उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि हमें इस बात को ध्यान में रखने की आवश्यकता है कि लोकतांत्रिक शासन में किसी भी बुनियादी ढांचे की बुनियाद संसद में होने वाले जनादेश की प्रमुखता को कायम रखना है। उन्होंने कहा कि यह चिंताजनक बात है कि इस बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर जो लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए है, संसद का ध्यान केंद्रित नहीं है।
नई दिल्ली: राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने संसद में पारित राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (NJAC) कानून को सुप्रीम कोर्ट की ओर से खारिज किए जाने पर गहरी चिंता जतायी। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यह संसदीय संप्रभुता से गंभीर समझौता और उस जनादेश का असम्मान है जिसके संरक्षक उच्च सदन एवं लोकसभा हैं। धनखड़ ने सभापति के रूप में राज्य सभा की कार्यवाही का संचालन करते हुए अपने पहले संबोधन में बुधवार एनजेएसी के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसी कोई मिसाल नहीं मिलती जहां नियमबद्ध ढंग से किये गये संवैधानिक उपाय को इस प्रकार न्यायिक ढंग से निष्प्रभावी कर दिया गया हो।
संसद के दोनों सदनों ने 2014 के अगस्त माह में एनजीएसी के प्रावधान वाला 99वां संविधान संशोधन सर्वसम्मति से पारित किया था। बाद में उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर 2015 में इस कानून को संविधान के बुनियादी ढांचे के अनुरूप नहीं बताते हुए इसे एक के मुकाबले चार के बहुमत फैसले से खारिज कर दिया था।
धनखड़ ने कहा लोकसभा के साथ यह सदन , लोगों का संरक्षक होने के कारण मुद्दे पर ध्यान देने के लिए दायित्व से बंधा हुआ है और मैं निश्चित ही इसे करूंगा। उन्होंने यह भी कहा कि उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को अपने आचरण में गरिमा एवं शुचिता के उच्च मानकों को कायम करना चाहिए। उन्होंने सदस्यों से लक्ष्मण रेखा का सम्मान करने वाला माहौल तैयार करने के लिए काम करने का आह्वान किया।
इससे पहले उपसभापति हरिवंश , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , सदन के नेता पीयूष गोयल , नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और विभिन्न दलों के नेताओं ने धनखड़ का स्वागत करते हुए पहली बार सदन की कार्यवाही का संचालन करने के लिए बधाई दी। शीतकाल सत्र के पहले दिन धनखड़ के संसद भवन परिसर पहुंचने पर राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल, संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी, संसदीय कार्य राज्य मंत्रियों अर्जुन राम मेघवाल और वी मुरलीधरन ने उनका स्वागत किया।