शख्स की बनाई खास गोबर की चप्पलें वायरल हो गई, तो पूरे देश से ऑर्डर्स मिलने लगे

Raipur, Chandigarh: भारत देश में गौ को माता का दर्जा दिया है। ऐसा माना गया है कि एक गौ में 36 कोड़ी देवताओ का वास है। गौ का हर एक उत्पाद उपयोगी है जैसे गौ का दूध, गौ का गोबर और गौ मूत्र। गोबर से खाद का निर्माण किया जाता है। गोबर से गैस भी बनती है।

इसके अलावा और भी और उत्पाद बनते है, परंतु हमें ज्ञात नहीं था कि गाय के गोबर (Cow Dung) से उत्पादन करके हम मुनाफा भी कमा सकते है। आज हम बात कर रहे है छत्तीसगढ़ निवासी रितेश (Ritesh), जो आज गौ के गोबर से दर्जनों उत्पाद (Cow Dung Products) बना रहे है और लाखों का व्यापार कर रहे है। तो आज की इस खबर में हम जानेंगे कि क्या बाकई में गाय का गोबर इतना उपयोगी है और है, तो किस तरह।

रितेश गोबर को बहुत फायदे वाला मानते हैं। इसलिए वह अक्सर इसके नए-नए टेक्नीक के बारे में विचार करते रहते हैं। उन्होंने कहा कि मेरी दादी हमेशा बोला करती थी कि वे गोबर की लिपाई किए हुए घर में रहती थी। अब सभी घरों में टाइल्स और मार्बल देखने को मिलता है। गोबर से लीपना तो गांव में भी दिखाई नही देता। आज के युग मे गोबर तो लीप नहीं सकते। इसलिए मुझे गोबर से चप्पल बनाने का विचार आया।

गोबर की चप्पल (Cow dung slippers) बनाने के पीछे एक ओर मकसद था वो है, प्रदूषण कम करना। टूटी हुई चप्पलों से फैल रहे प्रदूषण से वातावरण भी अस्वछ होता है। गोबर से बनी उनकी ये चप्पलें सबुइ तरह से ईको-फ्रेंडली हैं।

उन्होंने इस विचार को सफल बनाना चाहा

उन्होंने सबसे पहली चप्पल अपनी दादी के लिए ही बनाई थी। वह चप्पल थोड़ी कठोर थी, लेकिन उनकी दादी ने उन्हें बताया कि इससे उन्हें शरीर मे स्वास्थ्य लाभ भी हो रहे हैं, जिससे रितेश को ऐसी और चप्पलें बनाने के लिए प्रेरणा मिली। जिससे उनका जुनून और बढ़ने लगा इस काम के प्रति।

उनकी दादी को देखकर कई लोगों ने उन्हें ऐसी और चप्पलें बनाने का ऑडर दिये। उन्होंने इस चप्पल (Cowdung products) को बनाने में गोबर, ग्वारसम और चूने का उपयोग किया है। एक किलो गोबर से करीब 10 चप्पलें बनाई जाती हैं। अगर यह चप्पल 3-4 घंटे बारिश में भीग जाए, तो भी खराब नहीं होती, धूप में इसे सुखाकर दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है।

छतीसगढ़ के CM के द्वारा गोबर से बने ब्रीफकेश में वजट पेश किया

2022 के वजट को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री मिस्टर भूपेश बघेल जी ने गोवर से तैयार ब्रीफकेश में पेश किया। यह एक अनोखी पहल थी, जो सोशल मीडिया में बहुत तेज वायरल हुई। इस ब्रीफकेश को एक पहल नाम की संस्था द्वारा रायपुर में रितेश अग्रवाल के द्वारा बनाया गया। उनकी 10 दिन की मेहनत से यह ब्रीफकेश तैयार किया।

रितेश अग्रवाल पिछले 3 साल से गोवर से बैग, पर्स, चप्पल, दिया, ईंट, मुर्तिया, पेंट और अन्य उत्पादन का निर्माण कर रहे है और महीने में 3 लाख से भी ज्यादा का व्यापर कर रहे है। होली के शुभ अवसर पर रितेश ने अबीर गुलाल का निर्माण किया।

रितेश के इन प्रोडक्ट की अधिक मांग है और सब उनकी बहुत तारीफ करते है। इन्होंने 23 से ज्यादा लोगों को इस काम में अपना हिस्सेदार बनाकर उन्हें रोजगार उपलब्ध कराया। लोगो को रोजगार देकर उन्होने अपने इस काम को उचाई तक ले जा रहे है।

अच्छी खासी नोकरी छोड़ लगे गौ सेवा में

रितेश ने अपनी पढ़ाई रायपुर से पूरी की और अलग अलग कंपनी में उन्हीने जॉब की परंतु वह संतुष्ट नहीं थे। उनका सपना कुछ और करने का था। उन्हें गौ की सेवा करना अच्छा लगता था। वह कहते है कि मैं अपने देश के लिए कुछ करना चाहता था पर क्या करता कैसे करता वो समझ नहीं आ रहा था।

