1962 में चीन के साथ हुए युद्ध से भारत उभर ही रहा था कि पाकिस्तान ने फिर से भारत पर हमला कर दिया. अप्रैल-सितंबंर 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच जंग हुई. इस युद्ध में भारतीय सेना ने दुश्मन सेना के छक्के छुड़ा दिए. पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर (Operation Gibraltar) लॉन्च किया. ऑपरेशन जिब्राल्टर के तहत पाकिस्तान के हथियारबंद गुरिल्ला बैंड को भारत का कम्युनिकेशन सिस्टम बर्बाद करना था और उत्तर की तरफ़ से कश्मीर में घुसना था.
पाकिस्तान सेना के ये ‘सिपाही’ पीठ पर राशन, हथियार, गोलियां आदि लेकर कई दिनों तक चलकर बॉर्डर पहुंचे. कुपवाड़ा के पास स्थित चौकीबाल (Chowkibal) में इन लोगों ने कैम्प लगाए. BBC की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी ठंडी परिस्थितयों में रहना आसान नहीं फिर भी ये लोग घात लगाए इंतज़ार करते रहे.
भारतीय सेना पर घात लगाए बैठे इन घुसपैठियों ने तैयारी तो पक्की की थी लेकिन इनका काम ख़राब किया एक भारतीय ने.
राहुल पंडिता की किताब, The Loverboy of Bahawalpur (पुलवामा अटैक पर आधारित किताब) के मुताबिक, भारतीय सेना को इन घुसपैठियों की ख़बर दी थी एक गुर्जर बकरवाल ने. उत्तर कश्मीर में इस शख़्स ने मवेशी चराते हुए कुछ हथियारबंद लोग देखे. उस शख़्स का नाम था मोहम्मद दीन जागिर. जागिर Tangmarg का रहना वाला था. हथियारबंद लोगों ने जागिर से शहर तक पहुंचने के लिए मदद मांगी. जागिर को एहतियात बरतते हुए कश्मीरी कपड़े लाने को कहा गया. जागिर ने उन लोगों की मदद करने के बजाए पुलिस को सूचना दी.
मोहम्मद दीन जागिर की दी हुई जानकारी ने युद्ध लड़े जाने से पहले ही युद्ध का निर्णय दे दिया. कश्मीर को जीतने के पाकिस्तान के सीक्रेट मिशन ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ की पूरी कहानी साफ़ हो गई.
इंदिरा से मांगा रेडियो
केन्द्र सरकार ने मोहम्मद दीन जागिर को पद्मश्री से सम्मानित किया. कहते हैं इंदिरा गांधी ने जागिर से पूछा था कि वो जागिर के लिए क्या कर सकती हैं. जागिर ने इंदिरा गांधी से दो चीज़ें मांगी थी- एक Philips का ट्रांसिस्टर. जागिर की दूसरी ख़्वाहिश थी कि वो जिस लड़की से शादी करना चाहता है उसके पिता को मनाया जाए. जिस दिन जागिर को पद्म श्री मिला उसी दिन उसे ट्रांसिस्टर गिफ़्ट किया गया. उसके बाद एक जुनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफ़िसर को उस लड़की के पिता से बात करने के लिए भेजा गया. जागिर और उस लड़की की शादी भी हो गई.
जागिर के इस कृत्य से सभी कश्मीरी ख़ुश नहीं थे लेकिन किसी ने जागिर को नुकसान नहीं पहुंचाया. 1990 के दशक में जब कश्मीर के हालात बिगड़े तब जागिर को 25 साल पहले भारतीय सेना का साथ देने की सज़ा दी गई. आतंकवादियों ने मोहम्मद जागिर की हत्या कर दी.
बताया जाता है कि ऑपरेशन जिब्राल्टर में 7000 से 20000 जवान तक शामिल हो सकते हैं. ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान ने कभी ऐसे फ़ोर्स या ऐसे मिशन को अंजाम देने की बात स्वीकार नहीं की. ऑपरेशन जिब्राल्टर लॉन्च करने के पीछे पाकिस्तान की मंशा थी कि गुरिल्ला अटैक देखकर कश्मीर के लोग प्रेरित होंगे और विद्रोह करेंगे. कश्मीरी विरोध के लिए तैयार नहीं थे बल्कि वे इन बाहरी लोगों से परेशान ही हो रहे थे. भारतीय सेना ने ऑपरेशन जिब्राल्टर को अंजाम तक पहुंचने नहीं दिया.