Team Hoyt की कहानी: एक पिता जिसने बेटे को व्हीलचेयर पर धकेलते हुए जीत ली पूरी दुनिया, बदले में बेटे ने दी नई ज़िंदगी

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दुनिया को कहानियां सुनाई गईं जिससे कि वो कुछ सीख सकें, अपनी सीमाओं से पार जाकर सोच सकें, खुद से कह सकें कि वो कर सकता है तो तुम क्यों नहीं. ऐसी कहानियों ने इंसानियत को मजबूती दी, कमजोर लोगों को हिम्मत दी, हारे हुए लोगों को एक बार फिर से लड़ने का हौसला दिया. ऐसी कहानियों ने ही आगे चल कर एक नई कहानी रचने में अहम भूमिका निभाई.

Meet Rick and Dick Hoyt The Story of Team HoytTwitter

Indiatimes हिंदी एक बार फिर से आपके लिए लाया है एक ऐसी ही कहानी जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है. ये कहानी है एक ऐसे बेटे की, जिसकी असक्षमता ने उसके पिता को एक नई ज़िंदगी दी, ये कहानी है एक ऐसे पिता की जिसने अपने बेटे का सपना पूरा करने के लिए खुद को पूरी तरह से समर्पित कर दिया, ये कहानी है हौसले, हिम्मत और जुनून की, ये कहानी है मैराथन में अपनी धाक जमाने वाले एक ऐसे पिता-पुत्र की जो दोनों एक दूसरे के पूरक रहे, ये कहानी है Team Hoyt की.

दो लोगों के प्रेम ने लिखी Team Hoyt की कहानी

कहानी की शुरुआत होती है डिक होयट नामक एक लड़के से, जिसे फुटबॉल खेलना पसंद था. अपनी स्कूल फुटबॉल टीम का कप्तान था वो लड़का. इसी खेल ने उसे उसकी ज़िंदगी का सबसे अनमोल तोहफा दिया, इसी खेल की वजह से वो जूडी लेटन से मिला. वो लड़की जो चीयरलीडर्स की मुखिया थी. प्रेम कहानियों में जंग, परेशानियों और संघर्ष का होना एक अटल सत्य है, कुछ प्रेम कहानियों में ये सब पहले होता है तो कुछ में एक दूसरे को पा लेने के बाद. इन दोनों की प्रेम कहानी में इनका मिलना बहुत आसान था. दोनों ने मोहब्बत की और फिर 1961 में शादी के मजबूत बंधन में बंधकर हमेशा के लिए एक दूसरे के हो गए.

बेटे के जन्म ने कर दिया था दुखी

डिक होयट और जूडी लेटन की प्रेम कहानी को भी लाखों सामान्य सी प्रेम कहानियों की भीड़ में खो जाना चाहिए था लेकिन इनकी प्रेम कहानी ने एक ऐसा इतिहास रच दिया जो हर इंसान के लिए सालों तक एक मिसाल की तरह रहेगी. शादी तक सब कुछ सामान्य था लेकिन इन दोनों की ज़िंदगी में बदलाव तब आया जब शादी के अगले ही साल जूडी ने अपने बेटे को जन्म दिया. बेटे का जन्म एक खुशी का मौका था लेकिन इस खुशी में एक बड़ा दुख तब शामिल हो गया जब पता चला कि उनका बेटा सामान्य नहीं है. जन्म के समय बच्चे के मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी के कारण वह सेरेब्रल पाल्सी जैसी बीमारी के साथ पैदा हुआ है. इस बीमारी की वजह से उसका मस्तिष्क उसकी मांसपेशियों को सही संदेश नहीं भेज सकता था.

