SCO Summit 2022: समरकंद बैठक में सबसे आखिर में ही क्यों पहुंचे PM मोदी, कूटनीति का कोडवर्ड समझिए

SCO Summit 2022: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के राष्‍ट्राध्‍यक्षों की बैठक में हिस्‍सा लेने गए हैं। हालांकि उनका अंदाज साफ बता रहा है कि भारत तटस्‍थ दिखना चाहता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उज्‍बेकिस्‍तान यात्रा बमुश्किल 24 घंटे चलेगी। वह समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के राष्‍ट्राध्‍यक्षों की 22वीं कॉन्‍फ्रेंस में हिस्‍सा लेंगे। मोदी इस दौरान क्‍या-क्‍या करेंगे, किन-किनसे मिलेंगे, किन बैठकों में शामिल होंगे, यह सब कूटनीति को ध्‍यान में रखकर तय किया गया है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि चीन, रूस और ईरान जैसे देश भी SCO के सदस्‍य हैं। इन तीनों देशों से पश्चिमी देश खार खाते हैं। यूक्रेन पर रूसी हमले और ताइवान-चीन विवाद के बीच इस बैठक को अहम माना जा रहा है। भारत नहीं चाहता कि वह किसी भी मंच पर किसी एक के पक्ष में खड़ा दिखे। कूटनीतिक तटस्‍थता के संदेश देने की शुरुआत मोदी के समरकंद पहुंचने से ही हो गई। मोदी गुरुवार को समरकंद पहुंचने वाले आखिरी नेता थे। मोदी न तो SCO नेताओं के इनफॉर्मल डिनर में शामिल हुए, न ही सामूहिक रूप से पौधे रोपने के फोटो-ऑप में। समझ‍िए समरकंद में पीएम मोदी की कूटनीति को।

SCO के बाकी नेताओं ने साथ किया डिनर, मोदी-शी नहीं आए

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गुरुवार शाम को समरकंद में SCO के नेताओं ने साथ में अनौपचारिक डिनर किया। इसमें मोदी और जिनपिंग दोनों ही शामिल नहीं हो सके। मोदी तो गुरुवार देर रात समरकंद पहुंचे मगर शी जिनपिंग बुधवार को ही उज्‍बेकिस्‍तान पहुंच गए थे। इसके बावजूद वह डिनर में नहीं गए। मोदी शुक्रवार रात तक स्‍वदेश रवाना हो जाएंगे।

पौधों की रोपाई में भी शामिल नहीं हो सके PM

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पीएम मोदी के समरकंद पहुंचने में देरी का नतीजा यह भी रहा कि वह बाकी नेताओं संग पौधों की रोपाई नहीं कर पाए। यह भी पीएम के प्‍लान का हिस्‍सा था। मोदी से अलावा बाकी नेताओं ने समरकंद में सम्मेलन स्‍थल के पास पौधे रोपे। मोदी का शेड्यूल काफी टाइट है, ऐसे में उन्‍हें बाकी नेताओं संग अनौपचारिक बैठकों और फोटो खिंचवाने का समय नहीं मिलेगा। आगे समझिए कि PM ने कौन सी कूटनीति के तहत अपना समरकंद दौरा इतना छोटा रखा है।

तटस्‍थ दिखना चाहता है भारत, कोई खेमेबाजी नहीं

SCO में चीन, रूस और ईरान जैसे देशों की सहभागिता भी है। ये वे मुल्‍क हैं जिन्‍हें अमेरिका, ब्रिटेन समेत पश्चिमी देश फूटी आंख नहीं सुहाते। इस बारे के SCO शिखर सम्‍मेलन को पश्चिमी देशों के खिलाफ एक मंच के रूप में प्रस्‍तुत किया गया है। भारत नहीं चाहता कि वह ऐसे किसी डिप्‍लोमेटिक झमेले में फंसे। भारत की विदेश नीति गुट निरपेक्षता की रही है। वह सबको साथ लेकर चलने में विश्‍वास रखता है। गोलबंदी उसकी कूटनीति का हिस्‍सा नहीं है। SCO के बहाने अगर चीन और रूस कोई कूटनीतिक जाल फेंक भी रहे हैं तो भारत उसमें फंसने को तैयार नहीं।

चीन, पाकिस्‍तान संग द्विपक्षीय बातचीत के चांसेज कम

एलएसी पर सीमा विवाद के बाद पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग शुक्रवार को पहली बार आमने-सामने आएंगे। हालांकि, वहां पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ या चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से अलग से मुलाकात होने पर सस्पेंस जारी है। सूत्रों के अनुसार, अभी तक इनसे मिलने की संभावना कम ही है।

SCO में कौन-कौन से देश?

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की स्थापना 2001 में हुई थी। इसका मुख्यालय चीन की राजधानी पेइचिंग में है। इसमें चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान शामिल हैं। ये संगठन मुख्य रूप से क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों और विकास पर ध्यान फोकस करता है।

न ईस्‍ट, न वेस्‍ट… इंडिया का हित ही सर्वोपरि

मोदी ने SCO शिखर सम्‍मेलन से इतर आयोजनों से दूरी बनाकर साफ कर दिया है कि वह केवल भारत का हित देख रहे हैं। चूंकि, इस सम्‍मेलन में होने वाली चर्चा पर पश्चिमी देश भी नजर गड़ाए बैठे हैं। पश्चिम के कई चिंतकों ने पिछले दिनों लिखा कि SCO के जरिए चीन और रूस मिलकर गोलबंदी करने की कोशिश कर रहे हैं। यह भी कहा गया कि रूस इस बहाने यूरेशिया में NATO के मुकाबले का संगठन खड़ा करना चाहता है।

भारत न सिर्फ पूर्व, बल्कि पश्चिम के देशों के कई मंचों का हिस्‍सा है। ऐसे में किसी एक का पक्ष न लेना उसकी विदेशी नीति का तकाजा भी है। भारत की विदेश नीति पर नजर रखने वाले कई विश्‍लेषकों ने पीएम मोदी की ‘शॉर्ट ट्रिप’ को कूटनीतिक मास्‍टरस्‍ट्रोक बताया है।

पर्दे के पीछे खेल कर रहे चीन और रूस?

गुरुवार को रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन और चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई। इस बैठक के बाद यही संदेश गया कि ये दोनों देश अमेरिका व अन्‍य पश्चिमी देशों के खिलाफ पर्दे के पीछे कुछ ‘खेल’ कर रहे हैं। अभी पत्‍ते नहीं खोले गए हैं लेकिन भारत ऐसी किसी पहल का हिस्‍सा नहीं बनना चाहता जो उसे किसी एक गुट से जुड़ा दिखाए।