अगर किसो को बेवकूफ़, कम दिमाग वाला कहने की इच्छा होती है तो हम सीधे-सीधे उसे गधा कह देते हैं. हमारे यहां ज़्यादा मेहनत करने वाले के लिए ऐसी कहावतें भी चलती हैं- गधा मज़दूरी करना. जबकि असलियत सही है कि गधा सबसे मेहनती जानवर है और इसी वजह से इंसान उससे ज़रूरत से बहुत ज़्यादा काम करवाता है. फिर चाहे वो पहाड़ी इलाकों में इंसान का बोझ ढोना हो या उसके सामान का, शोषित-प्रताड़ित होने के बावजूद ये जीव काम करता ही रहता है.
कर्नाटक के श्रीनिवास गौड़ा (Srinivas Gowda) से गधों की बदहाली देखी नहीं गई और उन्होंने गधों के लिए एक सेंटर बना दिया. उन्होंने गधों को संरक्षण दिया और अब उनके दूध से कमाई भी कर रहे हैं.
गधों की बदहाली देखी नहीं गई, खोल दिया Donkey Farm
Daji World
The New Indian Express के लेख के अनुसार 42 वर्षीय, श्रीनिवास गौड़ा बेंगलुरू के पास रामनगरा (Ramnagara, Bengaluru) के रहने वाले हैं. मेंगलुरू के पास उन्होंने डन्की फ़ार्म खोला है. गधों की बदहाली उनसे देखी नहीं गई और इसी वजह से उन्होंने बारत का दूसरा और कर्नाटक का पहला इस तरह का सेंटर खोला.
पैंडेमिक में बकरी पालन शुरू किया, अब फ़ार्म में गधे भी हैं
The New Indian Express
बीए ग्रैजुएट गौड़ा ने कई तरह के काम-काज में किस्मत आज़माई. उन्होंने पहले Aisiri फ़ार्म्स खोला. ये इंटीग्रेटेड एग्रीकल्चर ऐंड एनिमल हस्बैंड्री, वेटेरिनरी सर्विसेज़, ट्रेनिंग ऐंड फ़ॉडर डेवलपमेंट सेंटर था. बंटवाल तालुक स्थित ईरा गांव में उनकी 2.3 एकड़ की ज़मीन थी और यहीं उन्होंने फ़ार्म खोला. वे एक सॉफ़्टवेयर फ़र्म में काम करते थे. पैंडेमिक में अपनी नौकरी छोड़कर उन्होंने बकरियां पालना शुरू किया. ख़ास बात ये है कि उनके फ़ार्म में खरगोशों और कड़कनाथ मुर्गे की भी ब्रीडिंग होती थी. अब वहां 20 गधे भी आ चुके हैं.
लोगों ने श्रीनिवास का मज़ाक उड़ाया
The New Indian Express
पहले गधों का इस्तेमाल धोबी करते थे लेकिन अब मशीनें आ गई हैं, मॉर्डन तकनीक ने गधों से उनका काम छीन लिया. 2012 में जहां गधों की संख्या 3,60,000 थी वहीं 2017 में ये घटकर 1,27,000 रह गई है. काफ़ी रिसर्च के बाद उन्होंने कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से गधे मंगवाए और फ़ार्मिंग शुरू की. गौड़ा ने बताया कि जब लोगों ने सुना की वो गधों का फ़ार्म खोलने वाले हैं तो सभी ने उनका मज़ाक उड़ाया.
गधे का दूध बेचकर हो रही बम्पर कमाई (Donkey Milk)
Deccan Herald
श्रीनिवास गधी का दूध भी बेचते हैं. 30ml के पैकेट की कीमत 150 रुपये तक हो सकती है. वे सुपरमार्केट, मॉल और दुकानों में गधी का दूध सप्लाई करते हैं. जल्द ही वे ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनी को भी दूध सप्लाई करेंगे और उन्हें 17 लाख रुपये का ऑर्डर भी मिल चुका है. Deccan Herald से बात-चीत में उन्होंने बताया कि वे जल्द ही दूध का बॉटलिंग यूनिट लगाएंगे. गधे का यूरिन भी 500 से 600 रुपये लीटर बिकता है और गधे का गोबर खाद बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
2020 में खबर आई थी कि गुजरात में गधी का दूध 7000 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है. इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जिस प्राणी का मज़ाक उड़ाया जाता था वो कितना बहुमूल्य है.