100 रुपए महीना कमाने वाले ऑफ़िस बॉय की कहानी, जो पराली से प्लाईवुड बना करोड़ों कमा रहा है

मेहनत से इंसान सफलता पा सकता है और अगर सोच अच्छी हो तो फिर सफलता में लगातार बढ़ोतरी होती रहती है. ठीक उसी तरह जिस तरह चेन्नई के बी. एल. बेंगानी ने ना केवल अपनी मेहनत से अपने जीवन में कामयाब मुकाम पाया बल्कि पर्यावरण को बचाने के लिए अनोखा रास्ता भी निकाल लिया. प्लाईवुड का काम करने वाले लोग पेड़ की लकड़ियों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन बेंगानी प्लाईवुड भी बेचते हैं और वह इसके लिए पेड़ भी नहीं काटते. और तो और, उनकी कंपनी इस काम से करोड़ों का टर्नओवर जमा करती है. कैसे करते हैंं वो ये काम?

पराली से बनाते हैं प्लाईवुड

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धान और गेहूं की फ़सल कटने के बाद इसमें से जो पराली बचती है, किसान उसे जला देते हैं क्योंकि उसका कोई भी दूसरा उपयोग उन्हें समझ नहीं आता. वहीं इस पराली के जलने से उठने वाला धुआं कई राज्यों में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण बना हुआ है. यही कारण है कि केंद्र व राज्य सरकारें लगातार किसानों से अनुरोध करती रहती हैं कि वे पराली न जलाएं.

बहुत से लोग अभी इससे होने वाले नुकसान को समझ नहीं पाए हैं लेकिन वहीं बेंगानी जैसे पर्यावरण को लेकर संवेदनशील लोगों ने ना ही केवल इस समस्या की गंभीरता को समझा है बल्कि इसके समाधान के लिए नया रास्ता भी खोजा है. बेंगानी ने एक स्टार्टअप शुरू किया है, जिसमें वे पराली से प्लाईवुड बनाने का काम करते हैं.

जानिए कौन हैं बीएल बेंगानी

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बी एल बेंगानी चेन्नई स्थित स्टार्टअप इंडोवुड डिजाइन टेक्नोलॉजी के संस्थापक हैं. इस स्टार्टअप में 61 वर्षीय बेंगानी का साथ दे रहे हैं उनके बेटे वरुण बेंगानी और बेटी प्रियंका कुचेरिया. बेंगानी द्वारा शुरू किए गए इस स्टार्टअप में धान की पराली जैसे ऐग्री-वेस्ट का इस्तेमाल प्लाईवुड बनाने में किया जाता है. इस इको फ्रेंडली नेचुरल फाइबर काम्पोजिट बोर्ड का इस्तेमाल फर्नीचर, होम डेकॉर या दूसरे सामान बनाने के लिए किया जा सकता है.

द बेटर इंडिया के विशेष लेख के मुताबिक मूल रूप से राजस्थान के रहने वाले बी.एल बेंगानी अपने परिवार के साथ 1972 में कोलकाता आ गए थे. बेंगानी के पिता एक एक जूट मिल में काम करते थे. बेंगानी ने बेटर इंडिया को बताया कि उन दिनों उनका परिवार एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की तरह अपना गुज़र-बसर कर रहा था.

परिवार की स्थिति को संभालने के लिए 10वीं के बाद से ही बेंगानी को काम करने के लिए आगे आना पड़ा. दिन में वह काम कर सकें और काम की वजह से उनकी पढ़ाई भी ना छूटे इस वजह से उन्होंने एक संध्या कॉलेज में दाखिला ले लिया. इस तरह वह पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी भी करने लगे. आज करोड़ों की कंपनी और एक अनोखा स्टार्टअप शुरू करने वाले बेंगानी बताते हैं कि उन्होंने अपने काम की शुरुआत एक ऑफिस बॉय के तौर पर की.

आज के इस करोड़पति को उन दिनों मात्र 100 रुपये महीने मिलते थे. इसके बाद उन्होंने कई जगह काम किया. काम के साथ साथ उनकी पढ़ाई भी चलती रही और इसी तरह इन्होंने बीकॉम किया.

पहले कंपनी में काम किया, फिर कंपनी के मालिक बन गए

बीकॉम की पढ़ाई पूरी करने के बाद बेंगानी को तलाश थी किसी अच्छी नौकरी की और उन्हें नौकरी की ये तलाश कोलकाता से चेन्नई ले गई. यह साल 1987 की बात है जब बेंगानी को चेन्नई की एक कंपनी में बतौर अकाउंटेंट काम मिल गया. इस काम के बाद बेंगानी को एक प्लाईवुड कंपनी में मार्केटिंग का काम संभालने का अवसर मिला.

मजबूरीयों ने भले ही बेंगानी के हाथ में एक के बाद एक नौकरियां थमा दी थीं मगर असल में उनका मन नौकरी ना कर के अपना खुद का काम शुरू करने का था. नौकरी करते हुए भी बेंगानी अपने खुद के काम के सपने को नहीं भूले. यही वजह रही कि कुछ सालों तक प्लाइवुड इंडस्ट्री में काम का अनुभव लेने के बाद उन्होंने अपनी खुद की कंपनी खोलने का मन बनाया.