डॉक्टरों ने बच्चे को दान करने की दी थी सलाह

डिक और जूडी को डॉक्टरों ने सलाह दी कि वे अपने बेटे को किसी मेडिकल रिसर्च सेंटर में दान कर दें क्योंकि उसके ठीक होने की कोई संभावना नहीं. डॉक्टरों ने साफ तौर पर कहा कि उनका बच्चा सारी उम्र चल-फिर और बोल पाने में सक्षम नहीं होगा. बच्चे के लिए सामान्य जीवन की उम्मीद बेहद कम थी. इसके बावजूद डिक और जूडी अपने बच्चे को छोड़ नहीं पाए. वो उसे घर लाए और उसका नाम रखा रिक होयट. दुनिया चाहे जो कह रही हो मगर एक मां-बाप कभी अपने बच्चे को लेकर नाउम्मीद नहीं हो सकते. डिक और जूडी के साथ भी ऐसा ही था, उन्हें उम्मीद थी कि एक दिन उनका बेटा उनसे बात कर पाएगा.

जूडी सालों तक इस उम्मीद को सच साबित करने की कोशिश करती रही. जूडी रोजाना घंटों रिक को संख्या और अक्षर पहचानना सिखाती थी. डिक और जूडी ने रिक को पब्लिक स्कूल में दाखिल दिलाने के लिए भी लड़ाई लड़ी. उन्होंने स्कूल प्रशासन को रिक की भौतिक सीमाओं से परे देखने के लिए प्रेरित किया. डिक और जूडी अन्य बच्चों की तरह रिक को स्लेजिंग और स्विमिंग में ले जाते थे. रिक की बुद्धि और हर किसी की तरह सीखने की क्षमता का ठोस सबूत देने के बाद, डिक और जूडी को रिक को खुद के लिए संवाद करने में मदद करने का एक तरीका खोजने की जरूरत थी.

वैज्ञानिकों का रिक के लिए स्पेशल तोहफा

1972 में डिक और जूडी ने अपने बेटे के लिए टफ्ट्स यूनिवर्सिटी (Tufts University) के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट का दरवाजा खटखटाया और वैज्ञानिकों से मदद मांगी. उनकी सुनी भी गई. $ 5,000 और Tufts University इंजीनियरों के एक कुशल समूह के साथ, रिक के लिए एक इंटरैक्टिव कंप्यूटर बनाया गया. इस कंप्यूटर में एक कर्सर शामिल था जिसका उपयोग वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर को हाइलाइट करने के लिए किया जाता था. रिक के चाहने से अक्षर हाइलाइट हो जाते थे, फिर वह अपने व्हीलचेयर से जुड़े सिर के साथ एक टैप करके इसे चुनने में सक्षम था.

ये थे रिक के पहले शब्द

जब कंप्यूटर मूल रूप से पहली बार घर लाया गया था, रिक ने अपने पहले शब्दों से सभी को चौंका दिया था. “हाय, मॉम,” या “हाय, डैड” कहने के बजाय, रिक के पहले बोले गए शब्द थे ““Go, Bruins!” दरअसल, उस सीजन में बोस्टन ब्रुन्स स्टेनली कप फाइनल में थे. उस क्षण से यह स्पष्ट हो गया था कि रिक खेल से प्यार करता था और अन्य लोगों की तरह ही खेलों का अनुसरण करता था.

ये साल 1975 था जब 13 साल की उम्र में रिक को आखिरकार पब्लिक स्कूल में दाखिला मिल ही गया. हाई स्कूल के बाद, रिक ने बोस्टन विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और 1993 में Special Education में डिग्री लेकर ग्रेजुएशन पूरा किया. दूसरी तरफ रिक के पिता डिक ने 37 साल तक अपने देश की सेवा करने के बाद 1995 में एयर नेशनल गार्ड से लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से रिटायर हो गए.

