तो यूं चुपचाप जनता में स्थापित हो गए जयराम

शिमला : पांच साल पहले धूमल के हारने के बाद अचानक मुख्यमंत्री बने जयराम ठाकुर को नया-नया मुख्यमंत्री कहकर पक्ष-विपक्ष ने गंभीरता से नहीं लिया था, लेकिन पांच साल के कार्यकाल में जयराम ठाकुर ने अपनी लो-प्रोफाइल में ही रहते हुए प्रदेश के लगभग हर वर्ग को उनकी मांगों के अनुसार सरकार से सहयोग देते हुए अपनी पैठ बना ही ली। पांच साल बाद जयराम नए-नए नहीं बल्कि अनुभवी और सफल मुख्यमंत्री के तौर पर स्थापित हो चुके हैं। सरकार बनते हुए जयराम ठाकुर ने बुजुर्गों को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन की आयु 80 से घटाकर 70 और फिर हाल ही में 60 साल कर दी। साथ ही मिलने वाली पेंशन की राशि भी बढ़ाकर 1500 रुपए कर दी गई। शुरू में इस योजना का कोई खास फायदा किसी को नजर नहीं आया, लेकिन चुनावी समय आते-आते इस योजना से लाभ लेने वाले लोग खुलकर जयराम ठाकुर को आशीर्वाद देने लगे हैं।
अपने कार्यकाल के दौरान जयराम ठाकुर के पास जितने भी वर्ग अपनी मांगों को लेकर गए, जयराम ने लगभग सभी को संतुष्ट किया। मामला चाहे सवर्ण आयोग को बनाने का हो या फिर पुलिस पे बैंड के पुलिस कर्मियों का आंदोलन। कॉलेज प्रोफसरों सहित अलग-अलग वर्गों को छठे वेतन आयोग के लाभ देने का मामला हो या फिर केंद्रीय आयुष्मान योजना से छूट रहे लोगों को हिमकेयर के माध्यम से लाभ देने का। मुख्यमंत्री ने सहजता से फैसला कर आंदोलनरत और मांग कर रहे हिमाचलियों को संतुष्ट किया।
महिलाओं को बसों में 50 प्रतिशत किराए का फैसला भी लोकप्रिय साबित हुआ। जयराम ठाकुर की सफलता की किताब में हाटी को जनजाति दर्जा दिलाना भी एक स्वर्णिम अध्याय की तरह जुड़ गया क्योंकि यह वर्ग पिछले 50 सालों से अपनी मांग के लिए संघर्ष कर रहा था। बिलासपुर में एम्स निर्माण सहित मेडिकल कॉलेजों और डिग्री कालेजों को हर मांग वाली जगह पर खोल कर जयराम ने जनता को उपहार दिया। अब धर्मशाला में हाईकोर्ट की बेंच, आउटसोर्स कर्मियों के लिए नीति और फोरलेन के मुआवजे की मांग को सुलझाने के लिए भी चंद दिनों में महत्वपूर्ण फैसले हो सकते हैं।
पांच साल के कार्यकाल में निष्कलंक राज चलाने वाले जयराम ठाकुर ने अपने ऊपर आने वाले हर आरोप से खुद को अलग किया और किसी भी विवाद के साथ नहीं जुड़े। कोरोना काल में भी जब भ्रष्टाचार को लेकर उनकी सरकार को घेरने की कोशिश हुई तो वे कड़े फैसले लेने से झिझके नहीं और और विवादों से खुद को पाक-साफ निकाल लिया। मंत्रियों के आपसी द्वंद्व और बेलगाम अफसरशाही को भी जयराम ठाकुर ने अपनी पकड़ में मजबूती से रखा, जिसके कारण पांच साल तक कोई भी चुनौती जयराम के लिए असाध्य नहीं रही। मुख्यमंत्री हेल्पलाइन के रूप में शुरू किया कॉल सेंटर भी लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं को सुलझाने में अभिनव प्रयास साबित हुआ। हालांकि जनमंच के माध्यम से सरकार के मंत्री जनता से वो जुड़ाव नहीं कर सके, जिसकी उम्मीद से जयराम ठाकुर ने यह कार्यक्रम शुरू किया था।
यानी जयराम नए मुख्यमंत्री नहीं रहे और अब प्रदेश की राजनीति, जनता और भाजपा में उनका एक अलग स्थान बन चुका है। भाजपा में बड़ी सहजता से पीढ़ी परिवर्तन हो गया और वे सहजता से इसका नेतृत्व करने में सक्षम हुए। हालांकि कांग्रेस को यही काम करने में कड़ी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है। विधानसभा चुनावों के नतीजे चाहे कुछ भी हो, लेकिन ये पांच साल जयराम ठाकुर के सफल और निविर्वाद कार्यकाल के रूप में दर्ज हो गए।