Rajasthan Political Crisis: सचिन पायलट एक बार फिर राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने से चूक गए। अशोक गहलोत ने एक बार फिर बाजी पलट दी। मुख्यमंत्री बनने के लिए वे हर वो काम कर चुके हैं जो कर सकते हैं। पार्टी को जीत दिलाई, फिर पार्टी छोड़ने की धमकी दी और अंततर् आलाकमान का विश्वास भी हासिल किया, लेकिन किस्मत अब तक उनसे रूठी ही रही।
जयपुरः यह तय हो गया कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ेंगे। यह भी स्पष्ट हो गया कि 17 अक्टूबर को अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में अब मुख्य मुकाबला शशि थरूर और दिग्विजय सिंह के बीच होगा। दिग्विजय पहल ही ऐलान कर चुके हैं कि वे शुक्रवार को अध्यक्ष पद के लिए नामांकन करेंगे। अशोक गहलोत के उम्मीदवार नहीं बनने से कांग्रेस के वे नेता खुश हैं जो उनके व्यवहार को गांधी परिवार के निर्देश की अवहेलना के रूप में देख रहे थे। इस सबके बीच एक व्यक्ति ऐसा भी है जो यह नहीं तय कर पा रहा कि वो हंसे या रोए। वो यह भी सोच रहा होगा कि सीएम बनने के लिए उसे अब और क्या करना होगा, आखिर उसे न्याय कब मिलेगा।
तीन बार चूके सचिन पायलट
हम बात कर रहे हैं राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की जो पिछले चार साल से अपने साथ न्याय का इंतजार कर रहे हैं। इस दौरान कम से कम तीन बार ऐसे मौके आए जब लगा कि पायलट को राजस्थान का ताज मिल सकता है, लेकिन ऐन मौके पर बाजी उनके हाथ से निकल गई। इस बार भी जब गांधी परिवार ने गहलोत को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का उम्मीदवार बनाने का फैसला किया तो सबसे ज्यादा खुश सचिन पायलट ही हुए। पार्टी आलाकमान ने इसके साथ ही उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का इरादा भी स्पष्ट कर दिया। गहलोत की उम्मीदवारी वापस होने से लगता है वे फिर अपने ट्रिस्ट विद डेस्टिनी से दूर रहे गए। हालांकि, अभी उनकी किस्मत का अंतिम फैसला नहीं हुआ क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व गहलोत से अब भी नाराज है, इसमें कोई संदेह नहीं।
पार्टी को जीत दिलाई, लेकिन सीएम पद नहीं मिला
सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनने के लिए हर वो काम कर चुके हैं जो उनके वश में है। 2018 में विधानसभा चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उन्होंने कांग्रेस को जीत दिलाई। इसके लिए उन्होंने पांच साल तक जमीन पर मेहनत की। जब मुख्यमंत्री बनने की बात आई तो संख्या बल की बदौलत गहलोत बाजी मार ले गए। पायलट को डिप्टी सीएम के पद से संतोष करना पड़ा। उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें न्याय का भरोसा दिया था।
पार्टी छोड़ने की धमकी भी नहीं काम आई
पायलट दो साल से ज्यादा समय तक संयम बनाकर चलते रहे। गहलोत-समर्थकों के लाख उकसावे के बावजूद वे डिप्टी सीएम के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाते रहे। जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा और न्याय का इंतजार कुछ ज्यादा ही लंबा होने लगा तो वे सरकार से बाहर निकल गए। अपने समर्थक विधायकों को साथ लेकर उन्होंने पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाया। दबी जुबान से पार्टी छोड़ने की धमकी भी दी। यह भी कहा गया कि बीजेपी ने उन्हें सीएम पद का ऑफर दिया है। कई सप्ताह तक चली खींचतान के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें मना लिया, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी फिर उनसे दूर रह गई।
गहलोत ने फिर पलट दी बाजी
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव आखिरी मौका था जब लगा कि पायलट सीएम बन सकते हैं। इस बार तो पार्टी आलाकमान भी उनके साथ था, लेकिन गहलोत ने एक बार फिर उनके आगे से निवाला छीन लिया। गहलोत ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ मुख्यमंत्री बने रहने की मांग रख दी। दूसरी ओर, उनके समर्थक विधायकों ने इस्तीफे की धमकी दे डाली। इसका अंतिम नतीजा यह हुआ कि सोनिया गांधी के साथ मीटिंग के बाद गुरुवार को गहलोत ने कह दिया कि वे पार्टी अध्यक्ष पद के लिए नामांकन नहीं करेंगे। पायलट एक बार फिर मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए।
अब आगे क्या
हालांकि, हर बार की तरह निराशा के बीच भी पायलट के लिए उम्मीद की एक किरण बची है। इस बार कांग्रेस नेतृत्व गहलोत के रवैये से बेहद नाराज है। पार्टी ने अभी यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि गहलोत भविष्य में मुख्यमंत्री बने रहेंगे या नहीं। फिलहाल कांग्रेस विधायकों का बहुमत उनके साथ है, लेकिन गांधी परिवार की नाराजगी जाहिर होने के बाद इनमें से कितने उनके साथ बचे रहेंगे, यह कहना मुश्किल है। इसी तरह का घटनाक्रम साल 1989 में मध्य प्रदेश में हुआ था जब तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने आलाकमान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। अर्जुन सिंह को मुख्यमंत्री पद तो छोड़ना ही पड़ा, एमपी की राजनीति में उनकी फिर वापसी तक नहीं हो पाई। यदि राजस्थान में भी ऐसा कुछ हुआ तो पायलट के लिए ट्रिस्ट विद डेस्टिनी की संभावनाएं अभी खत्म नहीं हुई हैं, उनका इंतजार थोड़ा और लंबा हो सकता है।