श्रीलंका में लोगों के बढ़ते गुस्से, विरोध प्रदर्शन और तनाव के बीच श्रीलंका के कार्यवाहक राष्ट्रपति रनिल विक्रमासिंघे ने देश की सेना और पुलिस को हालात संभालने के आदेश दिए हैं.
रनिल विक्रमसिंघे ने कहा है कि सेना और पुलिस को देश में शांति बहाल करने के लिए हर ज़रूरी कदम उठाना चाहिए.
लेकिन ज़मीन पर हालात कुछ अलग ही नज़र आ रहे हैं.
जब हम जून के पहले हफ़्ते में यहां आए थे, तब महिंदा राजपक्षे के टेंपल ट्री वाले घर पर प्रदर्शनकारियों ने हमला बोल दिया था और उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था. तब ऐसा लग रहा था कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने विद्रोह को संभाल लिया है और रनिल विक्रमासिंघे को नियुक्त कर एक मास्टरप्लान बनाया जिससे लोगों का गुस्सा ठंडा हो जाए और वो ख़ुद भी राष्ट्रपति पद पर बने रहें.
लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब छह हफ़्ते हो गए हैं और प्रदर्शनकारी डटे रहे. लेकिन जब गोटाबाया बदलाव के लिए राज़ी नहीं दिखे, तो बसों में भर भर कर लोग कोलंबो पहुंचे. पेट्रोल की बड़ी हुई कीमतों के बावजूद उनका वहां पहुंचने का क्रम जारी रहा. इसका नतीजा क्या हुई, हम सबसे पिछले कुछ दिनों में देखा है.
लोगों राष्ट्रपति भवन के अंदर प्रवेश कर गए, राष्ट्रपति के दफ़्तर को भी निशाना बनाया गया और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को बुधवार सुबह देश छोड़कर मालदीव जाना पड़ा.
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सेना, पुलिस नहीं कर रही बल का प्रयोग
बुधवार की सुबह हज़ारों लोग कर्फ़्यू के बावजूद लाइन में खड़े होकर, बिना लाइन तोड़े राष्ट्रपति भवन के अंदर जा रहे हैं.
लेकिन पिछले एक महीने जो एक बड़ा बदलाव दिख रहा है, वो ये हैं कि सेना और पुलिस की मौजूदगी यहां बहुत कम हो गई है, कह सकते हैं, ये न के बराबर है. पिछली बार हर जगह बैरिकेडिंग थी, आईकार्ड की चेकिंग हो रही थी, हर जगह गार्ड होते थे लेकिन इस बार ये सब नहीं देखने को मिल रहा.
बुधवार को जब पीएम के घर में लोगों ने घुसने की कोशिश की तो उन्होंने बुलेट प्रूफ़ गेट को तोड़ दिया. सिक्युरिटी ने शुरू में आंसू गैस के गोले दागे लेकिन बाद में किसी तरह के बल का प्रयोग नहीं किया.
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लोग अभी भी संतुष्ट नहीं हैं
लोग अभी भी खुश नहीं दिख रहे हैं, राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे बुधवार सुबह देश छोड़कर मालदीव चले गए, रनिल विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया है, लेकिन लोगों को कोई उम्मीद नहीं नज़र आ रही.
यानी की विरोध प्रदर्शन ख़त्म होता नहीं दिख रहा, बाहर से लोगों के आने का सिलसिला जारी है. पुलिस और सेना बल प्रयोग करने से हिचकिचा रही है.
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दिक्कतें ख़त्म नहीं हो रहीं.
इन के बीच लोगों की दिक्कतें और बढ़ती जा रही हैं, पहले पेट्रोल के लिए 10 घंटे कतार में लगना पड़ रहा था अब 24 घंटे तक कतार में रहना पड़ा रहा है. पेट्रोल या डीज़ल एक व्यक्ति को 12 लीटर से अधिक नहीं दिया जा रहा. लोग पैदल और साइकिल से चलते दिख रहे हैं.
दवाओं की बहुत कमी को गई, कैंसर और टीबी जैसी बीमारियों की दवाओं की भी भारी कमी है, खाने की चीज़ों की कमी को लेकर भी डर बना हुआ है.
लोग समस्या का हल चाह रहे हैं, लेकिन किसी के पास इसका कोई हल नहीं दिख रहा, यहां कोई जादुई छड़ी नहीं है जो लोगों को संकट से निकाल सके.