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श्रीराम लागू किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने अपने सपोर्टिंग रोल्स से फिल्मों में अलग ही मुकाम हासिल किया। श्रीराम लागू पेशे से डॉक्टर थे। कहा जाता है कि वह देश-विदेश तक में डॉक्टरी की सेवाएं दे चुके थे। मीडिया रिपोर्ट्स की मुताबिक, श्रीराम लागू ने पुणे और तंजानिया में काफी समय तक मेडिकल प्रैक्टिस की थी, लेकिन 42 साल की उम्र में उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया और फिल्मों को ही अपना फुल टाइम प्रोफेशन बना लिया। आइए आपको बताते हैं कि श्रीराम लागू ने कैसे अपना प्रोफेशन बदलकर फिल्मों का रुख किया था।
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श्रीराम लागू नाक, कान और गले के बेहतरीन सर्जन थे। उन्हें बचपन से ही फिल्मों का बेहद शौक था। शायद यही वजह थी कि उन्होंने अपना प्रोफेशन बदलकर फिल्मों का रुख किया। श्रीराम लागू न सिर्फ हिंदी फिल्मों में जाना-माना नाम थे, बल्कि मराठी सिनेमा में भी उन्होंने बहुत नाम कमाया था। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो श्रीराम लागू ने 20 से ज्यादा मराठी नाटकों को डायरेक्ट भी किया और वह जाने-माने डायरेक्टर्स में शुमार थे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत ‘आहट: एक अजीब कहानी’ से की थी। यह फिल्म साल 1971 में आई थी।
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श्रीराम लागू को ‘नटसम्राट’ नाटक के लिए भी याद किया जाता है। इस नाटक में श्रीराम लागू ने गणपत बेलवलकर की भूमिका निभाई थी। गणपत बेलवलकर की भूमिका मराठी थिएटर के लिए मील का पत्थर मानी जाती है। गणपत बेलवलकर का किरदार इतना कठिन होता था कि इसे निभाने वाले कलाकार अक्सर बीमार पड़ जाते थे। श्रीराम लागू के साथ भी ऐसा ही हुआ था। नटसम्राट में गणपत बेलवलकर का किरदार निभाने के बाद उन्हें दिल का दौरा पड़ गया था।