फिर उन्होंने देखा कि सड़क पर गाय बेसहारा घूमती है। लोग उनको तब तक अच्छे से रखते है, जब तक वह दूध देती है। उसके बाद लोग उनको सडकों पे छोड़ देते है। जिससे कुछ गाय कचरा खा कर खुद को बीमार कर लेती है और कुछ दुर्घटना का शिकार हो जाती है।

रितेश कहते है, जो गाय दूध नही देती उनके गोबर से बहुत ही उपयोगी वस्तु बना सकते है। उनके गोबर से भी वस्तु बनाई जा सकती है, ये कम ही लोग जानते है। उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी और एक गौशाला से सारी प्रक्रिया के बारे में जानकारी ली और रायपुर आकार अपने मिशन में जुट गए। अपने सपने को साकार करने के लिए वो मेहनत करने लगे। उनके हौसलो में जान थी।

स्थानीय महिलाओं के साथ बनाई टीम और लग गए मिशन में

अपने इस काम में रितेश ने महिलाओं को प्राथमिकता दी उन्हें काम सिखाया और जरुरी बस्तु उपलब्ध कराई। आखिरकार उनके इस प्रयास से उन्हें सफलता हासिल हुई और महिलाओं को रोजगार देकर उनको आत्मनिर्भर बनाया। इस कार्य की हर कोई सराहना करता है और उनके द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट की मांग भी बढ़ती जा रही है।

उन्होंने अपने प्रोडक्ट को छत्तीसगढ़ से बाहर भी भेजा और वह एक बार फिर सफल हुए। उनके इस कार्य से हर महीने 3 लाख का बिजनेस होता है। उन्होंने शुरुआत में मूर्तियां, दीये और ईंट अदि बनाए। जिससे उनका हौसला और मजबूत हुआ।

अलग अलग प्रोडक्ट का निर्माण

गोबर से निर्मित लकड़ी से 7 हजार से ज्यादा दाहसंस्कार किये गए। महामारी के समय एक के बाद एक जा रही जान से समय पर चीजें उपलब्ध नहीं हो रही थी। लकड़ी की भी कमी होते जा रही थी। लकड़ी की बढ़ती मांग को देखते हुई उन्होंने सोचा क्यों न कोई ऐसा उत्पाद बनाया जाए, जिससे उसका उपयोग लकड़ी के स्थान पर हो सके।

होली में अबीर गुलाल का निर्माण किया। हानिकारक रंग गुलाल का उपयोग से बचने के लिए इस उत्पाद का निर्माण हुआ। रितेश ने बढ़ती मांग को देखते हुये उन्होने अपने निर्माण कार्य की गति को भी बढ़ा लिया। उनके द्वारा बनाये गये गुलाल की कीमत 300 रु प्रति किलोग्राम है।

इस वक़्त उनके साथ 13 महिलाए और 10 पुरुष काम कर रहे है। उनकी गौ शाला में 400 से ज्यादा गाय है। गोबर से बने ईंट की विशेषता यह है कि यह (Cow Dung Brick) साधारण ईंट से हल्की होती है। तथा गर्मी के दिनों में भी इनसे बने घर ठंडक प्रदान करते है।

मूल्य क्या है

गोबर की चप्पल (Gobar Ki Chappal) बनाने वालों का कहना है कि लोगों में गोबर से बने उत्पादों के बारे में जागरूकता बढ़ने के साथ लोग उनके उत्पादों से बहुत खुश हैं। उनकी तारीफ कर रहे है। इन्हें पहनने से होने वाले लाभ को देखते हुए इनका निर्माण करने वालों ने इसके मूल्य की जानकारी भी दी है। ऐसी चप्पलों की एक जोड़ी चप्पल 300 से 400 रुपये तक है। जो सभी के वजट में है।

आज ऑनलाइन मार्केट बहुत तेजी से बढ़ रहा है। हर कोई घर बैठे समान मांगा रहा है। इन सबको देखते हुये सरकारी अधिकारियों का कहना है कि गौशालाओं की मदद से गौथन में निर्माण किए जा रहे, सभी विभिन्न गुणवत्ता वाले उत्पादों को मानकीकृत किया जाएगा और ई-कॉमर्स बाजार और ऑनलाइन शॉपिंग पर उनकी बिक्री स्टार्ट कराने के लिए सभी सम्भव कोशिश की जाएंगी। ये सारे प्रोडक्ट छत्तीसगढ़ के सी-मार्ट स्टोर्स पर एकल शाखा नाम के साथ उपलब्ध होंगे। जिससे लोग इनके प्रति जागरूक हो।