Sheetala Ashtami Upay: शीतला अष्टमी जिसे बासौड़ा भी कहते हैं, 15 मार्च बुधवार को मनाई जाएगी। इस दिन माता शीतला को बासी खाने का भोग लगाने के साथ ही उसे प्रसाद के रूप में स्वयं भी ग्रहण करें। ऐसी मान्यता है कि माता शीतला बच्चों को सर्द-गरम से होने वाली बीमारियों से बचाती हैं और उन्हें सभी कष्टों से दूर रखती हैं। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व, उपाय और पूजाविधि।
कब है शीतला अष्टमी
शीतला सप्तमी : मंगलवार 14 मार्च को
शीतला अष्टमी : बुधवार 15 मार्च को
जिन घरों में शीतला अष्टमी की पूजा की जाती है उन घरों में इस दिन ताजी भोजन नहीं पकाया जाता और सिर्फ बासी खाने का ही प्रयोग किया जाता है। इसलिए इसे बासौड़ा भी कहा जाता है। आइए आपको बताते हैं इस व्रत का महत्व, पूजाविधि, उपाय और इस दिन क्या नहीं करना चाहिए।
शीतला अष्टमी का महत्व
होली से आठवें दिन शीतला अष्टमी का व्रत किया जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा विधि विधान से करने के साथ ही व्रत भी रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि माता शीतला बच्चों को सर्द-गरम से होने वाली चेचक जैसी बीमारियों से बचाती हैं और उनके जीवन से कष्टों को दूर करती हैं। इसके साथ ही माता शीतला संक्रामक रोग से पीड़ित बच्चों को शीतलता प्रदान करके उनके शारीरिक कष्ट को कम करती हैं।
बच्चों की दीर्घायु के लिए करें ये उपाय
शीतला सप्तमी की शाम को गुड़ के 21 गुलगुले बनाएं। इनके तीन हिस्से कर लें। पहले हिस्से को रख दें और इससे बासी भोजन के रूप में अष्टमी के दिन माता शीतला का भोग लगाएं। एक हिस्से को अष्टमी के दिन गाय को खिला दें। बाकी बचे एक हिस्से को रात में एक लोटा जल के साथ बच्चों के सिरहाने रख दें। सुबह उठकर उस लोटे के जल से बच्चों को छींटें दें और गुलगुले बच्चों के ऊपर से 7 बार उबारकर काले कुत्ते को खिला दें। ऐसा करने से आपके बच्चे संक्रामक बीमारियों से दूर रहते हैं और माता शीतला उनकी रक्षा करती हैं।
शीतला अष्टमी पर भूलकर भी न करें ये कार्य
- इस दिन भूलकर भी गरम या फिर ताजा भोजन न करें। इस दिन सप्तमी पर बनाए भोजन का ही सेवन करें। ठंडी तासीर वाली चीजें खाएं और ठंडे जल से स्नान करें।
- अगर आपके घर में किसी को चेचक हुआ है तो भूलकर भी शीतला माता का व्रत न करें।
- शीतला सप्तमी और अष्टमी पर माताएं बाल न धोएं और न ही बाल कटवाएं।
- शीतला सप्तमी और अष्टमी के दिन न किसी प्रकार की सिलाई करें और न ही सुर्इ में धागा पिरोएं। इस दिन ऐसा करना अशुभ माना जाता है। खासकर जो महिलाएं गर्भवती हैं वे ऐसा न करें।
- शीतला सप्तमी और अष्टमी के दिन आटे की चक्की या फिर चरखा नहीं चलाना चाहिए। इस दिन गेहूं पिसवाने के लिए भी न भेजें।
शीतला अष्टमी की पूजाविधि
शीतला अष्टमी से एक दिन पहले सप्तमी पर स्नान करके स्वच्छता से माता शीतला के लिए भोग तैयार करें। इसमें मीठी रोटी, गुलगुले और मीठे चावल तैयार कर लें। शीतला अष्टमी के दिन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण और पूजा के स्थान को गंगा जल छिड़ककर पवित्र कर लें। इसके बाद माता शीतला का ध्यान करते हुए अक्षत, फूल और फल चढ़ाएं। अगर आपके घर में माता शीतला की तस्वीर नहीं है तो आप मां दुर्गा की तस्वीर की ही पूजा कर सकते हैं। माता शीतला को देवी दुर्गा की का एक रूप माना गया है। उसके बाद माता को बासी भोजन का भोग लगाएं और सोलह श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें। विधिवत आरती करें और फिर बासी भोजन को प्रसाद के रूप में स्वयं खाएं और बच्चों को खिलाएं।