Sita Ashtami 2023: देवी सीता की सही जन्मतिथि जानिए, महत्व, पूजा विधि और आरती

Sita Ashtami 2023: फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि को माता सीता का प्राकट्य हुआ था, हालांकि कुछ जगहों पर वैशाख मास की नवमी तिथि को जानकी नवमी के दिन माता सीता की सही जन्म तिथि मानते हैं। आइए जानते हैं सीता अष्टमी का महत्व, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और आरती…

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माता सीता पृथ्वी पर प्रकट हुई थीं। इस बार यह शुभ तिथि 14 फरवरी मंगलवार के दिन है। इस तिथि को जानकी जंयती या सीता अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। वहीं कई जगहों पर वैशाख मास की नवमी तिथि को देवी सीता की जन्मतिथि मानते हैं, जिसे जानकी नवमी या सीता नवमी के नाम से जाना जाता है। माता सीता के कारण ही भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम बने थे। माता सीता मिथिला के राजा जनक की पुत्री थीं इसलिए उनको जानकी भी कहा जाता है। इसलिए रामायण में माता सीता को जानकी कहकर संबोधित किया गया है। आइए जानते हैं सीता अष्टमी का महत्व, पूजा विधि और मुहूर्त….

सीता अष्टमी का महत्व (Sita Ashtami 2023 Importance)
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गुरु वशिष्ठजी के कहने पर भगवान राम ने समुद्र तट की तपोमय भूमि पर बैठकर यह व्रत किया था। यह व्रत अभीष्ट सिद्धि के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से माता सीता के साथ भगवान राम का आशीर्वाद मिलता है और सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। माता सीता को माता लक्ष्मी का अवतार माना गया है, जिनका विवाह विष्णु अवतार भगवान राम से हुआ था। सीता जयंती पर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मी स्वरूपा देवी सीता की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

सीता अष्टमी शुभ मुहूर्त (Sita Ashtami 2023 Shubh Muhurat)
सीता अष्टमी 14 फरवरी 2023 दिन मंगलवार

सीता अष्टमी का प्रारंभ – 13 फरवरी, 8 बजकर 15 मिनट से शुरू
सीता अष्टमी का समापन – 14 फरवरी, सुबह 7 बजकर 40 मिनट
उदाय तिथि को मानते हुए सीता जंयती का व्रत 14 फरवरी दिन मंगलवार को किया जाएगा।

सीता अष्टमी पूजा विधि (Sita Ashtami 2023 Puja Vidhi)
सीता अष्टमी के व्रत में माता सीता के साथ भगवान राम की भी पूजा की जाती है और उनका ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प किया जाता है। पूजा से भगवान गणेश और माता दुर्गा की पूजा करें। इसके बाद लाल चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर माता सीता के साथ भगवान राम की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद माता सीता को सिंदूर, अक्षत, फूल, फल आदि समेत सुहाग का सामान अर्पित किया जाता है। माता सीता का लाल या पीले रंग की चीजें अर्पित की जाती हैं। इसके बाद माता देवी सीता की आरती उतारें। फिर इस मंत्र ‘ॐ जनकनंदिन्यै विद्महे, भुमिजायै धीमहि, तन्नो सीता: प्रचोदयात्’ का 108 बार जप करें। सीता जंयती की पूजा में सर्व धान्य (जौ-चावल आदि) समेत हवन किया जाता है और खीर, पुए और गुड़ से बने पारंपरिक व्यंजनों का नैवेघ अर्पण किया जाता है। माता सीता की पूजा करने के बाद सुहाग के सामान को किसी सुहागिन महिला को दान में दे दें। फिर शाम के समय पूजा करने के बाद माता सीता को चढ़ाए गई चीजों से व्रत खोलें।

माता सीता की आरती (Sita Mata Aarti)
आरती श्रीजनक-दुलारी की। सीताजी रघुबर-प्यारी की।।
जगत-जननी जगकी विस्तारिणि, नित्य सत्य साकेत विहारिणि।
परम दयामयी दीनोद्धारिणि, मैया भक्तन-हितकारी की।।
आरती श्रीजनक-दुलारी की।
सतीशिरोमणि पति-हित-कारिणि, पति-सेवा-हित-वन-वन-चारिणि।
पति-हित पति-वियोग-स्वीकारिणि, त्याग-धर्म-मूरति-धारी की।।
आरती श्रीजनक-दुलारी की।।
विमल-कीर्ति सब लोकन छाई, नाम लेत पावन मति आई।
सुमिरत कटत कष्ट दुखदायी, शरणागत-जन-भय-हारी की।।
आरती श्रीजनक-दुलारी की। सीताजी रघुबर-प्यारी की।।