एकनाथ शिंदे गुट की बग़ावत के बाद शिवसेना के अस्तित्व पर सवाल उठ रहे हैं. कई विश्लेषकों ने माना है कि शिवसेना अपने अब तक के सफ़र के सबसे मुश्किल दौर में है.
दरअसल, राजनीतिक तौर पर 52 साल पहले शिवसेना को पार्टी के तौर पर अपना पहला विधायक मिला था और यह विधायक भी एक हत्या के कारण चुनाव जीत पाए थे.
वैसे एक राजनीतिक संगठन के तौर पर शिवसेना का गठन, पहला विधायक चुने जाने से चार साल पहले जून, 1966 में हुआ था. तब शिवसेना को मुंबई में मराठी लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले एक संगठन के रूप में जाना जाता था.
स्थापना के महज दो साल के भीतर 1968 में शिवसेना ने मुंबई में अपना दमखम दिखाया. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन में 1968 के मुंबई नगर निगम चुनाव में शिवसेना के 42 पार्षद चुने थे. मुंबई नगर निगम चुनाव के बाद राज्य स्तर पर शिवसेना पर लोगों का ध्यान गया. लेकिन पार्टी को पहला विधायक मिलने में चार साल का वक्त लगा. राजनीतिक तौर पर यह कोई लंबा वक्त नहीं कहा जा सकता.
अक्टूबर, 1970 में शिवसेना के गठन के चार साल बीतने के बाद वामनराव महादिक शिवसेना के पहले विधायक बने. लेकिन ये कोई आम जीत नहीं थी. शिवसेना ने एक विधायक की हत्या के बाद हुए उपचुनाव में जीत दर्ज की थी और उस विधायक की हत्या का आरोप भी शिवसेना पर ही लगा था
कॉमरेड कृष्णा देसाई की हत्या और बाल ठाकरे पर आरोप
6 जून, 1970 की सुबह तत्कालीन बंबई के समाचार पत्रों की सुर्खियां चौंकाने वाली थी. दरअसल, इस दिन स्कूली परीक्षा के नतीजे आने की खबरें अखबारों की हेडलाइन बनने वाली थीं, लेकिन हेडलाइन थी ‘कॉमरेड कृष्णा देसाई की हत्या’.
रत्नागिरी के संगमेश्वर तालुका के फंगस से निकले कृष्णा देसाई वामपंथी आंदोलन में सक्रिय हो गए. उन्होंने क्रांतिकारी कम्युनिस्ट पार्टी नामक एक पार्टी भी बनाई. बाद में उन्हें 1967 के विधानसभा चुनाव में वे विधायक बने. विधायक बनने से पहले वह लगातार चार बार मुंबई नगर निगम में पार्षद चुने गए थे.
वो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख़बरें जो दिनभर सुर्खियां बनीं.
ड्रामा क्वीन
समाप्त
वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश अकोलकर ने अपनी किताब ‘जय महाराष्ट्र’ में कृष्णा देसाई के बारे में लिखा है, “वे आक्रामक शैली के राजनीतिक कार्यकर्ता थे. वे लालबाग इलाके में रहते थे और वहां ललित राइस मिल में रहते थे. वह यहां कार्यकर्ताओं से भी मिलते थे.”
“पांच जून की रात भी ऐसा ही एक रात थी. वह अगले दिन मज़दूरों के साथ ट्रिप पर जा रहे थे, वहीं से उनकी प्लानिंग शुरू हो गई. तभी वहां कुछ लोग आ गए और कृष्णा देसाई को बाहर बुलाया.”
“ललित राइस मिल के बाहर के इलाके में रोशनी चली गई थी. बिजली कटवायी गई थी. जब कृष्णा देसाई बाहर गए, तो अंधेरे में उन पर चुपके से हमला कर दिया गया.”
