कई कहानियां दिल को छू लेने वाली होती हैं. श्वेता अग्रवाल की कहानी कुछ ऐसी ही है. किराने की दुकान पर काम करने वाली की यह बेटी आज जिस मुकाम पर है, वो सिविल सर्विस की तैयारी करने वाले युवाओं के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है. 2016 के यूपीएससी एग्जाम में 19वीं रैंक हासिल करके श्वेता ने साबित कर दिया कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती. बाधाओं को पार कर आज श्वेता IAS अफसर हैं.
पिता किराने की दुकान में करते थे काम
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श्वेता का जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली में एक मारवाड़ी परिवार में हुआ था. पिता घर चलाने के लिए किराने की दुकान में काम करते थे. आर्थिक रूप से उनकी स्थिति ऐसी नहीं थी कि वो श्वेता को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ा सकें. बावजूद इसके श्वेता के पिता ने अपनी बेटी को स्कूल भेजा और पढ़ाई में कोई कमी नहीं होने दी.
श्वेता भी पिता की उम्मीदों पर खरी उतरीं. स्कूल से लेकर कॉलेज तक उन्होंने अपनी पढ़ाई से सबको प्रभावित किया. आम तौर पर स्टूडेंट्स जल्दी तय नहीं कर पाते कि उन्हें जिंदगी में आगे क्या करना है, मगर श्वेता को अपना लक्ष्य एकदम क्लियर था. वो किसी भी कीमत पर आईएएस बनना चाहती थीं.
2016 में 19वीं रैंक के साथ IAS बनी श्वेता
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तैयारी के बाद साल 2013 में वो पहली बार यूपीएससी की परीक्षा में बैठी और 497वीं रैंक लेकर आईं. यह रैंक श्वेता के मन मुताबिक नहीं थी. इस कारण उन्होंने तय किया कि वो एक बार फिर से कोशिश करेंगी. दुर्भाग्यवश वो अपने प्रयास में प्रीलिम्स भी क्वॉलिफाई नहीं कर पाईं थी. हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी और तैयारी में लगी रहीं.
2015 में वो दूसरी बार परीक्षा में बैठीं और 141वीं रैंक लेकर आईं, लेकिन इस बार भी उन्हें आईएएस सर्विस नहीं मिली. अंतत: 2016 के यूपीएससी एग्जाम में 19वीं रैंक हासिल करके श्वेता ने साबित कर दिया कि मेहनत करने वालों की हार नहीं होती. आज श्वेता देश की जानी-मानी IAS अधिकारी हैं