त्वचा की ‘सफेदी’ के कारण बिखरते वैवाहिक संबंध, कसमों-रस्मों पर भारी पड़ती सामाजिक अशिक्षा

Vitiligo Day Exclusive: त्वचा की ‘सफेदी’ के कारण बिखरते वैवाहिक संबंध, कसमों-रस्मों पर भारी पड़ती सामाजिक अशिक्षा

सफेद दाग के कारण टूटते रिश्तों की कहानी

रमेश और रश्मि (बदला हुआ नाम) की दिसंबर 2011 में बड़े धूमधाम के साथ शादी हुई, हालांकि कुछ ही दिनों के बाद रमेश ने पत्नी से अलग होने का फैसला कर लिया। आरोप था कि उसने पत्नी के शरीर पर निशान देखे और पता चला कि वह केलोइड नामक त्वचा रोग से पीड़ित है और उसका इलाज चल रहा है। रमेश का कहना था कि ससुराल वालों ने शादी से पहले त्वचा की इस समस्या  को छिपाया, उसके साथ धोखाधड़ी की।

कुछ वर्षों तक अलग रहने के बाद रमेश ने अगस्त 2015 में नागपुर फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी लगाई। हालांकि अदालत ने त्वचा रोग के आधार पर तलाक देने की याचिका को न सिर्फ खारिज कर दिया, साथ ही आदेश दिया कि जब तक वह रश्मि को वापस घर नहीं ले जाता तब तक उसे हर महीने 20 हजार रुपए दे। 

न्यायाधीश सुभाष काफरे ने अपने फैसले में कहा

त्वचा रोग को आधार बनाकर तलाक नहीं दिया जा सकता। इस मामले में  याचिकाकर्ता ने पत्नी की बीमारी को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है। यह स्त्री के अधिकारों का हनन है, जिसके लिए इसकी भरपाई की जानी चाहिए। इस तरह के हल्के तथ्यों के आधार पर वैवाहिक विच्छेद के लिए याचिका दायर करना सही नहीं है।
अदालत का यह मामला ही इस खबर का आधार है। असल में देश में कई ऐसे मामले अक्सर सामने आते रहे हैं जिसमें त्वचा रोगों, विशेषकर विटिलिगो (सफेद दाग) के कारण लोगों के वैवाहिक रिश्ते टूटते रहे हैं। चूंकि ऐसे मामले ज्यादा रिपोर्ट नहीं किए जाते हैं इसलिए रमेश और रश्मि के केस जैसे लिखित उदाहरण तो कम हैं पर वास्तविकता में हमारे समाज में सफेद दाग की समस्या वैवाहिक जीवन में हमेशा से दिक्कतें पैदा करती रही है।

सफेद दाग को मेडिकल साइंस में त्वचा रंगक में होने वाली दिक्कतों से उपजी बीमारी के तौर पर माना जाता है, पर रोगी के लिए यह शारीरिक समस्या से कहीं ज्यादा मानसिक दिक्कतों जैसे कलंक, हीन भावना और अवसाद का कारण बनती है। सफेद दाग के शिकार लोग पहले तो शादी करने से हिचकते हैं और हो भी जाए तो यह संबंध कितने दिनों तक बना रहेगा, यह सबसे बड़ा प्रश्न रहता है। 

25 जून को वर्ल्ड विटिलिगो डे मनाया जाता है, जिससे इस समस्या के बारे में लोगों को जागरूक किया जा सके। इसका उद्देश्य यह भी है कि विटिलिगो को त्वचा की समस्या ही माना जाए यह मानसिक विकारों को जन्म न देने पाए।

वैश्विक स्तर पर विटिलिगो के मामले

पहले विटिलिगो के बारे में जानिए
 
मेडिकल की भाषा में विटिलिगो या सफेद दाग को स्किन पिगमेंटेशन यानी कि त्वचा रंजकता से संबंधित विकार माना जाता है। यह एक ऑटोइम्यून समस्या है। अनुमान है कि दुनिया की आबादी का लगभग 1.5 फीसदी हिस्सा इस समस्या से ग्रसित है। यह महिला-पुरुष किसी को भी, कभी भी हो सकता है, यानी कि अगर आप आज इस समस्या से मुक्त हैं तो ऐसा नहीं है कि आपको यह कभी हो नहीं सकता।

डॉक्टर्स कहते हैं, जन्मजात सफेद दाग की समस्या रोगियों के लिए सामाजिक-मानसिक बोझ के तौर पर रहती है। 

आंकड़े बताते हैं कि 25% लोगों में यह रोग 10 वर्ष की आयु से पहले विकसित हो जाती है। भारत में गुजरात और राजस्थान में सफेद रोग के सबसे ज्यादा मामले रिपोर्ट किए जाते रहे हैं। एक डेटा के अनुसार देश की करीब 2.5 फीसदी जनता इस गंभीर समस्या से ग्रसित है।विटिलिगो के कारण कलंक और चिंता की भावना

सफेद दाग शरीरिक से कहीं ज्यादा मानसिक समस्या बढ़ा देते हैं

भले ही सफेद दाग को मेडिकल साइंस में शारीरिक समस्या माना जाता रहा हो, पर इसका असर मानसिक स्वास्थ्य को कहीं अधिक प्रभावित करता है।

एक केस में जिक्र मिलता है कि न्यूयॉर्क में रहने वाली स्टेला पावलाइड्स सफेद दाग की समस्या की शिकार हैं। वह जब 22 साल की थी और कोर्ट रिपोर्टर बनने के लिए पढ़ाई कर रही थीं, तब उन्होंने पहली बार अपने हाथों और मुंह पर सफेद धब्बे नोटिस किए। डॉक्टरों ने जांच में विटिलिगो के तौर पर इसका निदान किया। अब वह 40 साल की हैं। अपने ब्लॉग में वह कहती हैं-  ”भले ही डॉकटर्स कहते हैं कि यह जानलेवा नहीं है, पर मुझसे पूछिए मैं हर दिन इसके कारण मरती हूं, इस समस्या ने मेरी आत्मा को मार दिया है।”