रिक की इच्छा को टाल नहीं सका पिता

1977 की वसंत इस परिवार के लिए बेहद खास थी. यही वो साल था जब टीम होयट की शुरुआत हुई. एक दिन रिक ने अपने पिता से पूछा कि क्या वे अपने स्कूल में एक लकवाग्रस्त लैक्रोस खिलाड़ी को लाभ पहुंचाने के लिए एक दौड़ में भाग ले सकता है? वह यह साबित करना चाहता था कि आपकी अक्षमता के बावजूद जीवन चलता रहता है. यहां सबसे बड़ी समस्या थी कि डिक एक तो धावक नहीं थे और दूसरा ये कि उनकी उम्र 36 साल हो चुकी थी. डिक के सामने ये एक बड़ी चुनौती थी लेकिन वो एक बेहतरीन पिता थे जो अपने बेटे के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे. जब वो रिक को रेस के लिए हां नहीं कह पा रहे थे तब उनके अंतर्मन ने उन्हें कहा, “विकलांग तुम्हारा बेटा है या खुद तुम?” डिक ने तुरंत सोच लिया कि एक कोशिश करने में क्या हर्ज़ है.

बेटे की एक बात ने बदल दी ज़िंदगी

डिक भले ही एक धावक नहीं रहे हों, लेकिन एक बेहतरीन पिता के रूप में उनके बेटे का ये अनुरोध वह प्रेरणा थी जिसकी उन्हें जरूरत थी. वह मान गए और अपने बेटे की व्हीलचेयर को पूरे पांच मील तक धकेलते हुए दौड़े. उनकी ये पहली रेस थी जिसके बाद रिक ने उनसे जो कहा उस एक वाक्य ने पिता-पुत्र दोनों की ज़िंदगी बदल दी. रिक ने अपने पिता से कहा कि, “डैड, जब आप मुझे लेकर दौड़ रहे होते हैं, तो ऐसा लगता है कि मैं विकलांग नहीं हूं.”

खुद को बनाया मजबूत

रिक की बात ने डिक को इतना प्रेरित किया कि उन्होंने ये फैसला कर लिया कि वह अब रिक को बार बार विकलांग ना होने का अहसास कराते रहेंगे. इसके लिए 36 साल के इस पिता ने जी तोड़ मेहनत शुरू कर दी. डिक व्हीलचेयर के साथ हर दिन दौड़ने का अभ्यास करने लगे. रिक स्कूल में होता या पढ़ाई कर रहा होता तो वह व्हीलचेयर में सीमेंट के बैग रख कर दौड़ते. डिक ने अपनी फिटनेस में इतना सुधार कर लिया कि अपने बेटे को व्हीलचेयर के साथ धकेलते हुए 17 मिनट में 5 किमी की दौड़ का व्यक्तिगत रिकॉर्ड हासिल करने में सक्षम हो गए. अगले साढ़े तीन साल तक इस पिता पुत्र की जोड़ी ने अपने स्वयं के व्यक्तिगत रिकॉर्ड तोड़े.

पहली बार लिया बोस्टन मैराथन में हिस्सा

1979 वह साल था जब इस बाप-बेटे की जोड़ी ने दुनिया की सबसे मशहूर मैराथन यानी बोस्टन मैराथन के लिए में दौड़ने का फैसला किया. हालांकि बोस्टन मैराथन के आयोजकों ने इस बात से साफ इनकार कर दिया. उनका कहना था कि वह बाप-बेटे की जोड़ी को एक धावक नहीं मान सकते. डिक अब हार मानने वाले नहीं थे. इसके लिए उन्होंने खूब मेहनत की. 1981 में वे एक मैराथन में इतनी तेज़ भागे कि उन्होंने अगले बरस की बोस्टन रेस के लिए क्वालीफाई कर लिया. होयट्स ने अपना पहला बोस्टन मैराथन पूरा किया जो बोस्टन शहर के 26.2 मील के ट्रेक पर दौड़ा गया. इस दौड़ में डिक ने रिक को एक विशेष व्हीलचेयर में बिठा कर दौड़ लगाई थी.