छह जून को कॉमरेड कृष्णा देसाई के अंतिम संस्कार में करीब दस हज़ार लोगों की भीड़ जुटी. उस वक्त सियासी गलियारे यह चर्चा थी कि इस हत्या के पीछे शिवसेना का ही हाथ है. अंतिम संस्कार में शामिल वक्ताओं में कॉमरेड यशंवत चव्हाण ने इस हत्याकांड के लिए वसंतराव नाइक और बाल ठाकरे को ज़िम्मेदार ठहराया था.
इसके अगले दिन ‘मराठा’ दैनिक ने आठ कॉलम का समाचार प्रकाशित कर शीर्षक दिया- ‘कामरेड कृष्णा के असली हत्यारे बाल ठाकरे और वसंतराव नाइक’. हालांकि बाल ठाकरे ने भी इस हत्या की निंदा की थी और उन्होंने हमेशा इस हत्याकांड में किसी तरह की संलिप्ता से इनकार किया था.
हालांकि, वामपंथी आंदोलन ने उन पर हत्या का आरोप लगाना जारी रखा. पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी (पीडब्ल्यूपी) के उद्धवराव पाटिल और दाजीबा पाटिल जैसे नेताओं ने भी इस हत्या में उनकी भूमिका जांच की मांग की. लेकिन बाल ठाकरे की कोई भूमिका सामने नहीं आयी.
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उपचुनाव में शिवसेना का उम्मीदवार
कामरेड कृष्णा देसाई परेल से विधायक थे. जून में उनकी हत्या हुई और 18 अक्टूबर 1970 को वहां उपचुनाव हुआ.
इस उपचुनाव में वाम दलों ने कॉमरेड कृष्णा देसाई की पत्नी सरोजिनी देसाई को उम्मीदवार बनाया. समाजवादी विचार से जुड़ी पार्टी और कांग्रेस (आर) ने सरोजिनी देसाई का समर्थन दिया और कुल 13 वामपंथी पार्टियों ने सरोजिनी देसाई का साथ दिया.
जबकि शिवसेना ने परेल से पार्षद वामनराव महादिक को शिवसेना ने उम्मीदवार बनाया. वामनराव महादिक बाल ठाकरे के विश्वासपात्र के तौर पर जाने जाते थे.
बालासाहेब ठाकरे ने 20 सितंबर, 1970 को परेल के कामगार मैदान में वामनराव महादिक के लिए एक चुनावी बैठक की और वामपंथियों की कड़ी आलोचना की. वामपंथियों को उन्होंने राष्ट्रवाद का विरोधी बताया.
सरोजिनी देसाई के चुनावी अभियान के लिए 29 सितंबर, 1970 को परेल के नरे पार्क में एक चुनावी रैली का आयोजन हुआ जिसमें श्रीपाद अमृत डांगे (कम्युनिस्ट पार्टी), बाबूराव सामंत (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी), सदानंद वर्दे (प्रजा समाजवादी पार्टी), टी. एस. कारखानिस (पीडब्ल्यूपी) और दत्ता देशमुख (लाल निशान) जैसे दिग्गजों ने सरोजनी देसाई को जिताने की अपील की.
कांग्रेस (एस) ने सरोजिनी देसाई का खुलकर समर्थन नहीं किया, लेकिन पार्टी के नेता मोहन धारिया ने परेल में एक रैली की थी. उन्होंने कहा था कि चाहे जो भी जीते, शिवसेना के उम्मीदवार को नहीं जीतना चाहिए. कम्युनिस्ट नेता ए. बी. बर्धन ने भी सरोजनी देसाई के लिए प्रचार किया था.
दूसरी ओर, शिवसेना उम्मीदवार वामनराव महादिक के लिए कुल 28 चुनावी रैलियां हुई. उसमें से 15 रैलियों में बाल ठाकरे ने खुद भाषण दिया.
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यह चुनाव वाम आंदोलन और शिवसेना दोनों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया था, क्योंकि इन दोनों के लिए इस चुनाव में जीत या हार से भविष्य की राह तय करने वाली थी.
