कमीशन का पैसा देते थे। निचले स्तर के अधिकारी-कर्मचारी छात्रवृत्ति फाइलों पर अपने स्तर पर ही निर्णय लेते थे। जांच में यह भी पता चला है कि नियमों के विपरीत निजी ई-मेल आईडी से छात्रवृत्ति के काम को अंजाम दिया जाता था।
अदालत में पेश न होने पर प्रधान सचिव लोक निर्माण विभाग के खिलाफ हाईकोर्ट ने की कड़ी टिप्पणी
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अदालत में पेश न होने पर प्रधान सचिव लोक निर्माण विभाग के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने भरत खेड़ा को आज अदालत के समक्ष तलब किया है। अवमानना के मामले में आदेशों के बावजूद अदालत के समक्ष पेश न होने पर अदालत ने कहा कि भरत खेड़ा कोई अज्ञानी या देहाती ग्रामीण नहीं है। अदालत ने पाया कि आदेशों के मुताबिक भरत खेड़ा को छोड़कर सभी अधिकारी अदालत के समक्ष मौजूद हैं। इस मामले में केके कौशल अधीक्षण अभियंता मंडी, जेके गुप्ता अधिशाषी अभियंता मंडी और अर्चना ठाकुर मुख्य अभियंता को प्रतिवादी बनाया गया है।
अतिरिक्त महाधिवक्ता ने अदालत को बताया कि यह अधिकारी 16 सितंबर से किन्नौर दौरे पर हैं। अदालत ने हैरानी जताते हुए कहा कि उसे अदालत के समक्ष पेश होने के बारे में गत 26 अगस्त को आदेश दिए गए थे। वह एक जिम्मेदार वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं और अदालत के आदेशों की अनुपालना में क्या करना है क्या नहीं, उसे सब पता है। इसके बावजूद वह अपने कार्य को इस तरह से व्यवस्थित करने में नाकाम रहा, ताकि अदालत में पेश हो सके। राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि भरत खेड़ा की ओर से अदालत में पेश होने से छूट के लिए आवेदन प्राप्त हुआ है। यह अभी तक अदालत के समक्ष दायर नहीं किया गया है।