जो किसी ने नहीं सोचा था वो कर दिखाया

इसके चार साल बाद, फादर्स डे के मौके पर पिता-पुत्र की इस जोड़ी ने कुछ ऐसा किया जो उस समय किसी ने नहीं सोचा था. दोनों ने एक साथ ट्रायथलॉन में भाग लिया. जिसमें एक मील की तैराकी, 40 मील की साइकलिंग और 20 मील की दौड़ शामिल थी. होयट्स के लिए सबसे बड़ा सवाल था कि वे इसे पूरा कैसे करेंगे. फिर ट्रायथलॉन के तैराकी भाग के लिए डिक ने अपनी कमर के चारों ओर लिपटे एक बंजी कॉर्ड के साथ रिक को एक विशेष नाव में खींचा. इसके बाद साइकिल रेस के लिए इस जोड़ी ने कस्टम-मेड सीट के साथ दो-सीटर साइकिल का इस्तेमाल किया. और अंतम में सड़क दौड़ के लिए, उन्होंने रिक को अपनी एथलेटिक कुर्सी पर बिठा कर दौड़ पूरी की.

1977 में शुरू हुई टीम होयट की ये दौड़ यात्रा बहुत लंबी चली. टीम होयट ने 255 ट्रायथलॉन (6 आयरनमैन डिस्टेंस और 7 हाफ आयरनमैन डिस्टेंस), 22 ड्यूथलॉन, 72 मैराथन (32 बोस्टन मैराथन), 95 हाफ मैराथन, 35 फालमाउथ 7.1 मील जैसी दौड़ पूरी कीं. टीम होयट का मैराथन पीआर 2:40:47 और हाफ मैराथन पीआर 1:21:12 था. डिक और रिक आयरनमैन हॉल ऑफ फ़ेम के कुल 27 सदस्यों में से दो रहे हैं, जिन्होंने 1996 में ओलंपिक मशाल को आगे बढ़ाया और 1992 में उन्होंने लगातार 45 दिनों में सांता मोनिका, कैलिफ़ोर्निया से बोस्टन हार्बर तक बाइक चलाई.

डिक को नहीं आता था तैरना

कमाल की बात ये थी कि डिक को ना तो तैरना आता था और साइकिल उन्होंने छः साल की उम्र के बाद से नहीं चलाई थी. रिक की कही उस बात ने “जैसे मैं विकलांग नहीं था” डिक के अंदर एक नई ऊर्जा भर दी. जिस वजह से वह अपने बेटे के साथ दुनिया भर की प्रतियोगिताओं में शामिल हुआ. रिक की इसी बात ने डिक को तैरना सीखने के लिए प्रेरित किया. डिक ने इस संबंध में कहा था कि “उसने ही मुझे प्रेरित किया है, क्योंकि अगर ये सब उसके लिए नहीं होता, तो मैं वहां प्रतिस्पर्धा में भाग नहीं ले पाता. मैं जो कर रहा हूं वह रिक का मेरी बाहों और पैरों पर उधार है ताकि वह वहां हर किसी की तरह प्रतिस्पर्धा कर सके.”

1988 में हवाई के कोना में हुआ आयरनमैन ट्रायथलॉन सभी खेल आयोजनों में सबसे चुनौतीपूर्ण था. इसमें दोनों ने अब तक छह बार भाग लिया. इसमें 2.4-मील (3.86 किमी) की तैराकी, 112-मील (180.25 किमी) की साइकिल की सवारी और 26.2-मील (42.2 किमी) की मैराथन दौड़ शामिल है. उनका पहला प्रयास अच्छा नहीं रहा था क्योंकि डिक बीमार हो गए थे लेकिन वे 1989 में हवाई लौट आए और दौड़ पूरी की. 2003 के आयरनमैन ट्रायथलॉन में उनकी बाइक दुर्घटनाग्रस्त हो गई और उन्होंने पांच घंटे अस्पताल में बिताए. इस दौरान रिक के चेहरे पर टांके लगे थे. लेकिन वे फिर से प्रयास करने के लिए उठे और प्रतियोगिता समाप्त की.