चुनाव काफ़ी तनावपूर्ण रहा. वाम दलों को जहां जीत का भरोसा था लेकिन कॉमरेड कृष्णा देसाई की पत्नी सरोजिनी देसाई चुनाव हार गईं.
20 अक्टूबर 1970 की शाम को घोषित नतीजों में सरोजिनी देसाई को 29,913 वोट मिले, जबकि शिवसेना के वामनराव महादिक को 31,592 वोट मिले. वामनराव महादिक 1679 मतों के अंतर से जीते.
इस तरह से महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के पहले विधायक का प्रवेश हुआ था.
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शिवाजी पार्क में विजय रैली
वामनराव महादिक की जीत के अगले ही दिन बालासाहेब ठाकरे ने दादर के शिवाजी पार्क में एक सभा की थी.
इस बैठक में शिवसैनिकों ने वामपंथियों के ख़िलाफ़ नारेबाजी की. ‘जला दो, जला दो, लाल बाउटा जला दो’ और इस नारे का जवाब था ‘जल गया, जल गया, लाल बाउटा जल गया’.
बालासाहेब ने परेल उपचुनाव को ‘धार्मिक युद्ध’ बताया था.
बालासाहेब ने शिवाजी पार्क में जीत की रैली को संबोधित करते हुए कहा, “शिवसेना देश को धोखा देने वालों का सफ़ाया कर देगी. हम कम्युनिस्टों के ख़िलाफ़ ताक़त का इस्तेमाल करेंगे क्योंकि वे लोकतंत्र की भाषा नहीं समझते हैं. जनसंघ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और स्वतंत्र पार्टी ने हमारा समर्थन किया, उनका धन्यवाद.”
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वामनराव महादिक कौन थे?
वामपंथियों के गढ़ को तोड़कर विधान सभा में प्रवेश करने वाले शिवसेना के पहले विधायक वामनराव महादिक का सफ़र भी आम शिवसैनिकों की तरह ही था, वे एक ऐसे नेता थे जिनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी.
मुंबई नगर निगम में क्लर्क के रूप में काम करने वाले वामनराव महादिक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रभावित थे. हालांकि, परेल में बालासाहेब ठाकरे की एक बैठक के बाद उन्होंने शिवसेना के लिए काम करना शुरू कर दिया था.
15 जुलाई 1925 को सिंधुदुर्ग के कंकउली के तलेरे गांव में जन्में वामनराव महादिक पढ़ाई करने के लिए मुंबई आए थे. हालांकि मुंबई नगर निगम में काम करते हुए उन्होंने ट्रेड यूनियनों से जुड़ गए.
शिवसेना में शामिल होने के बाद वे राजनीति में सक्रिय हो गए. वह 16 साल तक मुंबई नगर निगम में नगरसेवक रहे. 1978 में वे मुंबई के मेयर बने.
इससे पहले परेल उपचुनाव में विधायक के रूप में चुने गए और बाद में 1980-86 में विधान परिषद के सदस्य बने.
वामनराव महादिक 1989 में दक्षिण-मध्य मुंबई से सांसद के रूप में नौवीं लोकसभा के सदस्य बने थे. उन्होंने केंद्र की कई समितियों में काम किया. 1991 में उन्होंने राजापुर से लोकसभा चुनाव लड़ा. लेकिन वे हार गए. बाद में वे सक्रिय राजनीति से दूर हो गए. वह अंत तक शिवसेना के साथ रहे. वामनराव महादिक का निधन 12 अक्टूबर 1999 को मुंबई में हुआ था.
(इस आलेख को लिखने में जय महाराष्ट्र – प्रकाश अकोलकर (मनोविकास प्रकाशन), बाल ठाकरे एंड राइज़ ऑफ़ शिवसेना – वैभव पुरंदरे (हार्पर कॉलिन्स), सम्राट: हाउ शिवसेना चेंज्ड मुंबई फॉरइवर – सुजाता आनंदन (रोली बुक्स) और लोकसभा वेबसाइट की जानकारी से संदर्भ लिए गए हैं.)