शिक्षक के बारे में कहते हैं कि वो उस मोमबत्ती के समान होता है जो ख़ुद जलकर लेकिन सैंकड़ों की ज़िन्दगी रौशन करता है. ग़ौरतलब है कि टीचर बनना आसान है, कुछ नहीं आता होगा तो टीचर बन गया होगा जैसे कथन भी हमारे समाज में खूब चलते हैं. और तो और हर टीचर को ट्यूशन आने पर ही नंबर देने वाला भी समझा जाता है. हो सकता है समाज में कुछ ऐसे लोग हों लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो बच्चों की ज़िन्दगी बेहतर बनाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. ऐसी ही महिला हैं बिलासपुर, छत्तीसगढ़ की सीमा वर्मा (Seema Verma). सीमा वकालत की पढ़ाई करने के साथ ही कई बच्चों का भविष्य सुधार रही हैं.
एक रुपये में बदली सैंकड़ों बच्चों की क़िस्मत
सीमा वर्मा ने 12वीं तक के बच्चों को शिक्षा को लेकर जागरूक करने के लिए एक अनखा आइडिया निकाला है. उन्होंने एक रुपया मुहीम शुरु की है. ABP Live के लेख के मुताबिक, सीमा वर्मा 5 साल में 13,500 से अधिक स्कूली के छात्रों को स्टेशनरी मुहैया करवा चुकी हैं. सीमा 34 स्कूल के छात्रों की पढ़ाई का खर्च खुद उठा रही है, जब तक ये छात्र 12वीं पास नहीं करते सीमा उनकी फ़ीस भरेंगी.
क्या है एक रुपया मुहीम?
सीमा वर्मा लोगों से एक-एक रुपये जमा करती हैं और ग़रीब, ज़रूरतमंद बच्चों की मदद करती हैं. वो किसी से भी एक रुपये से ज़्यादा नहीं लेती. इस मुहीम से अब तक लाखों रुपये जमा हो चुके हैं और हज़ारों बच्चों की ज़िन्दगी बदल चुकी है. उनकी इस मुहीम की आम लोगों से लेकर अफ़सरों तक ने तारीफ़ की है.
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से आया मुहीम का आइडिया
एक रुपये मुहीम का आइडिया सीमा को महामना मदन मोहन मालविय से आया. महामना मदन मोहन मालविय ने एक-एक रुपये चंदा इकट्ठा करके काशी हिन्दू विश्वविद्यालय बनवाया था. सीमा को इस मुहीम की वजह से लोग भिखारी भी कह देते हैं लेकिन उन्हें ऐसे तानों से फ़र्क नहीं पड़ता. 2016 में सीमा ने अपने कॉलेज इस मुहीम की शुरुआत की और 395 जमा किए, इस राशि से एक छात्रा की स्कूल की फ़ीस भरी गई थी.
सीमा वर्मा न सिर्फ़ ख़ुद समाज में बदलाव लाने की कोशिश कर रही हैं बल्कि उन्हें देखकर दूसरे लोग भी समाज के लिए कुछ करने को प्रेरित हो रहे हैं.