आर्थिक तौर पर वह इतने सक्षम नहीं हुए थे लेकिन इसके बावजूद वह खुद पर भरोसा कर के रिस्क लेने को तैयार थे. उन्होंने बेटर इंडिया को बताया कि उन्हें इस इंडस्ट्री के बारे में अच्छी जानकारी हो गयी थी. उन्हें ये यकीन था कि अगर वह सही तरीके से मेहनत करेंगे तो उन्हें सफलता जरूर मिलेगी. अंत में बेंगानी ने खुद पर विश्वास दिखाया और अपना खुद का काम शुरू करने का जोखिम उठा लिया.

करोड़ों में था कंपनी का टर्नओवर

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बेंगानी ने 1997 में दूसरे देशों से हाई क्वालिटी प्लाइवुड बोर्ड लाकर बेचने का काम शुरू किया. इसके बाद वह खुद से बोर्ड बनाने लगे. उन्होंने 2001 में अपनी खुद की फैक्ट्री लगायी. वह बोर्ड बनाने के लिए बर्मा से रॉ मटेरियल मंगवाते थे. 2010 ही वह साल था जब बेंगानी को कंपनी संभालने के लिए उनके बेटे के रूप में एक और साथी मिल गया.

कंपनी अच्छी चल रही थी, करोड़ों का टर्नओवर दे रही थी लेकिन इसके बावजूद 2014 में बेंगानी ने इस बिज़नेस को छोड़ने का मन बना लिया. वह कुछ अलग करना चाहते थे. हालांकि यह बहुत ही जोखिम भरा कदम था लेकिन इसके पीछे बेंगानी की अच्छी सोच थी जिस वजह से वह जोखिम लेने से नहीं डरे. आखिरकार 2015 में बेंगानी ने अपनी कंपनी किसी दूसरे निवेशक को दे दी और खुद एक अलग स्टार्टअप पर काम करना शुरू कर दिया.

सिद्धांतों के लिए छोड़ दिया पुराना बिजनेस

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बेंगानी के बेटे वरुण कहते हैं कि ऐसा करने की सबसे बड़ी वजह थी पर्यावरण के प्रति उनकी बढ़ती संवेदनशीलता. बेंगानी और उनके पुत्र प्लाइवुड का ही काम करना चाहते थे लेकिन इसके लिए वे पेड़ नहीं काटना चाहते थे. सुनने में ये अजीब लगता है, बिना पेड़ काटे लकड़ी कहां से मिलेगी और बिना लकड़ी के प्लाइवुड कैसे बनेगा लेकिन बेंगानी और उनके बेटे ने दो-ढाई साल की रिसर्च के बाद बिना लकड़ी के प्लाइवुड बोर्ड बनाने का रास्ता ढूंढ ही लिया.

इन्होंने काफी रिसर्च के बाद, नेचुरल फाइबर, ऐग्री-वेस्ट और कुछ दूसरे एडिटिव को मिलाकर उच्च गुणवत्ता वाले इको फ्रेंडली प्लाइवुड बोर्ड तैयार करने शुरू कर दिए. इनका इस्तेमाल भी अन्य प्लाइवुड की तरह ही घर, होटल, कैफ़े या दूसरी किसी भी जगह का फर्नीचर बनाने के लिए किया जा सकता है. बेंगानी बताते हैं कि इस प्लाइवुड को लेकर सबसे बड़ी बात यह है कि इन्हें बनाने के लिए किसी भी जीव-जंतु को कोई नुकसान नहीं पहुंचाना पड़ता.

इसे बनाने की सारी प्रक्रिया प्रकृति के अनुकूल है. बेंगानी के अनुसार वे अहिंसा में विश्वास करते हैं और इसका पालन अपने काम-काज में भी करना चाहते हैं.

इस स्टार्टअप से होगा किसानों को फायदा

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बेंगानी की बेटी प्रियंका ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए कहा कि इस प्लाइवुड को बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली पराली वे फिलहाल धान मिलों से ही खरीद रहे हैं. इसका कारण यह है कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण किसानों के पास जाकर उनसे मिलना और पराली खरीदना संभव नहीं हो पा रहा है. हालांकि इनकी आगे की योजना है कि ये सीधा किसानों तक पहुंच कर उनसे पराली खरीदें जिससे कि उनकी आर्थिक मदद हो सके.

बेंगानी के साथ इस समय 40 लोगों की टीम काम कर रही है. वह 2022 तक उनकी इस टीम को और बढ़ाना चाहते हैं. बेंगानी बताते हैं कि उनके इस नए स्टार्टअप का सालाना टर्नओवर करोड़ों में है लेकिन कोरोना महामारी की वजह से उनका बिजनेस प्रभावित हुआ है. बेंगानी उम्मीद करते हैं कि अगर सबकुछ सामान्य रहा, तो 2022 तक इनका टर्नओवर पहले से ज्यादा होगा.