लखनऊ: राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) ने भले ही ऐलान कर दिया हो कि उनकी पार्टी के सभी विधायक एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देंगे, मगर हकीकत में ऐसा ही होगा, यह कहना थोड़ा मुश्किल लग रहा है. ओम प्रकाश राजभर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस से ऐलान किया है कि सुभासपा के 6 विधायक द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन देंगे, मगर उनके इस दावे पर संशय के बादल मंडराने लगे हैं. इसकी वजह है कि ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के 6 विधायकों में से 3 तो समाजवादी पार्टी के ही नेता हैं.
दरअसल, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान एडजस्टमेंट के फॉर्मूले पर समाजवादी पार्टी के कुछ नेताओं को सुभासपा के टिकट पर चुनाव लड़ाया गया था. उस चुनाव के दौरान जीत दर्ज करने वाले 6 विधायकों में 3 सपा के खाते से सुभासपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे. इस तरह से कहने को तो भले ही ये सभी ओपी राजभर की पार्टी के ही विधायक कहे जाएंगे, मगर सपा के खाते से सुभासपा के विधायक बने ये तीन नेता राजभर की बात मानेंगे, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
200 साल से भी अधिक पुराना है बांसुरी कारोबार
वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ अग्निहोत्री बताते हैं कि पीलीभीत में बांसुरी कारीगरों को सूफी संत सुभान शाह मियां ने बसाया था. इसके बाद से धीरे-धीरे बांसुरी उद्योग ने शहर में फलना-फूलना शुरू कर दिया था.एक समय में बांसुरी का लगभग 80 प्रतिशत निर्यात पीलीभीत पर निर्भर था,लेकिन समय बीतने के साथ कई समस्याएं बढ़ीं और लोग इस कारोबार से अपने हाथ खींचने लगे.
दुनिया की सबसे लंबी बांसुरी पीलीभीत में बनी
पीलीभीत के नाम पर बांसुरी से जुड़ा एक विश्व रिकॉर्ड भी शामिल है. यहां के कारीगरों ने 16.6 फीट की बांसुरी बना कर यह खिताब पीलीभीत के नाम किया था. बीते साल दिसम्बर में हुए बांसुरी महोत्सव के दौरान कारीगर रईस अहमद ने यह बांसुरी बनाई थी. इस बांसुरी की सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह बजाने योग्य है. रिकॉर्ड अटेम्पट करने के दौरान मशहूर बांसुरी वादक पं. राकेश चौरसिया ने इस बांसुरी को अपने सुरों से नवाजा था.
पीलीभीत के नाम 16.6 फीट की बांसुरी बनाने विश्व रिकॉर्ड दर्ज है.
3 इंच की बांसुरी भी पीलीभीत में
पुश्तैनी बांसुरी निर्माता फर्म नबी एंड संस के इकरार नबी ने बताया कि उन्होंने 3 इंच की बांसुरी बनाई है. यह बांसुरी भी बजाने योग्य है.नबी का दावा है कि उन्होनें विश्व रिकॉर्ड से भी बड़ी बांसुरी बनाई है,लेकिन कुछ व्यक्तिगत कारणों के चलते उन्होंने अभी तक रिकॉर्ड अटेम्पट नहीं किया है.
इस बांस से बनती है बांसुरी
पीलीभीत में बांसुरी बनाने के लिए जो बांस इस्तेमाल किया जाता है उसे निब्बा बांस कहते हैं. यह बांस असम के सिलचर से पीलीभीत मंगाया जाता है. इसके बाद यहां के कारीगर उस पर मेहनत कर उसे बांसुरी का रूप देते हैं.
बांसुरी कारोबार 200 साल से भी अधिक पुराना है.
चार कारीगरों के हाथों से तैयार होती है
बांस से बांसुरी तक के सफर में बांसुरी को चार कारीगरों के हाथों से गुजरना पड़ता है. सबसे पहले लंबे बांस को बांसुरी के साइज के हिसाब से काटा जाता है. कटाई के बाद बांस की छिलाई की जाती है. इसके बाद बांसुरी में सुरों के लिए गर्म सलाखों से छेंद किए जाते हैं. सबसे आखिरी में बांसुरी में ऊपरी सिरे पर डॉट लगाकर अलग-अलग रंगों से रंगा जाता है, तब जाकर एक बांस बजाने योग्य बांसुरी बन पाती है.
तीन तरह की होती है बांसुरी
बांसुरी निर्माता जावेद ने बताया कि बांसुरी मुख्य तौर पर तीन तरीके की होती है. सबसे पहले होती है बंसी जिसे भगवान श्री कृष्ण बजाया करते थे. उसके बाद आती है मुरली. बताया जाता है कि मुरली को श्रीकष्ण के साथी उनके साथ बजाते थे. सबसे आखिर में आती है साधारण बांसुरी. इसे आमतौर पर बच्चे या कला को सीख रहे लोग बजाते हैं. इन तीनों में मुख्य फर्क इतना सा है कि साधारण बांसुरी को ऊपरी सिरे से बजाया जाता है. वहीं, बंसी व मुरली को साइड से बजाया जाता है. हालांकि आज के समय पर कारीगर ऑर्डर मिलने पर स्टील, तांबा आदि की बांसुरी भी बनाते हैं.
5 रुपये से शुरु होकर हजारों तक है कीमत
अपना पुश्तैनी बांसुरी कारोबार चलाने वाले नावेद नबी बताते हैं कि बांसुरी की कोई तय कीमत नहीं है. जितना अधिक समय और माल लगता है उतनी ही कीमत बढ़ जाती है.उन्होंने बताया कि बच्चों के खिलौने के तौर पर बेची जाने वाली बांसुरी 5 रुपए में भी मिल जाती है. वहीं उन्होंने सबसे मंहगी बांसुरी 15000 रुपए की बेची है.अगर कोई ऑर्डर में विशेष मांग करता है तो यह कीमत बढ़ भी सकती है.
धीरे-धीरे सिमट रहा है कारोबार
भले ही सरकार ने बांसुरी को ओडीओपी के तहत दर्ज कर दिया हो, लेकिन बांसुरी उद्योग अब धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. कारोबारियों के अनुसार सबसे पहले कच्चा माल यानी बांस नेपाल से मंगाया जाता था. वहां की सरकार के रोक लगाने के बाद इसे मीटरगेज से गुवाहटी एक्सप्रेस के जरिए सिलचर से मंगाया जाने लगा, लेकिन सिलचर से सीधी कनेक्टिविटी टूटने के बाद से माल की लागत लगभग 10 गुना तक बढ़ गई है. साथ ही लाने जाने में माल का नुकसान भी होता है. मार्केटिंग के अभाव में उन्हें मिलने वाला लाभ भी अब कम होता जा रहा है, इसीलिए अब लोग अपने कारोबार बदल रहे हैं और पुश्तैनी काम पीछे छूटता जा रहा है.