‘प्यार के लिए चार पल कम नहीं थे’
‘तुम आए तो आया मुझे याद, गली में आज चांद निकला’
‘एक दो तीन’
‘अगर तुम साथ हो’
कानों में आवाज़ गूंज गई होगी. 90 के दशक की मेलोडी क्वीन. जो आज भी इतनी सदाबहार है कि YouTube पर उन्हें सबसे ज़्यादा सुना गया. अल्का यागनिक सिर्फ़ एक गायिका नहीं हैं, हममें से बहुत से लोगों के लिए इमोशन हैं. 4 साल की उम्र से संगीत सीखने वाली अल्का यागनिक की आवाज़ सुनकर आज भी आंखें नम हो जाती हैं.
6 साल की उम्र से गाना शुरू किया
अल्का यागनिक के संगीत के सफ़र में उनकी मां की अहम भूमिका रही. 20 मार्च 1966 को को कोलकाता के गुजराती परिवार में उनका जन्म हुई. अल्का की मां शुभा यागनिक एक क्लासिकल सिंगर है और उन्होंने बेटी को 4 साल की उम्र से ही संगीत की तालीम देना शुरू कर दिया. अल्का ने 6 साल की उम्र से गाना शुरू किया. वो ऑल इंडिया रेडियो, कोलकाता के लिए भजन गाती थीं.
राज कपूर से मुलाकात ने ज़िन्दगी बदल दी
10 साल की उम्र में मां उन्हें मुंबई ले आई. अल्का से इंतज़ार करने को कहा गया लेकिन उनकी मां उन्हें किसी भी हालत में सिंगर बनाना चाहती थीं. अल्का को राज कपूर के सामने गाने का मौका मिला. राज कपूर अल्का की आवाज़ को सुनकर स्तब्ध रह गए और एक चिट्ठी के साथ लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के पास भेजा. म्यूज़िकल जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने अल्का यागनिका को सुनने के बाद उनकी मां, शुभा को दो विकल्प दिए- अल्का को डबिंग आर्टिस्ट बनाया जाए, या कुछ दिन इंतज़ार करके उन्हें बतौर सिंगर लॉन्च किया जाए. शुभा ने दूसरा विकल्प चुना और इस निर्णय ने अल्का यागनिक की ज़िन्दगी बदल दी.
14 साल की उम्र में इंडस्ट्री में रखा कदम
अल्का यागनिक ने 1980 में आई झंकार के गाने से इंडस्ट्री में कदम रखा. इसके बाद उन्होंने 1981 में आई लावारिस में ‘मेरे अंगने में’ गाना गाया. 1988 में तेज़ाब के ‘एक दो तीन’ गाने ने अल्का यागनिक को घर-घर तक पहुंचा दिया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जिस दिन इस गाने की रिकॉर्डिंग थी उस दिन उन्हें तेज़ बुखार था. इस गाने की वजह से उन्हें पहला फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड भी मिला.
रात के 2:30 बजे की थी ताल से ताल मिला की रिकॉर्डिंग
अल्का यागनिक के म्यूज़िकल सफ़र के कई दिलचस्प किस्से हैं. उनमें से एक किस्सा ऐसा है जिससे हम सभी सीख ले सकते हैं.
Outlook Hindi के एक लेख के अनुसार, ये बात तब की है जब सुभाष घई ‘ताल’ बना रहे थे. फ़िल्म के संगीत निर्माण की ज़िम्मेदारी ए.आर.रहमान को दी गई थी. उस समय रहमान को ठीक से हिन्दी नहीं आती थी और हिन्दी गीत के बोल समझने में दिक्कत होती थी. सुभाष घई ने आनंद बख्शी के लिखे गीतों को अंग्रेज़ी में अनुवाद किया और एक-एक लाइन रहमान को समझाई.
फ़िल्म का टाइटल ट्रैक अल्का यागनिक को गाना था. उस समय वो एक दिन में कई गानों की रिकॉर्डिंग करती थी. एक दिन काम खत्म करके वो घर आईं और थककर सो गई. सुभाष घई ‘ताल’ के टाइटल ट्रैक ‘ताल से ताल मिला’ की रिकॉर्डिंग रख चुके थे. ये चेन्नई के स्टूडियो में रिकॉर्ड होना था. घई ने अल्का की मुंबई से टिकट बुक कर दी और फ़ोन किया. अल्का को फ़ोन किया तो उन्होंने फ़ोन नहीं उठाया. इसके बाद उन्होंने अल्का की मां को फ़ोन किया.
ए आर रहमान रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक रिकॉर्डिंग करते थे. घई ने अल्का यागनिक की मां, शुभा को बताया कि सारे इंतज़ाम हो चुके हैं और अल्का को रात में ही गाना रिकॉर्ड करना होगा. शुभा ने घई की आवाज़ में उत्साह भांप लिया था उन्हें पता चल गया था कि ये गाना काफ़ी खास होगा. उन्होंने अल्का को जगाया और रिकॉर्डिंग की बात कही लेकिन अल्का में थकान की वजह से उत्साह नहीं था. उन्होंने रिकॉर्डिंग के लिए जाने से इंकार कर दिया. इसके बाद शुभा ने बेटी को समझाया और अल्का रिकॉर्डिंग करने पहुंची. अल्का ने जैसी ही धुन सुनी सारी थकान भूल गईं. ये गाना रात के 2:30 बजे के बाद रिकॉर्डि किया गया था. इस गाने के लिए भी उन्हें फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड मिला था.
अल्का यागनिक ने हिन्दी, गुजराती, बांग्ला, असमिया, मराठी जैसे कई भारतीय भाषाओं में 8000 से ज़्यादा गाने रिकॉर्ड किए हैं. उन्होंने बिज़नेसमैन नीरज कपूर से 1989 में शादी की थी और उनके दो बच्चे हैं.