उन्होंने अगले बत्तीस साल तक बोस्टन मैराथन में हिस्सा लिया. 1992 की मैराथन में उनका समय वर्ल्ड रेकॉर्ड से कुल 35 मिनट कम रहा. 2007 की मैराथन के दौरान डिक 63 वर्ष के थे और रिक की उम्र तब 43 थी. इस दौड़ में टीम होयट कुल 20 हज़ार धावकों में 5,083वें नंबर पर रहे जो करीब 15 हज़ार स्वस्थ स्त्री-पुरुषों से बेहतर था.

2014 में डिक आखिरी बार बोस्टन मैराथन दौड़े

2014 तक डिक की उम्र 74 साल की हो चुकी थी. कमजोर पड़ रहे शरीर के कारण अब वह दौड़ में हिस्सा लेने के लिए सक्षम नहीं थे. इसी साल उन्होंने अपनी आख़िरी बोस्टन मैराथन दौड़ने की घोषणा की. हालांकि रिक अभी और दौड़ना चाहते थे. यही वजह थी कि 2015 से 2019 तक मैसाचुसेट्स के एक डेंटिस्ट ब्रायन लियोन्स ने डिक की जगह लेते हुए रिक की व्हीलचेयर को धकेलने का जिम्मा उठाया. हालांकि जून 2020 में मात्र 50 की आयु में लियोन्स की मौत हो गई.

बेटे की वजह से पिता को मिली थी नई ज़िंदगी

जब 2003 में डिक होयट को दिल का दौरा पड़ा तब उनके सामने ऐसी सच्चाई आई जिसने उन्हें समझा दिया कि उनके बेटे की वजह से ही उन्हें नया जीवन मिला है. टेस्ट करते समय डाक्टरों ने पाया उनके दिल की एक धमनी 95% ब्लॉक्ड थी. डॉक्टरों का कहना था कि, ‘अगर वह दौड़ न रहे होते तो शायद 15 बरस पहले ही मर गए होते.’ एक विकलांग बेटे ने अपने देखे हुए सपनों के कारण अपने पिता को नया जीवन दे दिया था. एक इंटरव्यू में अपने पिता को ‘फादर ऑफ़ द सेन्चुरी’ बताने वाले रिक ने कहा था कि, “मेरे दिल में एक ही ख्वाहिश है कि डैड कुर्सी पर बैठे हों और उन्हें धकेलता हुआ मैं दौड़ लगाऊं.”

पिता-पुत्र ने दुनिया को कहा अलविदा

टीम हॉइट ने ग्यारह सौ से ज़्यादा दौड़ों में हिस्सा लिया. 17 मार्च 2021 को डिक होयट 80 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गए. शायद रिक का जन्म भी अपने पिता को ये अहसास दिलाने के लिए ही हुआ था कि उनमें असीम क्षमताएं हैं, जिन्हें वो देख नहीं पा रहे. यही वजह है कि पिता की मृत्यु के 2 साल बाद, 22 मई 2023 को रिक होयट भी इस दुनिया को अलविदा कह गए. श्वसन प्रणाली की जटिलताओं के कारण रिक 61 वर्ष की आयु में चल बसे.

‘यस यू कैन’

रिक अपने पिता डिक के साथ 40 से अधिक वर्षों तक दौड़ और ट्रायथलॉन की दुनिया में मिसाल बने रहे. उन्होंने लाखों विकलांग लोगों को खुद पर विश्वास करने, लक्ष्य निर्धारित करने और असाधारण चीजें हासिल करने के लिए प्रेरित किया. 2013 में बोस्टन मैराथन के आयोजकों ने इस पिता-पुत्र के अविश्वसनीय और अदम्य हौसले के सम्मान में उनकी एक प्रतिमा स्थापिक की. ये प्रतिमा ठीक उसी जगह पर लगाई गई है जहां से यह प्रतिष्ठित रेस शुरू होती है. इस प्रतिमा के नीचे लिखा हुआ है-“यस यू कैन!”