Shivapuri Baba Story: अद्भुत संत थे शिवपुरी बाबा। वह जीवन पर्यंत यात्रा करते रहे और ज्ञान बटोरते रहे। उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी कि वह जीवन के रहस्यों को बहुत सरल और कम शब्दों में जनता के सामने रखते थे। उनके प्रसंशकों में महारानी विक्टोरिया से लेकर महान लेखक लियो टॉल्स्टाय तक शामिल थे।
शिवपुरी बाबा का जन्म केरल में सन 1826 में हुआ था। उनका नाम जयंतन नंबूदरीपाद रखा गया। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया और उन्हें उनके दादा अच्युतम ने पाला। उनके दादा राज ज्योतिषी और संत प्रवृत्ति के थे। साल 1844 में जयंतन अपनी जुड़वा बहन के नाम अपनी संपत्ति करके दादा के साथ तपस्या करने के लिए जंगलों में चले गए।
उनके दादा अच्युतम ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में अनंतन को आज्ञा दी कि वह भारत ही नहीं दुनिया भर के पवित्र धर्म स्थलों की पैदल यात्रा करें। अपने दादा का अंतिम संस्कार करने के बाद जयंतन ने संन्यास ले लिया। उन्हें नया नाम मिला गोविंदानंद भारती।
25 वर्षों तक कड़ी तपस्या के बाद वह पैदल ही विश्व भ्रमण पर निकले। उनकी यात्रा साल 1875 में शुरू हुई। वह अफगानिस्तान होते हुए ईरान पहुंचे। यहां उनकी भेंट एक सूफी संत से हुई। इन्हीं की मदद से गोविंदानंद भारती मक्का पहुंचे और काबा के दर्शन किए। इसके बाद वह ईसाइयों के धर्म स्थल यरुशलम साल 1890 में पहुंचे।
साल 1896 में उन्हें ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के भारतीय सलाहकार मुंशी अब्दुल करीम की ओर से आमंत्रण मिला। गोविंदानंद ब्रिटेन की महारानी से करीब 18 बार अलग-अलग मौकों पर मिले। बाबा के ज्ञान और धर्म को लेकर उनकी सर्वग्राह्य सोच से क्वीन विक्टोरिया इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने भारतीयों की आध्यात्मिक परंपरा के बारे में और जानने की इच्छा जताई।
वह बाबा से इतना प्रभावित थीं कि उनसे आग्रह किया कि जब तक मैं जिंदा हूं तब तक आप इंग्लैंड में ही बने रहें। इस दौरान बाबा की मुलाकात विंस्टन चर्चिल, जॉर्ज बर्नार्ड शॉ से हुई।
1901 में रानी की मौत के बाद बाबा रूस पहुंचे यहां उनकी मुलाकात रूसी लेखक और दार्शनिक लियो टॉलस्टाय से हुई। कहा जाता है कि टॉल्सटाय बाबा की सोच से बहुत प्रभावित हुए। दुनिया को देखने के बाबा के नजरिए का प्रभाव टॉल्स्टाय की रचनाओं में देखा जाता है। इसी दौरान वह अमेरिका भी गए। वहां उनकी मुलाकात अमेरिकी राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट से हुई। वह मेक्सिको, एंडीज पर्वत, कोलंबिया और पेरु तक गए।
इसके बाद साल 1913 में वह दक्षिण अमेरिका से पानी के जहाज के जरिए ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड होते हुए जापान पहुंचे। जापान से चीन और नेपाल के रास्ते बाबा भारत आए। यहां वह कुछ समय के लिए बनारस में मदन मोहन मालवीय जी के मेहमान बने। बताया जाता है कि उस समय मालवीय जी बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के लिए चंदा जुटा रहे थे। बाबा ने उसमें भी कुछ योगदान दिया था।
इसके बाद बाबा अपने पैतृक गांव पहुंचे। उन्हें अपना घर छोड़े 80 साल हो चुके थे। इस दौरान बहुत कुछ बदल गया था। उनकी बहन की मृत्यु हो चुकी थी। इसके बाद बाबा वापस नेपाल पहुंचे और फिर मृत्यु होने तक नेपाल के शिवपुरी नामक स्थल पर ही रहे। इसी वजह से उन्हें नाम मिला शिवपुरी बाबा।
उन्होंने 28 जनवरी 1963 को 137 साल की उम्र में अपनी देह त्याग दी। कहा जाता है कि अंतिम पलों में उन्होंने मानवता को संदेश दिया, ‘सही जीवन जियो, ईश्वर की पूजा करो। इसके अलावा और कुछ नहीं है।’ इसके बाद उन्होंने उठकर एक गिलास पानी पिया, दाहिनी करवट लेटकर बोले, ‘गया’ और अपनी देह छोड़ दी।