हाईकोर्ट से BJP सरकार को झटकाः शिमला एमसी चुनाव का रोस्टर और डिलिमिटेशन रद्द

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में नगर निगम चुनाव को लेकर भाजपा सरकार बड़ा झटका लगा है. हिमाचल हाईकोर्ट ने चुनाव से पहले सरकार की ओर से जो डिलीमिटेशन और आरक्षण रोस्टर जारी किया था, उसे रद्द कर दिया है.

शिमला के नाभा वार्ड से कांग्रेस पार्षद सिमी नंदा ने डिलीमिटेशन और आरक्षण रोस्टर को हिमाचल हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और इस पर अब हाईकोर्ट ने अपना फैसला दिया है. हाईकोर्ट ने सिमी नंदा ने याचिका दाखिल कर आरोप लगाया था कि डिलीमिटेशन और रोस्टर गलत तरीके से बनाया गया है और उनके आरोपों को अब हाईकोर्ट ने सही पाया है.

दरअसल, हाल ही में जयराम सरकार ने शिमला नगर निगम में सात नए वार्ड बनाए थे और शिमला एमसी में वार्डों की संख्या 34 से बढ़कर 41 हो गई थी. सिमी नंदा ने याचिका में आरोप लगाया कि डिलीमिटेशन के लिए सही प्रोसेस नहीं अपनाया गया. 13 मई को अदालत में मामले की सुनवाई के बाद फैसला रिजर्व रखा गया था. अब शुक्रवार को कोर्ट ने फैसला सुनाया है.

हाईकोर्ट के फैसले के चलते अब शिमला नगर निगम में सारी प्रक्रिया दोबारा होगी. यदि सरकार नए वार्डों का गठन करना चाहेगी तो दोबारा डिलिमिटेशन होगी. यानी अब तय है कि शिमला में नगर निगम के चुनाव तय समय पर नहीं होगें. बता दें कि मौजूदा पार्षदों का 5 साल का कार्यकाल 18 जून को पूरा होगा. अब कोर्ट के आदेश आने के बाद चुनाव लंबे समय तक लटकने की संभावनाएं बढ़ गई हैं.

क्योंकि दोबारा से डिलिमिटेशन के लिए एक महीने का वक्त लगेगा. साथ ही वोट बनाने के लिए भी एक माह और चुनाव प्रोसेस के लिए कम से कम 15 दिन का वक्त लगेगा.

ऐसे में इसी साल अक्तूबर-नवम्बर में विधानसभा चुनाव भी होने है और कयास लगाए जा रहे है कि शिमला नगर निगम के चुनाव विधानसभा के साथ करवाए जा सकते हैं.वहीं, चुनाव समय पर नहीं होने पर शिमला में एडमिस्ट्रेटर शासन का लगना तय है.

विक्रमादित्य ने किया हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत
शिमला ग्रामीण से कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह ने शिमला नगर निगम के डिलिमिटेशन और आरक्षण-रोस्टर को रद्द करने के फैसले का स्वागत किया है औ कहा कि यह नया प्रचलन नहीं है. इससे पहले भी जहॉं-जहां नगर पंचायत, नगर परिषद और नगर निगम के चुनाव हुए हैं, वहां भाजपा सरकार ने सत्ता का दुरुपयोग किया है.

इस दौरान विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि डिलिमिटेशन के पीछे स्थानीय विधायक और मंत्री सुरेश भारद्वाज का हाथ रहा था और डीसी ने भी अपने आकाओं को खुश करने के लिए यह कदम उठाया. दूसरे इलाकों में भी सरकार ने लोकतांत्रिक प्रणाली का गला घोंटा है.