Sheetla Saptami date 2023: शीतला सप्‍तमी कब है, जानें इस दिन क्‍यों लगाया जाता है बासी खाने का भोग

शीतला सप्‍तमी चैत्र मास के कृष्‍ण पक्ष की सप्‍तमी को कहते हैं और इस दिन मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है और उनके सदैव स्‍वस्‍थ रहने की कामना की जाती है। इस बार यह तिथि 14 मार्च को है। यह व्रत होली के ठीक 7 दिन बाद रखा जाता है।

Sheetla Saptami date 2023
Sheetla Saptami date 2023
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शीतला सप्‍तमी होली के सात दिन बाद चैत्र मास के कृष्‍ण पक्ष की सप्‍तमी को होती है और शीतला अष्‍टमी को बासी खाने का भोग लगाकर शीतला माता की पूजा की जाती है। इस साल शीतला सप्‍तमी 14 मार्च को है। य‍ह व्रत माताएं प्रमुख रूप से बच्‍चों के बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य और उनकी दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं। आइए आपको बताते हैं इस व्रत का महत्‍व, पूजाविधि और शुभ मुहूर्त।
शीतला सप्‍तमी का महत्‍व
शीतला सप्‍तमी पर मां दुर्गा के स्‍वरूप शीतला माता की पूजा की जाती है। साथ ही उन्‍हें बासी और ठंडे खाने का भोग लगाया जाता है। इस व्रत को करने आरोग्‍य का वरदान मिलता है। माता शीतला आपके बच्‍चों की गंभीर बीमारियों से रक्षा करते हैं। बच्‍चों की हर बुरी नजर से रक्षा होती है। इस त्‍योहार को कई स्‍थानों पर बासौड़ा भी कहते हैं। माताएं इस दिन गुलगुले बनाती हैं और शीतला अष्‍टमी के दिन इन गुलगुलों को अपने बच्‍चों के ऊपर से उबारकर कुत्‍तों को खिला दिया जाता है। ऐसी मान्‍यता है कि ऐसा करने से बीमारियां बच्‍चों से दूर रहती हैं।

शीतला सप्‍तमी का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की शीतला सप्तमी 13 मार्च 2023 को रात 9 बजकर 27 मिनट से आरंभ होगी और इसका समापन 14 मार्च को रात 8 बजकर 22 मिनट पर होगा। इसलिए उदया तिथि की मान्‍यता के अनुसार इसका व्रत 14 मार्च को रखा जाएगा।

उत्‍तर भारत में कहा जाता है बासौड़ा
पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश और राजस्‍थान व मध्‍य प्रदेश के कुछ स्‍थानों पर इस त्‍योहार को बासौड़ा कहते हैं। जो कि बासी भोजन का भोग लगाने के कारण कहा जाता है। इस त्‍योहार को मनाने के लिए लोग सप्‍तमी की रात को बासी भोजन तैयार कर लेते हैं और अगले दिन देवी को भोग लगाने के बाद ही ग्रहण करते हैं। कहीं पर हलवा पूरी का भोग तैयार किया जाता है तो कुछ स्‍थानों पर गुलगुले बनाए जाते हैं। गन्‍ने के रस की बनी खीर का भोग भी लगाया जाता है। ये सभी व्‍यंजन सप्‍तमी की रात को तैयार कर लिए जाते हैं और इनका अष्‍टमी का भोग लगाया जाता है।
ऐसा है शीतला माता का स्‍वरूप
स्‍कंद पुराण में शीतला माता के स्‍वरूप का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार शीतला माता गधे की सवारी करती है और हाथों में कलश, झाड़ू, सूप धारण किए रहती हैं। ऐसी मान्‍यता है कि माता शीतला की पूजा करने से बच्‍चों को निरोग रहने का आशीर्वाद प्राप्‍त होता है। बच्‍चों की बुखार, खसरा, चेचक, आंखों के रोग से रक्षा होती है। मां को बासी खाने का भोग लगाया जाता है, इसके पीछे ऐसा संदेश दिया जाता है कि अब पूरे गर्मियों के मौसम में ताजा ही खाने का प्रयोग करना है।