डॉक्टर्स कहते हैं, विटिलिगो से परेशान लोगों के लिए मानसिक दिक्कतों जैसे हीनभाव या सोशल एंग्जाइटी की समस्याओं का शिकार होना काफी सामान्य होता है। मनोचिकित्सक कहते हैं, आजकल तो अपने लुक में थोड़ी सी गड़बड़ी हो जाने पर भी लोगों में अवसाद को जोखिम बढ़ जाता है, विटिलिगो में तो खैर यह स्पष्ट तौर पर दिखने वाली स्थिति होती है। 

सफेद दाग की समस्या से परेशान लोगों पर साल 2014 में किए गए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि विटिलिगो के शिकार करीब 79 फीसदी लोगों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं देखी जाती हैं। भले ही यह शारीरिक समस्या है पर यह रोगियों में सामाजिक भय, जीवन की गुणवत्ता और आत्मसम्मान में कमी आदि नकारात्मक सोच को बढ़ा देती है।  

मनोरोग विशेषज्ञ कहते हैं- ”विटिलिगो के कारण उपजे इस तरह के मनोविकारों का व्यक्तिगत और वैवाहिक जीवन पर भी गहरा असर हो सकता है। पर हमें ध्यान रखना चाहिए कि डायबिटीज या हृदय रोगों जैसी यह भी एक ऐसी बीमारी है जो किसी को भी कभी भी हो सकती है। जरूरी नहीं कि जिस लड़की-लड़के से आप शादी कर रहे हैं, वह पहले साफ त्वचा वाला रहा हो तो उसे बाद में इस तरह की दिक्कतें नहीं होंगी। ऐसे में इस आधार पर तलाक जैसी स्थितियां सामाजिक रूढ़िवादित और आपकी अशिक्षा का ही परिचायक हैं।

सफेद दाग पाप का लक्षण नहीं है 

कई रिपोर्ट्स से पता चलता है कि देश में ज्यादातर लोगों को अब भी सफेद दाग के कारणों के बारे में व्यवस्थित जानकारी नहीं है। इतना ही नहीं अज्ञानता के कारण इसे लंबे समय तक देश के कई हिस्सों में पाप के लक्षण के रूप में दर्शाया जाता रहा है। पाप शब्द के साथ ही कलंक और हीन भावना जुड़ जाती है, यही कारण है कि सफेद दाग से परेशान लोगों को कई तरह की सामाजिक-मानसिक चुनौतियों से भी अक्सर दो चार होना पड़ता है। रिश्तों का टूटना, हीन भावना और रोगियों के प्रति सामाजिक कलंक की दृष्टि इसी अज्ञानता का प्रमाण है।

वहीं मेडिकल साइंस स्पष्ट कहता है, इसका किसी भी पाप-पुण्य से कोई लेना-देना है ही नहीं। विटिलिगो, त्वचा वर्णक यानी कि त्वचा को रंग प्रदान करने वाली मेलेनिन में आने वाली कमी की स्थिति है। आमतौर पर सफेद दाग के निशान चेहरे, हाथों और पैरों पर देखे जाते हैं, पर कुछ मामलों में यह बालों के रंग भी उड़ा सकता है।

सामान्यतौर पर बालों और त्वचा का रंग मेलेनिन द्वारा निर्धारित होता है। जब मेलेनिन का उत्पादन करने वाली कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं तो यह स्थिति सफेद दाग का कारण बनती है। अध्ययनों में पाया गया कि ज्यादातर लोगों में ऑटोइम्यून डिजीज (जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली स्वयं शरीर को कोशिकाओं को नष्ट करने लगती है) के कारण  मेलेनिन का उत्पादन प्रभावित होता है। चूंकि ऑटोइम्यून डिजीज को ठीक नहीं किया जा सकता, ऐसे में सफेद दाग की समस्या से पहले से बचाव करना थोड़ा कठिन है।

विटिलिगो से कैसे दूरी?

हाथ मिलाइए-दोस्ती बढ़ाइए, इससे प्यार बढ़ता है विटिलिगो नहीं

विटिलिगो से परेशान लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती समाज का उनसे दूरी बना लेना भी रहा है। आंध्रप्रदेश के एक मामले में साल 2005 में एक महिला ने सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि सफेद दाग के कारण लोगों ने उससे बात तक करना बंद कर दिया था। महिला लंबे समय तक अवसाद का शिकार भी रही। यह भी विटिलिगो को लेकर सामाजिक अज्ञानता का एक उदाहरण है।

सफेद दाग की समस्या को लेकर लोगों की सोच रही है कि जिन लोगों को यह रोग है उनके निकट संपर्क में रहने से यह दूसरे लोगों में भी हो सकता है। हालांकि मेडिकल साइंस इस सोच को पूरी तरह से खारिज करता है।

सफेद दाग की समस्या, न तो संक्रामक है न ही जानलेवा। ऐसे में जिन लोगों को यह समस्या है उनके साथ बैठने, खाने, हाथ मिलाने से यह दूसरों में नहीं फैलता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे लोगों को गले लगाना चाहिए, जिससे उनके मन से स्वयं के प्रति कुंठा और हीनभाव खत्म हो सके। गले लगाने-हाथ मिलाने से प्यार बढ़ता है, विटिलिगो नहीं।