देशभर में तैयार होने वाली ढींगरी मशरूम अब सेब के गूदे से भी तैयार की जा सकेगी। सेब के अवशेष और भूसे से कल्टीवेशन के बाद तैयार मशरूम की क्वालिटी और वैरायटी पहले से बेहतर होगी। इससे गेहूं पर तैयार की गई ढींगरी मशरूम से उपज भी दो गुना अधिक होगी। मशरूम के लिए भूसे की कमी भी दूर होगी। इसका नौणी विवि के विशेषज्ञों ने सफल प्रशिक्षण कर लिया है।
ढींगरी मशरूम में प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स और फाइबर्स होते हैं। यह दिल की बीमारियों के अलावा मोटापा कम करने और डायबिटीज के रोगियों के लिए लाभदायक है। ढींगरी मशरूम हिमाचल समेत देशभर में तैयार की जा रही है। हिमाचल में हरियाणा, पंजाब से गेहूं से भूसा लाया जाता है, लेकिन हिमाचल के किसानों के लिए यह महंगा पड़ता है। अब सेब से जूस निकालने के बाद इसके अवशेष मशरूम उगाने के काम आएंगे। वर्तमान में सेब के अवशेष किसी काम में नहीं आते हैं। सेब प्रोसेसिंग यूनिट के बाहर, सड़कों के किनारे खुले में फेंका जाता है। अब इससे मशरूम बनाने का काम लिया जाएगा।
सेब के गूदे (पोमेस) का सही इस्तेमाल करने के दिशा में कार्य करते नौणी विवि के बेसिक साइंस विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. निवेदिता शर्मा और पादप रोग विज्ञान विभाग के डॉ. धर्मेश गुप्ता ने मिलकर पोमेस को ढींगरी मशरूम उत्पादन के लिए इस्तेमाल कर उस पर शोध कार्य किया। सेब पर ढींगरी उगाने के लिए पिछले दो वर्षो से अनुसंधान किया गया। विभाग के अनुसंधान में पोषण गुणवत्ता और ओएस्टर मशरूम की प्रति यूनिट उपज के बहुत अच्छे नतीजे आए हैं। 1.5 से 2 गुना ज्यादा उत्पादन हुआ है।