Sheetala Saptami Katha: शीतला सप्तमी कथा, पूजा के बाद जरुर पढ़ें, जानें महत्व

Sheetala Saptami Vrat Katha: शीतली सप्तमी जो चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तीथि को होती है। इस बार शीतला सप्तमी 14 मार्च को है। इस व्रत को माता अपने बच्चों के लिए रखती हैं। इस दिन पूजा का बाद शीतला माता की कथा जरुर पढ़नी चाहिए। यहां पढ़ें शीतला माता की कथा।

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एक गांव में ब्राह्मण दंपति रहते थे। उनके दो बेटे थे और दोनों की ही शादी हो चुकी थी। उन दोनों बहुओं को कोई संतान नहीं थी। लंबे समय बाद उन्हें संतान हुई। इसके बाद शीतला सप्तमी का पर्व आया इस अवसर पर घर में ठंडा खाना बनाया गया।
दोनों बहुओ के मन में विचार आया कि अगर हम ठंडा खाना खाएंगे तो बच्चे बीमार हो सकते हैं। दोनों बहुओं ने बिना किसी को बताएं दो बाटी बना ली।

सास बहू शीतला माता की पूजा की और कथा सुनी। इसके बाद सास शीतला माता की भजन गाने लगी और दोनों बहुएं बच्चों का बहाना बनाकर घर आ गई। दोनों से घर आकर गरम गरम खाना खाया इसके बाद जब सास घर आई तो उसने दोनों बहुओं से खाना खाने के लिए खा। दोनों बहुएं काम में लग गई। सास ने कहा कि बच्चे बहुत देर से सो रहे हैं उन्हें जगाकर कुछ खिला दो। जैसे ही दोनों बच्चों को उठाने के लिए गई दोनों बच्चे मृत थे।

ऐसा शीतला माता के प्रकोप से हुए। दोनों बहुओं ने रो रो कर अपनी सास को सारी बात बताई। सास ने दोनों को बहुत सुना और कहा कि अपने बेटों के लिए तुमने माता शीतला की अवहेलना की है। दोनों घर से निकल जाओ और दोनों बच्चों को जिंदा स्वस्थ लेकर ही घर में कदम रखना।

दोनों बहुएं अपने बच्चों को टोकरे में रखकर घर से निकल पड़ी। जाते जाते रास्ते में एक जीर्ण वृक्ष आया। जो खेजड़ी का वृक्ष था। इसके नीचे दो बहने बैठी थी जिनका नाम ओरी और शीतला था। दोनों के बालों में जूं थी। बहुए काफी थक भी गई थी वह भी उस वृक्ष के नीचे बैठ गई। इसके बाद दोनों ने ओरी और शीतला के सिर से बहुत सारी जुएं निकाली। जुओं के निकल जाने से उन्हें काफी अच्छा अनुभव हुआ। दोनों बहनों ने कहा कि अपने मस्तक में शीलता का अनुभव किया। कहा तुम दोनों ने हमारे मस्तक को शीतला ठंडा किया है वैसे ही तुम्हें पेट की शांति मिले।

दोनों बहुओं ने कहा कि पेट का दिया हुआ ही लेकर हम मारी-मारी भटकती हैं। परंतु शीतला माता के दर्शन हुए नहीं। इतने में शीतला माता बोल उठी की तुम दोनों दुष्ट हो, दुराचारिणी हो। तुम्हारा मुंह तो देखने लायक ही नहीं है। शीलता सप्तमी के दिन ठंडा भोजन करने के बदले तुमने दोनों ने गरम खाना खाया।

इतना सुनते ही दोनों बहुओं ने शीतला माता को पहचान लिया। दोनों माता शीतला से वंदन करने लगी। दोनों ने कहा माता हमें माफ कर दो हमने अनजाने में भोजन कर लिया। हम दोनों आपके प्रभाव से वंचित थे। हम दोनों को माफ कर दो। हम दोनों फिर से ऐसा काम नहीं करेंगे।

दोनों के बात सुनकर माता शीतला को उन पर तरस आ गया और उन्होंने दोनों बच्चों को जिंदा कर दिया। इसके बाद दोनों बहुएं अपने बेटों को लेकर घर लौट आई। और उन्होंने बताया कि उन्हें शीतला माता के दर्शन हुए थे। दोनों का धूमधाम से स्वागत करके गांव में प्रवेश करवाया। बहुओं ने कहा हम गांव में शीतला माता के मंदिर का निर्माण करवाएंगे और चैत्र महीने में शीलता सप्तमी के दिन सिर्फ ठंडा खाना ही खाएंगे।